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आगम सूत्र ३५, छेदसूत्र-२, 'बृहत्कल्प'
उद्देशक/सूत्र सूत्र - ६९-७०
____ यदि दूसरे घर से आए हुए आहार को सागारिकने अपने घर में ग्रहण किया हो और उसे दे तो साधु-साध्वी को लेना न कल्पे, उसका स्वीकार न किया हो और फिर दे तो कल्पे । सूत्र-७१-७२
सागारिक के घर से दूसरे घर में ले गए आहार का यदि गृहस्वामी ने स्वीकार न किया हो और कोई दे तो साधु को लेना न कल्पे, यदि गृहस्वामी ने स्वीकार कर लिया हो और फिर कोई दे तो लेना कल्पे । सूत्र-७३-७४
(सागारिक एवं अन्य लोगों के लिए संयुक्त निष्पन्न भोजन में से) सागारिक का हिस्सा निश्चित्-पृथक् निर्धारित अलग न नीकाला हो और उसमें से कोई दे तो साधु-साध्वी को लेना न कल्पे, लेकिन यदि सागारिक का हिस्सा अलग किया गया हो और कोई दे तब लेना कल्पे । सूत्र- ७५-७८
सागारिक को अपने पूज्य पुरुष या महेमान को आश्रित करके जो आहार-वस्त्र-कम्बल आदि उपकरण बनाए हो या देने के लिए रखे हो वो पूज्यजन या अतिथि को देने के बाद जो कुछ बचा हो वो सागारिक को परत करने के लायक हो या न हो, बचे हुए हिस्से में से सागारिक या उसके परिवारजन कुछ दे तो साधु-साध्वी को लेना न कल्पे, वो पूज्य पुरुष या अतिथि दे तो भी लेना न कल्पे । सूत्र-७९
साधु-साध्वी को पाँच तरह के वस्त्र रखना या इस्तमाल करना कल्पे । जांगमिक-गमनागमन करते भेड़बकरी आदि के बाल में से बने, भांगिक अलसी आदि के छिलके से बने, सानक शण के बने, पीतक-कपास के बने, तिरिड़पट्ट-तिरिड़वृक्ष के वल्कल से बने वस्त्र । सूत्र-८०
साधु-साध्वी को पाँच तरह के रजोहरण रखना या इस्तमाल करना कल्पे । ऊनी, ऊंट के बाल का, शण का, वच्चक नाम के घास का, मुंज घास फूटकर उसका कर्कश हिस्सा दूर करके बनाया हुआ ।
उद्देशक-२-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् (बृहत्कल्प) आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद'
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(बृहत्कल्प)" आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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