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________________ आगम सूत्र १७, उपांगसूत्र-६, 'चन्द्रप्रज्ञप्ति' प्राभृत/प्राभृतप्राभृत/सूत्र मनुष्यक्षेत्र की बाहिर जो चंद्र-सूर्य-ग्रह-नक्षत्र और तारारूप ज्योतिष्क देव हैं, वे भी विमानोपपन्नक एवं चार स्थितिक होते हैं, किन्तु वे गतिरतिक या गतिसमापन्नक नहीं होते, पक्व इंट के आकार के समान संस्थित, लाखों योजन के तापक्षेत्रवाले, लाखों संख्या में बाहिर विकुर्वित पर्षदा यावत् दिव्यध्वनि से युक्त भोग भोगते हुए विचरण करते हैं । वे शुक्ललेश्या-मन्दलेश्या-आश्चर्यकारी लेश्या आदि से अन्योन्य समवगाढ होकर, कूड की तरह स्थानस्थित होकर उस प्रदेश को सर्व तरफ से प्रकाशित, उद्योतीत, तापीत एवं अवभासित करते हैं । इन्द्र के विरह में पूर्ववत् कथन समझ लेना। सूत्र-१९८ पुष्करोद नामक समुद्र वृत्त एवं वलयाकार है, वह चारो तरफ से पुष्करवर द्वीप को घीरे हुए स्थित है। समचक्रवाल संस्थित है, उसका चक्रवाल विष्कम्भ संख्यात हजार योजन का है, परिधि भी संख्यात हजार योजन की है | उस पुष्करोद समुद्र में संख्यात चंद्र यावत् संख्यात तारागण कोड़ाकोड़ी शोभित हए थे-होते हैं और होंगे । इसी अभिलाप से वरुणवरद्वीप, वरुणवरसमुद्र,खीखरद्वीप,खीखरसमुद्र, घृतवरद्वीप, घृतवरसमुद्र,खोदवरद्वीप,खोदोदसमुद्र, नंदीश्वरद्वीप, नंदीश्वरसमुद्र, अरुणद्वीप, अरुणोदसमुद्र यावत् कुण्डलवरावभास समुद्र समझ लेना। कुण्डलवरावभास समुद्र को घीरकर रुचक नामक वृत्त-वलयाकार एवं समचक्रवाल द्वीप है, उसका आयामविष्कम्भ और परिधि दोनों असंख्य हजार योजन के हैं । उसमें असंख्य चंद्र यावत् असंख्य तारागण कोड़ा कोड़ी समाविष्ट हैं । इसी प्रकार रुचकसमुद्र, रुचकवरद्वीप, रुचकवरसमुद्र, रुचकवरावभास द्वीप, रुचकवरावभास समुद्र यावत् सूखरावभास द्वीप तथा सूरवरावभास समुद्र को समझ लेना । सूरवरावभास समुद्र, देव नामक द्वीप से चारों तरफ से घीरा हुआ है, यह देवद्वीप वृत्त-वलयाकार एवं समचक्रवाल संस्थित हैं, चक्रवाल विष्कम्भ से एवं परिधि से असंख्य हजार योजन प्रमाण है । इस देवद्वीप में असंख्येय चंद्र यावत् असंख्येय तारागण स्थित हैं । इसी प्रकार से देवोदसमुद्र यावत् स्वयंभूरमण समुद्र को समझ लेना । प्राभृत-१९-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण मुनि दीपरत्नसागर कृत्" (चन्द्रप्रज्ञप्ति) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 48
SR No.034684
Book TitleAgam 17 Chandrapragnapti Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 17, & agam_chandrapragnapti
File Size2 MB
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