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आगम सूत्र १८, उपांगसूत्र-७, 'जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति'
वक्षस्कार/सूत्र
जो सदा नक्षत्र-विमानों को चीरकर चन्द्रमा के साथ योग करता है, ऐसा एक ज्येष्ठा नक्षत्र है। सूत्र-३०६
भगवन् ! अभिजित आदि नक्षत्रों के कौन-कौन देवता हैं ? पहले नक्षत्र से अठ्ठावीसवें नक्षत्र तक के देवता यथाक्रम इस प्रकार हैं - ब्रह्मा, विष्णु, वसु, वरुण, अज, अभिवृद्धि, पूषा, अश्व, यम, अग्नि, प्रजापति, सोम, रुद्र, अदिति, बृहस्पति, सर्प, पितृ, भंग, अर्यमा, सविता, त्वष्टा, वायु, इन्द्राग्नी, मित्र, इन्द्र, नैर्ऋत, आप तथा विश्वदेव । सूत्र-३०७-३०९
भगवन् ! इन अठ्ठाईस नक्षत्रों में अभिजित नक्षत्र के कितने तारे हैं ? गौतम ! तीन तारे हैं । जिन नक्षत्रों के जितने जितने तारे हैं, वे प्रथम से अन्तिम तक इस प्रकार हैं- अभिजित नक्षत्र के तीन तारे, श्रवण के तीन, धनिष्ठा के पाँच, शतभिषक् के सौ, पूर्वभाद्रपदा के दो, उत्तर-भाद्रपदा के दो, रेवती के बत्तीस, अश्विनी के तीन, भरणी के तीन, कृत्तिका के छः, रोहिणी के पाँच, मृगशिर के तीन, आर्द्रा का एक, पुनर्वसु के पाँच, पुष्य के तीन और अश्लेषा नक्षत्र के छः तारे होते हैं । मघा नक्षत्र के सात तारे, पूर्वफाल्गुनी के दो, उत्तरफाल्गुनी के दो, हस्त के पाँच, चित्रा का एक, स्वाति का एक, विशाखा के पाँच, अनुराधा के पाँच, ज्येष्ठा के तीन, मूल के ग्यारह, पूर्वाषाढा के चार तथा उत्तराषाढा नक्षत्र के चार तारे हैं। सूत्र-३१०
भगवन् ! इन अठ्ठाईस नक्षत्रों में अभिजित नक्षत्र का क्या गोत्र है ? गौतम ! मौद्गलायन गोत्र है। सूत्र- ३११-३१४
प्रथम से अन्तिम नक्षत्र तक सब नक्षत्रों के गोत्र इस प्रकार हैं-अभिजित नक्षत्र का मौद्गलायन, श्रवण का सांख्यायन, धनिष्ठा का अग्रभाग, शतभिषक् का कण्णिलायन, पूर्वभाद्रपदा का जातुकर्ण, उत्तरभाद्रपदा का धनञ्जय । तथा- रेवती का पुष्यायन, अश्विनी का अश्वायन, भरणी का भार्गवेश, कृत्तिका का अग्निवेश्य, रोहिणी का गौतम, मृगशिर का भारद्वाज, आर्द्रा का लोहित्यायन, पुनर्वसु का वासिष्ठ । तथा-पुष्य का अवमज्जायन, अश्लेषा का माण्डव्यायन, मघा का पिङ्गायन, पूर्वफाल्गुनी का गोवल्लायन, उत्तर फाल्गुनी का काश्यप, हस्त का कौशिक, चित्रा का दार्भायन, स्वाति का चामरच्छायन, विशाखा का शुङ्गायन । तथा अनुराधा का गोलव्यायन, ज्येष्ठा का चिकित्सायन, मूल का कात्यायन, पूर्वाषाढा का बाभ्रव्यायन तथा उत्तराषाढा नक्षत्र का व्याघ्रपत्य गोत्र है सूत्र - ३१५-३१८
भगवन् ! इन अठ्ठाईस नक्षत्रों में अभिजित नक्षत्र का कैसा संस्थान है ? गौतम ! गोशीर्षावलि-प्रथम से अन्तिम तक सब नक्षत्रों के संस्थान इस प्रकार हैं- अभिजित का गोशीर्षावलि, श्रवण का कासार, धनिष्ठा का पक्षी के कलेवर सदृश, शतभिषक् का पुष्प-राशि, पूर्वभाद्रपदा का अर्धवापी, उत्तरभाद्रपदा का भी अर्धवापी, रेवती का नौका, अश्विनी का अश्व, भरणी का भग, कृत्तिका का क्षुरगृह, रोहिणी का गाड़ी की धुरी के समान, मृगशिर का मृग, आर्द्रा का रुधिर की बूंद, पुनर्वसु का तराजू, पुष्य का सुप्रतिष्ठित वर्द्धमानक, अश्लेषा का ध्वजा,
मघा का प्राकार, पूर्वफाल्गुनी का आधे पलंग, उत्तरफाल्गुनी का भी आधे पलंग, हस्त का हाथ, चित्रा का मुख पर सुशोभित पीली जूही के पुष्य के सदृश, स्वाति का कीलक, विशाखा का दामनि, अनुराधा का एकावली, ज्येष्ठा का हाथी-दाँत, मूल का बिच्छू की पूँछ, पूर्वाषाढा का हाथी के पैर तथा उत्तराषाढा नक्षत्र का बैठे हुए सिंह के सदृश संस्थान है सूत्र - ३१९-३२३
भगवन् ! अठ्ठाईस नक्षत्रों में अभिजित नक्षत्र कितने मुहूर्त पर्यन्त चन्द्रमा के साथ योगयुक्त रहता है ? गौतम ! ९-२७/६७ मुहूर्त रहता है । इन नक्षत्रों का चन्द्र के साथ योग इस प्रकार है । अभिजित नक्षत्र का चन्द्रमा
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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