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आगम सूत्र १८, उपांगसूत्र-७, 'जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति'
वक्षस्कार/सूत्र आयुधशाला थी, जहाँ चक्ररत्न था, वहाँ के लिए चला । राजा भरत के पीछे-पीछे बहुत से ऐश्वर्यशाली विशिष्ट जन चल रहे थे। उनमें से किन्हीं-किन्हीं के हाथों में पद्म, यावत् शतसहस्रपत्र कमल थे । बहुत सी दासियाँ भी साथ थीं। सूत्र-५७, ५८
उनमें से अनेक कुबड़ी, अनेक किरात देश की, अनेक बौनी, अनेक कमर से झुकी थी, अनेक बर्बर देश की, बकुश, यूनान, पलव, इसिन, थारुकिनिक देश की थी । लासक देश की, लकुश, सिंहल, द्रविड़, अरब, पुलिन्द, पक्कण, बहल, मुरुंड, शबर, पारस-यों विभिन्न देशों की थीं। सूत्र-५९
इनके अतिरिक्त कतिपय दासियाँ तेल-समुद्गक, कोष्ठ, पत्र, चोय, तगर, हरिताल, हिंगुल, मैनसिल, तथा सर्षप समुद्गक लियें थीं । कतिपय दासियों के हाथों में तालपत्र, धूपकडच्छुक-धूपदान थे। सूत्र-६०
। उनमें से किन्हीं-किन्हीं के हाथों में मंगलकलश, शृंगार, दर्पण, थाल, छोटे पात्र, सुप्रतिष्ठक, वातकरक, रत्न करंडक, फूलों की डलियाँ, माला, वर्ण, चूर्ण, गन्ध, वस्त्र, आभूषण, मोर-पंखों से बनी फूलों की गुलदस्तों से भरी डलियाँ, मयूरपिच्छ, सिंहासन, छत्र, चँवर तथा तिलसमुद्गक-आदि भिन्न-भिन्न वस्तुएं थीं। यों वह राजा भरत सब प्रकार की ऋद्धि, द्युति, बल, समुदय, आदर, विभूषा, वैभव, वस्त्र, पुष्प, गन्ध, अलंकार-इस सबकी शोभा से युक्त कलापूर्ण शैली में साथ बजाये गये शंख, प्रणव, पटह, भेरी, झालर, खरमुखी, मुरज, मृदंग, दुन्दुभि के निनाद के साथ जहाँ आयुधशाला थी, वहाँ आया।
चक्ररत्न की ओर देखते ही, प्रणाम किया, मयूरपिच्छ द्वारा चक्ररत्न को झाड़ा-पोंछा, दिव्य जल-धारा द्वारा सिंचन किया, सरस गोशीर्ष-चन्दन से अनुलेपन किया, अभिनव, उत्तम सुगन्धित द्रव्यों और मालाओं से उसकी अर्चा की, पुष्प चढ़ाये, माला, गन्ध, वर्णक एवं वस्त्र चढ़ाये, आभूषण चढ़ाये | चक्ररत्न के सामने उजले, स्निग्ध, श्वेत, रत्नमय अक्षत चावलों से स्वस्तिक, श्रीवत्स, नन्दावर्त, वर्धमानक, भद्रासन, मत्स्य, कलश, दर्पण-इन अष्ट मंगलों का आलेखन किया । गुलाब, मल्लिका, चंपक, अशोक, पुन्नाग, आम्रमंजरी, नवमल्लिका, बकुल, तिलक, कणवीर, कुन्द, कुब्जक, कोरंटक, पत्र, दमनक-ये सुरभित-सुगन्धित पुष्प राजा ने हाथ में लिये, चक्ररत्न के आगे बढ़ाये, इतने चढ़ाये कि उन पंचरंगे फूलों का चक्ररत्न के आगे जानु-प्रमाण-ऊंचा ढेर लग गया।
तदनन्तर राजा ने धूपदान हाथ में लिया जो चन्द्रकान्त, वज्र-हीरा, वैडूर्य रत्नमय दंडयुक्त, विविध चित्रांकन
संयोजित स्वर्ण, मणि एवं रत्नयुक्त, काले अगर, उत्तम कुन्दरक, लोबान तथा धूप की महक से शोभित, वैडूर्य मणि से निर्मित था । आदरपूर्वक धूप जलाया, धूप जलाकर सात-आठ कदम पीछे हटा, बायें घूटने को ऊंचा किया, यावत् चक्ररत्न को प्रणाम किया । आयुधशाला से निकला, बाहरी उपस्थानशाला में आकर पूर्वाभिमुख हो सिंहासन पर विधिवत् बैठा । अठारह श्रेणिप्रश्रेणि के प्रजाजनों को बुलाकर कहा
देवानुप्रियों ! चक्ररत्न के उत्पन्न होने के उपलक्ष्य में तुम सब महान विजय का संसूचक अष्ट दिवसीय महोत्सव आयोजित करो । 'इन दिनों राज्य में कोई भी क्रय-विक्रय आदि सम्बन्धी शुल्क, राज्य-कर नहीं लिया जायेगा । आदान-प्रदान का, नाप-जोख का क्रम बन्द रहे, राज्य के कर्मचारी, अधिकारी किसी घर में प्रवेश न करे, दण्ड, कुदण्ड नहीं लिये जायेंगे । ऋणी को ऋण-मुक्त कर दिया जाए । नृत्यांगनाओं के तालवाद्य-समन्वित नाटक, नृत्य आदि आयोजित कर समारोह को सुन्दर बनाया जाए, यथाविधि समुद्भावित मृदंग-से महोत्सव को गुंजा दिया जाए । नगरसज्जा में लगाई गई या पहनी गई मालाएं कुम्हलाई हुई न हों, ताजे फूलों से बनी हों । यों प्रत्येक नगरवासी और जनपदवासी प्रमुदित हो आठ दिन तक महोत्सव मनाएं । राजा भरत द्वारा यों कहे जाने पर वे अठारह श्रेणि-प्रश्रेणि के प्रजाजन हर्षित हुए, विनयपूर्वक राजा का वचन शिरोधार्य किया । उन्होंने राजा की आज्ञानुसार अष्ट दिवसीय महोत्सव की व्यवस्था की, करवाई।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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