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आगम सूत्र ३४, छेदसूत्र-१, निशीथ'
उद्देशक/सूत्र उद्देशक-१९ 'निसीह'' सूत्र के इस उद्देशक में १३३३ से १३६९ यानि कि कुल-३७ सूत्र हैं । इसमें बताए गए किसी भी दोष का त्रिविधे सेवन करनेवाले को चाउम्मासियं परिहारट्राणं उग्घातियं नाम का प्रायश्चित्त आता है। सूत्र-१३३३-१३३६
जो साधु-साध्वी खरीदके, उधार ले के, विनिमय करके या छिनकर लाए गए प्रासुक या निर्दोष ऐसे अनमोल औषध को ग्रहण करे, करवाए, करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त ।
(नोंध-उद्देशक १४ के सूत्र ८६३ से ८६६ में इन चारों दोष का विशद् विवरण किया गया है, उस प्रकार समझ लेना । फर्क केवल इतना कि वहाँ पात्र खरीदने के लिए यह दोष बताए हैं जो यहाँ औषध के लिए समझना।) सूत्र-१३३७-१३३९
जो साधु-साध्वी प्रासुक या निर्दोष ऐसे अनमोल औषध ग्लान के लिए भी तीन मात्रा से ज्यादा लाए, ऐसा औषध एक गाँव से दूसरे गाँव ले जाते हुए साथ रखे, ऐसा औषध खुद बनाए, बनवाए या कोई सामने से बनाकर दे तब ग्रहण करे, करवाए, अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र- १३४०
जो साधु-साध्वी चार संध्या-सूर्योदय, सूर्यास्त, मध्याह्न और मध्यरात्रि के पहले और बाद का अर्थ-मुहूर्त काल इस वक्त स्वाध्याय करे, करवाए, अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र-१३४१-१३४२
जो साधु-साध्वी कालिक सूत्र की नौ से ज्यादा और दृष्टिवाद की २१ से ज्यादा पृच्छा यानि कि पृच्छनारूप स्वाध्याय को अस्वाध्याय या तो दिन और रात के पहले या अंतिम प्रहर के सिवा के काल में करे, करवाए, अनुमोदना करे। सूत्र-१३४३-१३४४
जो साधु-साध्वी इन्द्र, स्कन्द, यक्ष, भूत उन चार महामहोत्सव और उसके बाद की चार महा प्रतिपदा में यानि चैत्र, आषाढ़, आसो और कार्तिक पूर्णिमा और उसके बाद आनेवाले एकम में स्वाध्याय करे, करवाए, करनेवाले की अनुमोदना करे। सूत्र-१३४५
जो साधु-साध्वी चार पोरिसी यानि दिन और रात्रि के पहले तथा अन्तिम प्रहर में (जो कालिक सूत्र का स्वाध्यायकाल है उसमें) स्वाध्याय न करे, न करने के लिए कहे या न करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र - १३४६-१३४७
जो साधु-साध्वी शास्त्र निर्दिष्ट या अपने शरीर के सम्बन्धी होनेवाले अस्वाध्याय काल में स्वाध्याय करे, करवाए, अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र - १३४८-१३४९
जो साधु-साध्वी नीचे दिए गए सूत्रार्थ की वांचना दिए बिना सीधे ही ऊपर के सूत्र को वांचना दे यानि शास्त्र निर्दिष्ट क्रम से सूत्र की वाचना न दे, नवबंभचेर यानि आचारांग के प्रथम श्रुतस्कन्ध के नौ अध्ययन की वांचना दिए बिना सीधे ही ऊपर के यानि कि छेदसूत्र या दृष्टिवाद की वांचना दे, दिलाए, देनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त ।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(निशीथ)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद”
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