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________________ आगम सूत्र १८, उपांगसूत्र-७, 'जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति' वक्षस्कार/सूत्र विच्छिन्न हो जाता है। सूत्र-४९ गौतम ! पंचम आरक के २१००० वर्ष व्यतीत हो जाने पर अवसर्पिणी काल का दुःषम-दुःषमा नामक छठा आरक प्रारंभ होगा । उसमें अनन्त वर्णपर्याय, गन्धपर्याय, समपर्याय तथा स्पर्शपर्याय आदि का क्रमशः ह्रास होता जायेगा । भगवन् ! जब वह आरक उत्कर्ष की पराकाष्ठा पर पहुँचा होगा, तो भरतक्षेत्र का आकार-स्वरूप कैसा होगा ? गौतम ! उस समय दुःखार्त्ततावश लोगों में हाहाकार मच जायेगा, अत्यन्त दुःखोद्विग्नता से चीत्कार फैल जायेगा और विपुल जन-क्षय के कारण जन-शून्य हो जायेगा । तब अत्यन्त कठोर, धूल से मलिन, दुस्सह, व्याकुल, भयंकर वायु चलेंगे, संवर्तक वायु चलेंगे । दिशाएं अभीक्ष्ण धुंआ छोड़ती रहेंगी । वे सर्वथा रज से भरी, धूल से मलिन तथा घोर अंधकार के कारण प्रकाशशून्य हो जाएंगी । चन्द्र अधिक अपथ्य शीत छोड़ेंगे । सूर्य अधिक असह्य रूप में तपेंगे। गौतम ! उसके अनन्तर अरसमेघ, विरसमेघ, क्षारमेघ, खात्रमेघ, अग्निमेघ, विद्युन्मघ, विषमेघ, व्याधि, रोग, वेदनोत्पादक जलयुक्त, अप्रिय जलयुक्त मेघ, तूफानजनित तीव्र मधुर जलधारा छोड़नेवाले मेघ निरंतर वर्षा करेंगे। परतक्षेत्र में ग्राम, आकार, नगर, खेट कर्वट, मडम्ब, द्रोणमुख, पटन, आश्रमगत जनपद, चौपाये प्राणी, खेचर, पक्षियों के समूह, त्रस जीव, बहुत प्रकार के वृक्ष, गुच्छ, गुल्म, लताएं, बेलें, पत्ते, अंकुर इत्यादि बादर वानस्पतिक जीव, वनस्पतियाँ, औषधियाँ-इन सबका वे विध्वंस कर देंगे | वैताढ्य आदि शाश्वत पर्वतों के अतिरिक्त अन्य पर्वत, गिरि, डूंगर, उन्नत स्थल, टींबे, भ्राष्ट्र, पठार, इन सब को तहस-नहस कर डालेंगे। गंगा और सिन्धु महानदी के अतिरिक्त जल के स्रोतों, झरनों, विषमगर्त, नीचे-ऊंचे जलीय स्थानों को समान कर देंगे। भगवन्! उस काल में भरतक्षेत्र की भूमि का आकार-स्वरूप कैसा होगा ? गौतम ! भूमि अंगारभूत, मुर्मुरभूत, क्षारिकभूत, तप्तकवेल्लुकभूत, ज्वालामय होगी । उसमें धूलि, रेणु, पंक और प्रचुर कीचड़ की बहुलता होगी। प्राणियों का उस पर चलना बड़ा कठिन होगा । उस काल में भरतक्षेत्र में मनुष्यों का आकार-स्वरूप कैसा होगा? गौतम ! उस समय मनुष्यों का रूप, रंग, गंध, रस तथा स्पर्श अनिष्ट, अकान्त, अप्रिय, अमनोज्ञ तथा अमनोऽम होगा । उनका स्वर हीन, दीन, अनिष्ट, अकान्त, अप्रिय, अमनोगम्य और अमनोज्ञ होगा । उनका वचन अनादेय-होगा । वे निर्लज्ज, कूट, कपट, कलह, बन्ध तथा वैर में निरत होंगे । मर्यादाएं लाँघने, तोड़ने में प्रधान, अकार्य करने में सदा उद्यत एवं गुरुजन के आज्ञापालन और विनय से रहित होंगे। वे विकलरूप, काने, लंगड़े, चतुरंगुलिक आदि, बढ़े हुए नख, केश तथा दाढ़ी-मूंछ युक्त, काले, कठोर स्पर्शयुक्त, सलवटों के कारण फूटे हुए से मस्तक युक्त, धूएं के से वर्ण वाले तथा सफेद केशों से युक्त, अत्यधिक स्नायुओं परिबद्ध, झुर्रियों से परिव्याप्त अंग युक्त, जरा-र्जर बूढ़ों के सदृश, प्रविल तथा परिशटित दन्तश्रेणी युक्त, घड़े के विकृत मुख सदृश, असमान नेत्रयुक्त, वक्र-टेढ़ी नासिकायुक्त, भीषण मुखयुक्त, दाद, खाज, सेहुआ आदि से विकृत, कठोर धर्मयुक्त, चित्रल अवयवमय देहयुक्त, चर्मरोग से पीड़ित, कठोर, खरोंची हुई देहयुकल्टोलगति, विषम, सन्धि बन्धनयुक्त, अयथावत् स्थित अस्थियुक्त, पौष्टिक भोजनरहित, शक्तिहीन, कुत्सित ऐसे संहनन, परिमाण, संस्थान रूप, आश्रय, आसन, शय्या तथा कुत्सित भोजनसेवी, अशुचि, व्याधियों से पीड़ित, विह्वल गतियुक्त, उत्साह-रहित, सत्त्वहीन, निश्चेष्ट, नष्टतेज, निरन्तर शीत, उष्ण, तीक्ष्ण, कठोर वायु से व्याप्त शरीरयुक्त, मलिन धूलि से आवृत्त देहयुक्त, बहुत क्रोधी, अहंकारी, मायावी, लोभी तथा मोहमय, अत्यधिक दुःखी, प्रायः धर्मसंज्ञा-तथा सम्यक्त्व से परिभ्रष्ट होंगे । उत्कृष्टतः उनका देह-परिमाण-एक हाथ होगा । उनका अधिकतम आयुष्य-स्त्रियों का सोलह वर्ष का तथा पुरुषों का बीस वर्ष का होगा । अपने बहुपुत्र-पौत्रमय परिवार में उनका बड़ा प्रणय रहेगा । वे गंगा, सिन्धु के तट तथा वैताढ्य पर्वत के आश्रय में बिलों में रहेंगे। भगवन् ! वे मनुष्य क्या आहार लेंगे ? गौतम ! उस काल में गंगा और सिन्धु दो नदियाँ रहेंगी। रथ चलने के लिए अपेक्षित पथ जितना विस्तार होगा । रथचक्र के छेद जितना गहरा जल रहेगा । उसमें अनेक मत्स्य तथा मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 22
SR No.034685
Book TitleAgam 18 Jambudwippragnapti Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages105
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 18, & agam_jambudwipapragnapti
File Size3 MB
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