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आगम सूत्र ३२, पयन्नासूत्र-९, देवेन्द्रस्तव' हैं-अग्निशीख और अग्निमानव । सूत्र- २०-२६
___ हे विकसित यश और विशाल नयनवाली, सुखपूर्वक भवन में बैठी हुई (सुंदरी) ! मैंने जो यह बीस इन्द्र बताए उनका भवन परिग्रह सुन । वो चमरेन्द्र वैरोचन और असुरेन्द्र महानुभव के श्रेष्ठ भवन की गिनती ६४ लाख है। वो भूतानन्द और धरण नाम के दोनों नागकुमार इन्द्र के श्रेष्ठ भवन की गिनती ५४ लाख है । हे सुंदरी ! वेणुदेव
और वेणुदाली दोनों सुवर्ण इन्द्र के भवन ७२ लाख है । वैलम्ब और प्रभंजन वायुकुमार इन्द्र के श्रेष्ठ भवन की गिनती ९६ लाख है । इस तरह असुर के ६४, नागकुमार के ५४, सुवर्णकुमार के ७२, वायुकुमार के ९६ । द्विपदिशा-उदधि-विद्युत-स्तनित और अग्नि वो छ युगल के प्रत्येक के भवन ७६-७६ लाख हैं। सूत्र - २७-३१
हे लीला स्थित सुंदरी ! अब उनकी स्थिति मतलब आयु विशेष को क्रम से सुन ।
हे सुंदरी ! चमरेन्द्र की उत्कृष्ट आयु स्थिति एक सागरोपम है । वो ही बलि और वैरोचन इन्द्र की भी जानना। चमरेन्द्र सिवा बाकी के दक्षिण दिशा के इन्द्र की उत्कृष्ट आय-स्थिति देढ पल्योपम है । बलि के सिवा बाकी जो उत्तर दिशा स्थित इन्द्र है उसकी आयु स्थिति कुछ न्यून दो पल्योपम है । यह सब आयु-स्थिति का विवरण है। अब तू उत्तम भवनवासी देव के सुन्दर नगर का माहात्म्य भी सुन । सूत्र-३२-३८
सम्पूर्ण रत्नप्रभा पृथ्वी ११००० योजन में एक हजार योजन के अलावा भवनपति के नगर बने हैं । यह सब भवन भीतर से चतुष्कोण और बाहर से गोल हैं । आम तोर पर अति सुन्दर, रमणीय, निर्मल और व्रज रत्न के बने हैं । भवन नगर के प्राकार सोने के बने हुए हैं । श्रेष्ठ कमल की पंखड़ी पर रहा यह भवन अलग-अलग मणी से शोभायमान स्वभाव से मनोहारी दिखते हैं । लम्बे अरसे तक न मूर्जानेवाली पुष्पमाला और चन्दन से बने दरवाजे युक्त उस नगर का ऊपर का हिस्सा पताका से शोभायमान है । इसलिए वो श्रेष्ठ नगर सुन्दर है । वो श्रेष्ठ द्वार आठ योजन ऊंचे हैं उसका ऊपर का हिस्सा लाल कलश से सजाया हुआ है, ऊपर सोने के घंट बँधे हैं । इस भवन में भवनपति देव श्रेष्ठ तरुणी के गीत और वाद्य की आवाज के कारण से हमेशा सुखयुक्त और प्रमुदित रहकर पसार होनेवाले वक्त को नहीं जानते। सूत्र - ३९-४०
___ चमरेन्द्र, धरणेन्द्र, वेणुदेव, पूर्ण, जलकान्त, अमितगति, वेलम्ब, घोष, हरि और अग्निशीख । उस भवनपति इन्द्र के मणिरत्न से जड़ित स्वर्ण-स्तम्भ और रमणीय लतामंडप युक्त भवन दक्षिण दिशा की ओर होता है उत्तर दिशा और उसके आसपास बाकी के इन्द्र के भवन होते हैं । सूत्र-४१-४२
दक्षिण दिशा की ओर असुरकुमार के ३४ लाख, नागकुमार के ४४ लाख, सुवर्णकुमार के ४८ लाख और द्वीप, उदधि, विद्युत, स्तनित और अग्निकुमार के ४०-४० लाख और वायुकुमार के ५० लाख भवन होते हैं । उत्तर दिशा की ओर असुरकुमार के ३० लाख, नागकुमार के ४० लाख, सुवर्णकुमार के ३४ लाख, वायुकुमार के ४६; द्वीप, उदधि, स्तनित, अग्निकुमार के ३६-३६ लाख भवन हैं। सूत्र-४३
सभी भवनपति और वैमानिक इन्द्र की तीन पर्षदा होती है । उन सबके त्रायस्त्रिंशक, लोकपाल और सामानिक देव होते हैं और चार गुने अंगरक्षक देव होते हैं।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् ' (देवेन्द्रस्तव)" आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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