________________
आगम सूत्र १८, उपांगसूत्र-७, 'जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति'
वक्षस्कार/सूत्र नीलवान वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, माल्यवान वक्षस्कार पर्वत के पूर्व में तथा चित्रकूट वक्षस्कार पर्वत के पश्चिम में है । अवशेष वर्णन पूर्ववत् । जम्बूद्वीप के महाविदेह क्षेत्र में उत्तरार्धकच्छविजय में सिन्धुकुण्ड कहाँ है ? गौतम ! माल्यवान वक्षस्कार पर्वत के पूर्व में, ऋषभकूट के पश्चिम में, नीलवान वर्षधर पर्वत के दक्षिणी नितम्ब में है । वह साठ योजन लम्बा-चौड़ा है । उस सिन्धुकुण्ड के दक्षिणी तोरण से सिन्धु महानदी निकलती है । उत्तरार्ध कच्छ विजय में बहती है । उसमें वहाँ ७००० नदियाँ मिलती हैं । वह उनसे आपूर्ण होकर नीचे तिमिस्रगुहा से होती हुई वैताढ्य पर्वत के विदीर्ण कर-दक्षिणार्ध कच्छ विजय में जाती है । वहाँ १४००० नदियों से युक्त होकर वह दक्षिण में शीता महानदी में मिल जाती है । सिन्धु महानदी अपने उद्गम तथा संगम पर प्रवाह में भरत क्षेत्रवर्ती सिन्धु महानदी के सदृश है।
भगवन् ! उत्तरार्ध कच्छ विजय में ऋषभकूट पर्वत कहाँ है ? गौतम ! सिन्धुकूट के पूर्व में, गंगाकूट के पश्चिम में, नीलवान वर्षधर पर्वत के दक्षिणी ढलान में है। वह आठ योजन ऊंचा है। उसकी राजधा उत्तरार्ध कच्छविजय में गंगाकुण्ड कहाँ है ? गौतम ! चित्रकूट वक्षस्कार पर्वत के पश्चिम में, ऋषभकूट पर्वत के पूर्व में, नीलवान वर्षधर पर्वत के दक्षिणी ढलान में है । वह ६० योजन लम्बा-चौड़ा है । वह एक वनखण्ड द्वारा परिवेष्टित है-भगवन् ! वह कच्छविजय क्यों कहा जाता है ? गौतम ! कच्छविजय में वैताढ्य पर्वत के दक्षिण में, शीता महानदी के उत्तर में, गंगा महानदी के पश्चिम में, सिन्धु महानदी के पूर्व में दक्षिणार्ध कच्छ विजय के बीचोंबीच उसकी क्षेमा राजधानी है । क्षेमा राजधानी में कच्छ नामक षट्खण्ड-भोक्ता चक्रवर्ती राजा समुत्पन्न होता है-कच्छविजय में परम समृद्धिशाली, एक पल्योपम आयु-स्थितियुक्त कच्छ देव निवास करता है । अथवा उसका कच्छविजय नाम नित्य है, शाश्वत है। सूत्र-१७०
भगवन् ! जम्बूद्वीप के महाविदेह क्षेत्रमें चित्रकूट वक्षस्कार पर्वत कहाँ है ? गौतम ! शीता महानदी के उत्तर में, नीलवान वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, कच्छविजय के पूर्वमें तथा सुकच्छविजय के दक्षिण में है । वह उत्तर-दक्षिण लम्बा तथा पूर्व-पश्चिम चौड़ा है । १६५९२ योजन लम्बा है, ५०० योजन चौड़ा है, नीलवान वर्षधर पर्वत के पास ४०० योजन ऊंचा है तथा ४०० कोश जमीन में गहरा है । तत्पश्चात् ऊंचाई एवं गहराई में क्रमशः बढ़ता जाता है । शीतामहानदी पास वह ५०० योजन ऊंचा, ५०० कोश जमीनमें गहरा हो जाता है । उसका आकार घोड़े के कन्धे जैसा है, वह सर्वरत्नमय है । वह अपने दोनों ओर दो पद्मवरवेदिकाओं से तथा दो वन-खण्डों से घिरा है। चित्रकूट वक्षस्कार पर्वत के ऊपर बहुत समतल एवं सुन्दर भूमिभाग है । वहाँ देव-देवियाँ आश्रय लेते हैं, विश्राम करते हैं।
चित्रकूट वक्षस्कार पर्वत के कितने कूट हैं ? गौतम ! चार - सिद्धायतनकूट, चित्रकूट, कच्छकूट तथा सुकच्छकूट । ये परस्पर उत्तर-दक्षिण में एक समान हैं । पहला सिद्धायतनकूट शीता महानदी के उत्तर में तथा चौथा सुकच्छकूट नीलवान वर्षधर पर्वत के दक्षिण में है । चित्रकूट नामक देव वहाँ निवास करता है। सूत्र-१७१
भगवन् ! जम्बूद्वीप के महाविदेह क्षेत्र में सुकच्छ विजय कहाँ है ? गौतम ! शीता महानदी के उत्तर में, नीलवान वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, ग्राहावती महानदी के पश्चिम में तथा चित्रकूट वक्षस्कार पर्वत के पूर्व में है। वह उत्तर-दक्षिण लम्बा है । क्षेमपुरा उसकी राजधानी है । वहाँ सुकच्छ नामक राजा समुत्पन्न होता है । बाकी कच्छ विजय की ज्यों हैं।
भगवन् ! जम्बूद्वीप के महाविदेह क्षेत्र में ग्राहावतीकुण्ड कहाँ है ? गौतम ! सुकच्छविजय के पूर्व में, महाकच्छ विजय के पश्चिम में नीलवान वर्षधर पर्वत के दक्षिणी ढलान में है । उस के दक्षिणी तोरण-द्वार से ग्राहावती महानदी निकलती है । वह सुकच्छ महाकच्छ विजय को दो भागों में विभक्त है । उसमें २८००० नदियाँ मिलती हैं । वह उनसे आपूर्ण होकर दक्षिण में शीता महानदी से मिल जाती है । ग्राहावती महानदी उद्गम-स्थान
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
Page 63