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________________ आगम सूत्र १८, उपांगसूत्र-७, 'जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति' वक्षस्कार/सूत्र समय तथा अधिक से अधिक छह मास तक इन्द्रोत्पत्ति से विरहित रहता है । मानुषोत्तर पर्वत के बहिर्वर्ती ज्योतिष्क देवों का वर्णन पूर्वानुरूप जानना । इतना अन्तर है-वे विमानोत्पन्न हैं । पकी ईंट के आकार में संस्थित, चन्द्रसूर्यापेक्षया लाखों योजन विस्तीर्ण तापक्षेत्रयुक्त, नानाविध विकुर्वित रूप धारण करने में सक्षम, लाखों बाह्य परिषदों से संपरिवृत्त ज्योतिष्क देव वाद्यों से उत्पन्न मधुर ध्वनि के आनन्द के साथ दिव्य भोग भोगने में अनुरत, सुखलेश्यायुक्त, मन्दलेश्यायुक्त, विविधलेश्यायुक्त, परस्पर अपनी-अपनी लेश्याओं द्वारा अवगाढ-अपने स्थान में स्थित, सब ओर के अपने प्रत्यासन्न, उद्योतित करते हैं, प्रभासित करते हैं । शेष कथन पूर्ववत् है । सूत्र- २६९ भगवन् ! चन्द्र-मण्डल कितने हैं ? गौतम ! १५ हैं । जम्बूद्वीपमें १८० योजन क्षेत्र अवगाहन कर पाँच चन्द्रमण्डल है। लवणसमुद्रमें ३३० योजन क्षेत्र का अवगाहन कर दस चन्द्र-मण्डल हैं । यो कुल १५ चन्द्र-मण्डल होते हैं सूत्र-२७० भगवन् ! सर्वाभ्यन्तर चन्द्र-मण्डल से सर्वबाह्य चन्द्र-मण्डल अबाधित रूप में कितनी दूरी पर है । गौतम ! ५१० योजन की दूरी पर है। सूत्र-२७१ भगवन् ! एक चन्द्र-मण्डल का दूसरे चन्द्र-मण्डल से कितना अन्तर है ? गौतम ! ३५-३०/६१ योजन तथा ६१ भागों में विभक्त एक योजन के एक भाग के सात भागों में चार भाग योजनांश परिमित अन्तर है। सूत्र - २७२ भगवन् ! चन्द्र-मण्डल की लम्बाई-चौड़ाई, परिधि तथा ऊंचाई कितनी है ? गौतम ! लम्बाई-चौड़ाई ५६/६१ योजन, परिधि उससे कुछ अधिक तीन गुनी तथा ऊंचाई २८/६१ योजन है। सूत्र - २७३ भगवन ! जम्बूद्वीप में मेरु पर्वत से सर्वाभ्यन्तर चन्द्र-मण्डल कितनी दूरी पर है ? गौतम ! ४४८२० योजन की दूरी पर है । जम्बूद्वीप में मेरु पर्वत से दूसरा आभ्यन्तर चन्द्र-मण्डल ४४८५६-२५/६१ योजन तथा ६१ भागों में विभक्त एक योजन के एक भाग के ७ भागों में से ४ भाग योजनांश की दूरी पर है। इस क्रम से निष्क्रमण करता हुआ चन्द्र पूर्व मण्डल से उत्तर मण्डल का संक्रमण करता हुआ एक-एक मण्डल पर ३६-२५/६१ योजन तथा ६१ भागों में विभक्त एक योजन के ७ भागों में से ४ भाग योजनांश की अभिवृद्धि करता हुआ सर्वबाह्य मण्डल का उपसंक्रमण कर गति करता है । भगवन् ! जम्बूद्वीप में मेरु पर्वत से सर्वबाह्य चन्द्र-मण्डल कितनी दूरी पर है ? गौतम ! ४५३३० योजन की दूरी पर है । जम्बूद्वीप में मेरु पर्वत से दूसरा बाह्य चन्द्र-मण्डल ४५२९३-३५/६१ योजन तथा ६१ भागों के विभक्त एक योजन के एक भाग के ७ भागों में से ३ भाग योजनांश की दूरी पर है । इस क्रम से प्रवेश करता हुआ चन्द्र पूर्व मण्डल से उत्तर मण्डल का संक्रमण करता हुआ एक-एक मण्डल पर ३६/२५६१ योजन तथा ६१ भागों में विभक्त एक योजन के एक भाग में ७ भागों में से ४ भाग योजनांश की वृद्धि में कमी करता हुआ सर्वाभ्यन्तर मण्डल का उपसंक्रमण कर गति करता है। सूत्र- २७४ भगवन् ! सर्वाभ्यन्तर चन्द्र-मण्डल की लम्बाई-चौड़ाई तथा परिधि कितनी है ? गौतम ! सर्वाभ्यन्तर चन्द्रमण्डल की लम्बाई-चौड़ाई ९९६४० योजन तथा उसकी परिधि कुछ अधिक ३१५०८९ योजन है । द्वितीय आभ्यन्तर चन्द्र-मण्डल की लम्बाई-चौडाई ९९७१२-५१/६१ योजन तथा ६१ भागों में विभक्त एक योजन के एक भाग के ७ भागों में से १ भाग योजनांश तथा उसकी परिधि कुछ अधिक ३१५३१९ योजन है । इस क्रम से निष्क्रमण करता हुआ चन्द्र प्रत्येक मण्डल पर ७२-५६/६१ योजन तथा ६१ भागों में विभक्त एक योजन के एक मुनि दीपरत्नसागर कृत् - (जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद' Page 91
SR No.034685
Book TitleAgam 18 Jambudwippragnapti Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages105
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 18, & agam_jambudwipapragnapti
File Size3 MB
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