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आगम सूत्र ३७, छेदसूत्र-४, दशाश्रुतस्कन्ध'
उद्देशक/सूत्र सूत्र - २०
___ संवृत्त आत्मा यथातथ्य सपने को देखकर जल्द से सारे संसार समुद्र को पार कर लेता है और तमाम दुःख से छूटकारा पा लेता है। सूत्र-२१ ____अंतप्रान्त भोजी, विविक्त, शयन, आसन सेवन करके, अल्प आहार करनेवाले, इन्द्रिय का दमन करनेवाले, षट्काय रक्षक मुनि को देवों के दर्शन होते हैं। सूत्र - २२
सर्वकामभोग से विरक्त, भीम-भैरव, परिषह-उपसर्ग सहनेवाले तपस्वी संयत को अवधिज्ञान उत्पन्न होता
सूत्र-२३, २४
जिसने तप द्वारा लेश्या को दूर किया है उसका अवधि दर्शन अति विशुद्ध हो जाता है और उसके द्वारा सर्व-उर्ध्व-अधो तिर्यक्लोक को देख सकते हैं |सुसमाधियुक्त प्रशस्त लेश्यावाले, वितर्करहित भिक्षु और सर्व बंधन से मुक्त आत्मा मन के पर्याय को जानते हैं । (यानि कि मनःपर्यवज्ञानी होते हैं) सूत्र - २५
जब जीव के समस्त ज्ञानावरण कर्म क्षय हो तब वो केवली जिन समस्त लोक और अलोक को जानते हैं। सूत्र-२६
जब जीव के समस्त दर्शनावरण कर्म का क्षय हो तब वो केवली जिन समस्त लोकालोक को देखते हैं। सूत्र - २७
प्रतिमा यानि प्रतिज्ञा के विशुद्ध रूप से आराधना करनेवाले और मोहनीय कर्म का क्षय होने से सुसमाहित आत्मा पूरे लोकालोक को देखता है। सूत्र- २८-३०
जिस प्रकार ताल वृक्ष पर सूई लगाने से समग्र तालवृक्ष नष्ट होता है, जिस प्रकार सेनापति की मौत के साथ पूरी सेना नष्ट होती है, जिस प्रकार धुंआ रहित अग्नि ईंधण के अभाव से क्षय होता है, उसी प्रकार मोहनीय कर्म का (सर्वथा) क्षय होने से बाकी सर्व कर्म का क्षय या विनाश होता है। सूत्र-३१, ३२
जिस प्रकार सूखे मूलवाला वृक्ष जल सींचन के बाद भी पुनः अंकुरित नहीं होता, उसी प्रकार मोहनीय कर्म का सर्वथा क्षय होने से बाकी कर्म उत्पन्न नहीं होते । जिस प्रकार बीज जल गया हो तो पुनः अंकुर उत्पन्न नहीं होता उसी प्रकार कर्म बीज के जल जाने के बाद भव समान अंकुर उत्पन्न नहीं होते। सूत्र - ३३
औदारिक शरीर का त्याग करके, नाम, गोत्र, आयु और वेदनीय कर्म का छेदन करके केवली भगवंत कर्मरज से सर्वथा रहित हो जाते हैं। सूत्र - ३४
हे आयुष्मान् ! इस प्रकार (समाधि को) जानकर रागद्वेष रहित चित्त धारण करके शुद्ध श्रेणी प्राप्त करके आत्माशुद्धि को प्राप्त करते हैं । यानि क्षपक श्रेणी प्राप्त करके मोक्ष में जाते हैं । उस प्रकार मैं कहता हूँ।
दशा-५-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(दशाश्रुतस्कन्ध)" आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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