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आगम सूत्र १८, उपांगसूत्र-७, 'जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति'
वक्षस्कार/सूत्र
प्रतिष्ठित, ३. विजय, ४. प्रीतिवर्द्धन, ५. श्रेयान्, ६. शिव, ७. शिशिर, ८. हिमवान्, ९. वसन्तमास, १०. कुसुमसम्भव, ११. निदाघ तथा १२. वनविरोह । सूत्र - २८९-२९८
भगवन् ! प्रत्येक महीने के कितने पक्ष हैं ? गौतम ! दो, कृष्ण तथा शुक्ल । प्रत्येक पक्ष के पन्द्रह दिन हैं,१. प्रतिपदा-दिवस, २. द्वितीया-दिवस, ३. तृतीया-दिवस यावत् १५. पंचदशी-दिवस-अमावस्या या पूर्णमासी का दिन । इन पन्द्रह दिनों के पन्द्रह नाम हैं, जैसे- १. पूर्वाङ्ग, २. सिद्धमनोरम, ३. मनोहर, ४. यशोभद्र, ५. यशोधर, ६. सर्वकाम-समृद्ध, ७. इन्द्रमूर्द्धाभिषिक्त, ८. सौमनस्, ९. धनञ्जय, १०. अर्थसिद्ध, ११. अभिजात, १२. अत्यशन, १३. शतञ्जय, १४. अग्निवेश्म तथा १५. उपशम ।
भगवन् ! इन पन्द्रह दिनों की कितनी तिथियाँ हैं ? पन्द्रह-१. नन्दा, २. भद्रा, ३. जया, ४. तुच्छारिक्ता, ५. पूर्णा-पञ्चमी । फिर ६. नन्दा, ७. भद्रा, ८. जया, ९. तृच्छा, १०. पूर्णा-दशमी । फिर ११. नन्दा, १२. भद्रा, १३. जया, १४. तुच्छा, १५. पूर्णा-पञ्चदशी।
प्रत्येक पक्ष में पन्द्रह राते हैं, जैसे-प्रतिपदारात्रि-एकम की रात, द्वितीयारात्रि, तृतीयारात्रि यावत् पञ्चदशी-अमावस या पूनम की रात ।
इन पन्द्रह रातों के पन्द्रह नाम हैं- उत्तमा, सुनक्षत्रा, एलापत्या, यशोधरा, सौमनसा, श्रीसम्भूता, विजया, वैजयन्ती, जयन्ती, अपराजिता, ईच्छा, समाहारा, तेजा, अतितेजा, देवानन्दा या निरति।
भगवन् ! इन पन्द्रह रातों की कितनी तिथियाँ हैं ? गौतम ! पन्द्रह जैसे-१. उग्रवती, २. भोगवती, ३. यशोमती, ४. सर्वसिद्धा, ५. शुभनामा । फिर ६. उग्रवती, ७. भोगवती, ८. यशोमती, ९. सर्वसिद्धा, १०. शुभनामा । फिर ११. उग्रवती, १२. भोगवती, १३. यशोमती, १४. सर्वसिद्धा, १५. शुभनामा ।
प्रत्येक अहोरात्र के तीस मुहर्त बतलाये गये हैं-रुद्र, श्रेयान, मित्र, वायु, सुपीत, अभिचन्द्र, माहेन्द्र, बलवान् , ब्रह्म, बहुसत्य, ऐशान, त्वष्टा, भावितात्मा, वैश्रमण, वारुण, आनन्द, विजय, विश्वसेन, प्राजापत्य, उपशम, गन्धर्व, अग्निवेश्म, शतवृषभ, आतपवान्, अमम, ऋणवान्, भौम, वृषभ, सर्वार्थ तथा राक्षस । सूत्र-२९९
___ भगवन् ! करण कितने हैं ? गौतम ! ग्यारह - १. बव, २. बालव, ३. कौलव, ४. स्त्रीविलोचन-तैतिल, ५. गर, ६. वणिज, ७. विष्टि, ८. शकुनि, ९. चतुष्पद, १०. नाग तथा ११. किंस्तुघ्न । इन ग्यारह करणों में सात करण चर तथा चार करण स्थिर हैं । बव, बालव, कौलव, स्त्रीविलोचन, गरादि, वणिज तथा विष्टि-ये सात करण चर हैं एवं शकुनि, चतुष्पद, नाग और किंस्तुघ्न-ये चार करण स्थिर हैं।
भगवन् ! ये चर तथा स्थिर करण कब होते हैं ? गौतम ! शुक्ल पक्ष की एकम की रात में, एकम के दिन में बवकरण होता है । दूज को दिन में बालवकरण होता है, रात में कौलवकरण होता है । तीज को दिन में स्त्री विलोचनकरण होता है, रात में गरकरण होता है । चौथ को दिन में वणिजकरण होता है, रात में विष्टिकरण होता है। पाँचम को दिन में बवकरण होता है, रात में बालवकरण होता है। छठ को दिन में कौलवकरण होता है, रात में स्त्रीविलोचनकरण होता है । सातम को दिन में गरादिकरण होता है, रात में वणिजकरण होता है । आठम को दिन में विष्टिकरण होता है, रात में बवकरण होता है । नवम को दिन में बालवकरण होता है, रात में कौलवकरण होता है । दसम को दिन में स्त्रीविलोचन करण होता है, रात में गरादिकरण होता है । ग्यारस को दिन में वणिजकरण होता है, रात में विष्टिकरण होता है । बारस को दिन में बवकरण होता है, रात में बालवकरण होता है । तेरस को दिन में कौलवकरण होता है, रात में स्त्रीविलोचन करण होता है । चौदस को दिन में गरादिकरण होता है, रात में वणिजकरण होता है । पूनम को दिन में विष्टिकरण होता है, रात में बवकरण होता है।
कृष्णपक्ष की एकम को दिन में बालवकरण होता है, रात में कौलवकरण होता है । दूज को दिन में स्त्री
मुनि दीपरत्नसागर कृत् ' (जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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