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________________ आगम सूत्र ३५, छेदसूत्र-२, 'बृहत्कल्प' उद्देशक/सूत्र सूत्र-१२४ जो अशन आदि आहार कल्पस्थित (अचेलक आदि दश तरह के कल्प में स्थित प्रथम चरम जिनशासन के साधु) के लिए बनाया हो तो अकल्पस्थित (अचेलक आदि कल्प में स्थित नहीं है ऐसे मध्य के बाईस जिनशासन के साधु) को कल्पे। सूत्र- १२५ यदि कोई भिक्षु स्वगण में से नीकलकर अन्य गण का स्वीकार करना चाहे तो आचार्य, उपाध्याय, प्रवर्तक, स्थविर, गणि, गणधर या गणावच्छेदक को पूछे बिना अन्य गण का स्वीकार करना न कल्पे लेकिन आचार्य यावत् गणावच्छेदक को पूछकर अन्य गण का स्वीकार कल्पे । यदि वो आज्ञा दे तो अन्य गण का स्वीकार कल्पे । और यदि आज्ञा न दे तो अन्य गण का स्वीकार करना न कल्पे । सूत्र-१२६ यदि गणावच्छेदक स्वगण में से नीकलकर अन्य गण का स्वीकार करना चाहे तो पहले अपना पद छोड़कर अन्य गण का स्वीकार करना कल्पे, आचार्य यावत् गणावच्छेदक को पूछे बिना अन्य गण का स्वीकार करना न कल्पे, लेकिन यदि पूछकर आज्ञा दे तो कल्पे और आज्ञा न दे तो न कल्पे । सूत्र- १२७ यदि आचार्य या उपाध्याय शायद अपने गण में से नीकलकर दूसरे गण में जाना चाहे तो उनको अपना पद त्याग करके दूसरे गण में जाना कल्पे । (जिन्हें अपना पदभार सौंपा हो ऐसे) आचार्य यावत् गणावच्छेदक को पूछे बिना अन्य गण का स्वीकार करना न कल्पे । पूछने के बाद आज्ञा मिले तो अन्य गण में जाना कल्पे और आज्ञा न मिले तो जाना न कल्पे। सूत्र - १२८-१३० यदि कोई साधु-गणावच्छेदक, आचार्य या उपाध्याय अपने गण से नीकलकर दूसरे गण के साथ मांडली व्यवहार करना चाहे तो यदि पद पर हो तो अपने पद का त्याग करना और सभी आचार्य यावत् गणावच्छेदक की आज्ञा लिए बिना न कल्पे । यदि आज्ञा माँगे और आचार्य आदि से उन्हें आज्ञा मिले तो अन्य गण के साथ मांडली व्यवहार कल्पे, यदि आज्ञा न मिले तो न कल्पे-अन्य गण में उत्कृष्ट धार्मिक शिक्षा आदि प्राप्त होने से न कल्पे । सूत्र-१३१-१३३ यदि कोई साधु, गणावच्छेदक, आचार्य या उपाध्याय दूसरे गण के आचार्य या उपाध्याय का गुरुभाव से स्वीकार करना चाहे तो जो पदस्थ हैं उन्हें अपने पद का त्याग करना और भिक्षु आदि सबको आचार्य यावत् गणावच्छेदक की आज्ञा लेनी चाहिए। यदि आज्ञा माँगे लेकिन आज्ञा न मिले तो अन्य आचार्य, उपाध्याय का गुरु भाव से स्वीकार न कल्पे । यदि आज्ञा दे तो कल्पे । स्वगण के आचार्य-उपाध्याय को कारण बताए बिना अन्य आचार्य-उपाध्याय का गुरुभाव से स्वीकार करना न कल्पे लेकिन कारण बताकर कल्पे। सूत्र-१३४ यदि कोई साधु रात को या विकाल संध्या के वक्त मर जाए तो उस मृत भिक्षु के शरीर को किसी वैयावच्च करनेवाले साधु एकान्त में सर्वथा अचित्त प्रदेश से परठने के लिए चाहे तब यदि वहाँ उपयोग में आ सके वैसा गृहस्थ का अचत्त उपकरण हो तो वो उपकरण गृहस्थ का ही है ऐसा मानकर ग्रहण करे । उससे उस मृत भिक्षु के शरीर को एकान्त में सर्वथा अचित्त प्रदेश में परठवे । उसके बाद उस उपकरण को यथास्थान रख दे। सूत्र-१३५ यदि कोई साधु कलह करके उस कलह को उपशान्त न करे तो उसे गृहस्थ के घर में भक्त-पान के लिए प्रदेश-निष्क्रमण करना, स्वाध्याय भूमि या मल-मूत्र त्याग भूमि में प्रवेश करना, एक गाँव से दूसरे गाँव जाना, एक मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(बृहत्कल्प)" आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद" Page 13
SR No.034703
Book TitleAgam 35 Bruhatkalpa Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages20
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 35, & agam_bruhatkalpa
File Size2 MB
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