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________________ आगम सूत्र १८, उपांगसूत्र-७, 'जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति' वक्षस्कार/सूत्र कूट, तथा उपदर्शनकूट । सूत्र - २०८ ये सब कूट पाँच सौ योजन ऊंचे हैं । इनके अधिष्ठातृ देवों की राजधानियाँ मेरु के उत्तर में है । भगवन् ! नीलवान् वर्षधर पर्वत इस नाम से क्यों पुकारा जाता है ? गौतम ! वहाँ नीलवर्णयुक्त, नील आभावाला परम ऋद्धिशाली नीलवान् देव निवास करता है, नीलवान् वर्षधर पर्वत सर्वथा वैडूर्यरत्नमय-है । अथवा उसका यह नाम नित्य है। सूत्र-२०९ भगवन् ! जम्बूद्वीप का रम्यक क्षेत्र कहाँ है ? गौतम ! नीलवान् वर्षधर पर्वत के उत्तर में, रुक्मी पर्वत के दक्षिण में, पूर्वी लवणसमुद्र के पश्चिम में, पश्चिमी लवणसमुद्र के पूर्व में है । उसकी जीवा दक्षिण में है, धनुपृष्ठभाग उत्तर में है। बाकी वर्णन हरिवर्ष सदृश है । रम्यक् क्षेत्र में गन्धापाती वृत्तवैताढ्य पर्वत कहाँ है ? गौतम ! नरकान्ता नदी के पश्चिम में, नारीकान्ता नदी के पूर्व में रम्यक क्षेत्र के बीचों बीच है । वह विकटापाती वृत्तवैताढ्य समान है। वहाँ परम ऋद्धिशाली पल्योपम आयुष्य युक्त पद्म देव निवास करता है । उसकी राजधानी उत्तर में है । वह क्षेत्र रम्यकवर्ष क्यों कहलाता है ? गौतम ! रम्यकवर्ष सुन्दर, रमणीय है एवं उसमें रम्यक नामक देव निवास करता है, अतः वह रम्यकवर्ष कहा जाता है। भगवन् ! जम्बूद्वीप में रुक्मी वर्षधर पर्वत कहाँ है ? गौतम ! रम्यक वर्ष के उत्तर में, हैरण्यवत वर्ष के दक्षिण में, पूर्वी लवणसमुद्र के पश्चिम में, पश्चिम लवणसमुद्र के पूर्व में है । वह पूर्व-पश्चिम लम्बा तथा उत्तर-दक्षिण चौड़ा है । वह महाहिमवान् वर्षधर पर्वत के सदृश है । इतना अन्तर है-उसकी जीवा दक्षिण में है। उसका धनुपृष्ठभाग उत्तर में है । वहाँ महापुण्डरीक द्रह है । उसके दक्षिण तोरण से नरकान्ता नदी निकलती है । पूर्वी लवणसमुद्र में मिल जाती है । रूप्यकुला नामक नदी महापुण्डरीक द्रह के उत्तरी तोरण से निकलती है । वह पश्चिमी लवणसमुद्र में मिल जाती है । रुक्मी वर्षधर पर्वत के कितने कूट हैं ? गौतम ! आठ कूट हैं । यथासूत्र-२१० सिद्धायतनकूट, रुक्मीकूट, रम्यककूट, नरकान्ताकूट, बुद्धिकूट, रूप्यकूलाकूट, हैरण्यवतकूट तथा मणिकांचनकूट। सूत्र - २११ ये सभी कूट पाँच-पाँच सौ योजन ऊंचे हैं । उत्तर में इनकी राजधानियाँ है । भगवन् ! वह रुक्मी वर्षधर पर्वत क्यों कहा जाता है ? गौतम ! रुक्मी वर्षधर पर्वत रजत-निष्पन्न रजत की ज्यों आभामय एवं सर्वथा रजतमय है । वहाँ पल्योपमस्थितिक रुक्मी नामक देव निवास करता है, इसलिए वह रुक्मी वर्षधर पर्वत कहा जाता है । भगवन ! जम्बदीप का हैरण्यवत क्षेत्र कहाँ है? गौतम ! रुक्मी वर्षधर पर्वत के उत्तर में, शिखरी वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, पूर्वी लवणसमुद्र के पश्चिम में तथा पश्चिमी लवणसमुद्र के पूर्व में है । उसकी जीवा दक्षिण में है, धनुपृष्ठभाग उत्तर में है। बाकी वर्णन हैमवत-सदृश है।। हैरण्यवत क्षेत्र में माल्यवत्पर्याय वृत्तवैताढ्य पर्वत कहाँ है ? गौतम ! सुवर्णकला महानदी के पश्चिम में, रूप्यकूला महानदी के पूर्व में हैरण्यवत क्षेत्र के बीचोंबीच है । शब्दापाती वृत्त वैताढ्य के समान माल्यवत्पर्याय है। वहाँ परम ऋद्धिशाली, एक पल्योपम आयुष्ययुक्त प्रभास देव निवास करता है । इन कारणों से वह माल्यवत्पर्याय वृत्त वैताढ्य कहा जाता है । राजधानी उत्तर में है । हैरण्यवत क्षेत्र नाम किस कारण कहा जाता है ? गौतम ! हैरण्यवत क्षेत्र रुक्मी तथा शिखरी वर्षधर पर्वतों से दो ओर से घिरा हुआ है । वह नित्य हिरण्य-देता है, नित्य स्वर्ण प्रकाशित करता है, जो स्वर्णमय शिलापट्टक आदि के रूप में वहाँ यौगलिक मनुष्यों के शय्या, आसन आदि उपकरणों के रूप में उपयोग में आता है, वहाँ हैरण्यवत देव निवास करता है, इसलिए वह हैरण्यवत क्षेत्र कहा मुनि दीपरत्नसागर कृत् ' (जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 72
SR No.034685
Book TitleAgam 18 Jambudwippragnapti Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages105
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 18, & agam_jambudwipapragnapti
File Size3 MB
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