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आगम सूत्र ३४, छेदसूत्र-१, 'निशीथ'
उद्देशक/सूत्र पर्युषण से ७० दिन की स्थिरता करनी होने से उससे पहले ग्रहण की शय्या संथारा परत करना ऐसा मतलब हो । लेकिन वर्तमानकाल की प्रणालि अनुसार ऐसा अर्थ हो सके कि शेषकाल मतलब शर्दी-गर्मी में ग्रहण की शय्या आदि वर्षाऋतु से पहले उसके दाता को परत करना या पुनः इस्तमाल के लिए परवानगी माँगना। सूत्र - १०९
जो साधु-साध्वी वर्षाऋतु में उपभोग करने के लिए लाया गया शय्या, संथारा, वर्षाऋतु बीतने के बाद दश रात्रि तक उपभोग कर सके, लेकिन उस समय मर्यादा का उल्लंघन करे, करवाए या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र - ११०
जो साधु-साध्वी वर्षाकाल या शेषकाल के लिए याचना करके लाई हुई शय्या संथारा वर्षा से भीगा हुआ देखने-जानने के बाद उसे न खोले, प्रसारकर सूख जाए उस तरह से न रखे, न रखवाए या उस तरह से शय्यादि खुले न करनेवाले की अनुमोदना करे । सूत्र - १११-११३
जो साधु-साध्वी प्रातिहारिक यानि कि श्रावक से वापस देने का कहकर लाया गया, सागारिक यानि कि शय्यातर आदि गृहस्थ के पास से लाया हुआ शय्या-संथारा या दोनों तरह से शय्यादि दूसरी बार परवानगी लिए बिना, दूसरी जगह, उस वसति के बाहर खुद ले जाए, दूसरों को ले जाने के लिए प्रेरित करे या ले जानेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र - ११४-११६
जो साधु-साध्वी प्रातिहारिक यानि वापस देने लायक या शय्यातर आदि गृहस्थ से लाकर या दोनों तरह के शय्या-संथारा (आदि) जिस तरह से लाया हो उसी तरह से वापस न दे, ठीक किए बिना, वापस करे बिना विहार करे, खो जाए या ढूँढे नहीं तो प्रायश्चित्त । सूत्र-११७
___ जो साधु-साध्वी अल्प या कम मात्रा में भी उपधिवस्त्र का पडिलेहण न करे, न करवाए या न करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त ।
यहाँ दूसरे में जो दोष बताए उसमें से किसी भी दोष खुद सेवन करे, करवाए या अनुमोदना करे तो उसे 'मासियं परिहारठाणं उग्घातियं प्रायश्चित्त आए जिसके लिए लघुमासिक प्रायश्चित्त शब्द भी योजित हुआ है।
उद्देशक-२-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(निशीथ)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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