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आगम सूत्र ३६, छेदसूत्र-३, 'व्यवहार'
उद्देशक/सूत्र
उद्देशक-९ सूत्र - २०३-२०६
सागारिक शय्यातर के वहाँ कोई अतिथि घर में भोजन कर रहा हो या बाहर खा रहा हो तो उनके लिए आहार-पानी किए हो वो आहार शय्यातर उसे दे, पाड़िहारिक वापस देने की शर्त से बचा हुआ आहार वो व्यक्ति शय्यातर को दे तो उसमें से साधु को दिया गया आहार साधु को लेना न कल्पे, लेकिन यदि वो आहार अपड़िहारिक हो तो साधु-साध्वी को लेना कल्पे । सूत्र - २०७-२१०
सागारिक-शय्यातर के दास, नौकर, चाकर, सेवक आदि किसी भी घर में या घर के बाहर खा रहे हो तो उनके लिए बनाया गया आहार बचे वो नौकर आदि वापस लेने की बुद्धि से शय्यातर को दे तो ऐसा आहार शय्यातर दे तब साधु-साध्वी का लेना न कल्पे, वापस लेने की बुद्धि रहित यानि अप्रतिहारिक हो तो कल्पे। सूत्र - २११-२१४
शय्यातर के ज्ञातीजन हो, एक ही घर में, या घर के बाहर, एक ही या अलग चूल्हे का पानी आदि ले रहे हो लेकिन उसके सहारे जिन्दा हो तो उनका दिया गया आहार साधु को लेना न कल्पे। सूत्र - २१५-२१८
शय्यातर के ज्ञातीजन हो, एक दरवाजा हो, आने-जाने का एक ही मार्ग हो, घर अलग हो लेकिन घर में या घर के बाहर रसोई का मार्ग एक ही हो । अलग-अलग चूल्हे हो, या एक ही हो तो भी शय्यातर के आहार-पानी पर जिसकी रोजी चलती हो, उस आहार में से साधु को दे तो वो आहार लेना न कल्पे। सूत्र - २१९-२३२
शय्यातर की १. तेल बेचने की, २. गुड़ की, ३. किराने की, ४. कपड़े की, ५. सूत की, ६. रुई और कपास की, ७. गंधीयाणा की, ८. मीठाई की दुकान है उसमें शय्यातर का हिस्सा है । उस दुकान पर बिक्री होती है तो उसमें से कोई भी चीज दे तो वो साधु को लेना न कल्पे, लेकिन यदि इस दुका में शय्यातर का हिस्सा न हो, उस दुकान पर बिक्री होती हो उसमें से किसी साधु को दे तो लेना कल्पे । सूत्र - २३३-२३६
दूसरों की अन्न-आदि रसोई में शय्यातर का हिस्सा हो, वखार में पड़े आम में उसका हिस्सा हो तो उसमें से दिया गया आहार आदि साधु को न कल्पे, यदि शय्यातर का हिस्सा न हो तो कल्पे । सूत्र- २३७
सात दिन की सात पडिमा समान तपश्चर्या के ४९ रात-दिन होते हैं ।
पहले सात दिन अन्न-पानी की एक दत्ति - दूसरे सात दिन दो-दो दत्ति - यावत् सातवें सात दिन सात-सात दत्ति गिनते कुल १९६ दत्ति होती है वो तप जिस तरह से सूत्र में बताया है, जैसा मार्ग है, जैसा सत्य अनुष्ठान है, ऐसा सम्यक् तरह से काया से छूने के द्वारा निरतिचार, पार पहुँचे हुए, कीर्तन कीए गए उस तरह से साधु आज्ञा को पालनेवाले होते हैं। सूत्र-२३८-२४०
(ऊपर कहने के अनुसार) आठ दिन की आठ पडिमा समान तप कहा है।
पहले आठ दिन अन्न-पानी की एक-एक दत्ति, उस तरह से आठवी पडिमा - आठ दिन की आठ दत्ति गिनते कुल ६४ रात-दिन २८८ दत्ति से तप पूर्ण हो, उसी तरह नौ दिन की नौ पडिमा ८१ रात-दिन और कुल दत्ति ४०५ दश दिन की दश पड़िमा १०० दत्ति और कुल दत्ति ५५० होती है।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(व्यवहार)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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