________________
आगम सूत्र २६, पयन्नासूत्र-३, 'महाप्रत्याख्यान'
सूत्रसूत्र-८०
यदि इस प्रकार से आत्मा के लिए व्रत का भार वहन करनेवाला, शरीर के लिए निरपेक्ष और पहाड़ की गुफामें रहे हुए वो सत्पुरुष अपने अर्थ की साधना करते हैं। सूत्र - ८१, ८२
यदि पहाड़ की गुफा, पहाड़ की कराड़ और विषम स्थानकमें रहे, धीरज द्वारा अति सज्जित रहे वो सुपुरुष अपने अर्थ को साधते हैं ।- तो किस लिए साधु को सहाय देनेवाले ऐसे अन्योअन्य संग्रह के बल द्वारा यानि वैयावच्च करने के द्वारा परलोक के अर्थ से अपने अर्थ की साधना नहीं कर सकते क्या ? सूत्र-८३
अल्प, मधुर और कान को अच्छा लगनेवाला, इस वीतराग का वचन सुनते हुए जीव साधु के बीच अपना अर्थ साधने के लिए वाकई समर्थ हो सकते हैं। सूत्र-८४
धीर पुरुष ने प्ररूपित किया हुआ, सत्पुरुष ने सेवन किया हुआ और अति मुश्किल ऐसे अपने अर्थ को शीलातल उपर रहा हुआ जो पुरुष साधना करता है वह धन्य है। सूत्र-८५
पहले जिसने अपने आत्मा का निग्रह नहीं किया हो, उसको इन्द्रियाँ पीड़ा देती है, परीषह न सहने के कारण मृत्युकाल में सुख का त्याग करते हुए भयभीत होते हैं। सूत्र-८६
पहले जिसने संयम योग का पालन न किया हो, मरणकाल के लिए समाधि की ईच्छा रखता हो और विषय में लीन रहा हुआ आत्मा परीषह सहन करने को समर्थ नहीं हो सकता। सूत्र - ८७
पहले जिसने संयम योग का पालन किया हो, मरण के काल में समाधि की ईच्छा रखता हो और विषय सुख से आत्मा को विरमीत किया हो वो पुरुष परीषह को सहन करने को समर्थ हो सकता है। सूत्र-८८
पहले संयम योग की आराधना की हो, उसे नियाणा रहित बुद्धि से सोचकर, कषाय त्याग कर के, सज्ज हो कर मरण को अंगीकार करता है। सूत्र-८९
जिन जीव ने सम्यक् प्रकार से तप किया हो वह जीव अपने क्लिष्ट पापकर्मों को जलाने समर्थ हो सकते हैं सूत्र-९०
एक पंड़ित मरण का आदर कर के वो असंभ्रांत सुपुरुष जल्द से अनन्त मरण का अन्त करेंगे। सूत्र - ९१
एक पंडित मरण! और उस के कैसे आलम्बन कहे हैं ? उन सब को जान कर आचार्य दूसरे किस की प्रशंसा करेगा? सूत्र - ९२
पादपोपगम अनशन, ध्यान, भावनाएं आलम्बन हैं, वह जान कर (आचार्य) पंड़ितमरण की प्रशंसा करते हैं
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(महाप्रत्याख्यान)” आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद”
Page 11