SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम सूत्र १६, उपांगसूत्र-५, 'सूर्यप्रज्ञप्ति' प्राभृत/प्राभृतप्राभृत/सूत्र प्राभृत-१२ सूत्र - ९९ हे भगवन ! कितने संवत्सर कहे हैं ? निश्चय से यह पाँच संवत्सर कहे हैं नक्षत्र, चंद्र, ऋत, आदित्य और अभिवर्धित । प्रथम नक्षत्र संवत्सर का नक्षत्र मास तीस मुहर्त अहोरात्र प्रमाण से सत्ताईस रात्रिदिन एवं एक रात्रि-दिन के इक्कीस सडसठांश भाग से रात्रिदिन कहे हैं । वह नक्षत्र मास ८१९ मुहूर्त एवं एक मुहूर्त के सत्ताईस सडसट्ठांश भाग महत परिमाण से कहा गया है। इस महत परिमाण रूप अन्तर को बारह गना करके नक्षत्र संवत्सर परिमाण न होता है, उसके ३२७ अहोरात्र एवं एक अहोरात्र के इकावन बासठांश भाग प्रमाण कहा है और उसके मुहूर्त ९८३२ एवं एक मुहर्त के छप्पन सडसठांश भाग प्रमाण होते हैं। चंद्र संवत्सर का चन्द्रमास तीस मुहूर्त अहोरात्र से गिनते हुए उनतीस रात्रिदिन एवं एक रात्रिदिन के बत्तीस बासठांश भाग प्रमाण है । उसका मुहूर्त्तप्रमाण ८५० मुहूर्त एवं एक मुहूर्त के तैंतीस छासठांश भाग प्रमाण कहा है, इसको बारह गुना करने से चन्द्र संवत्सर प्राप्त होता है, जिनका रात्रिदिन प्रमाण ३५४ अहोरात्र एवं एक रात्रि के बारह बासठांश भाग प्रमाण है, इसी तरह मुहूर्त प्रमाण भी कह लेना। तृतीय ऋतु संवत्सर का ऋतुमास तीस मुहूर्त्त प्रमाण अहोरात्र से गीनते हुए तीस अहोरात्र प्रमाण कहा है, उसका मुहूर्त प्रमाण ९०० है, इस मुहूर्त को बारह गुना करके ऋतु संवत्सर प्राप्त होता है, जिनके रात्रिदिन ३६० है और मुहूर्त १०८०० है। चौथे आदित्य संवत्सर का आदित्य मास तीस मुहूर्त प्रमाण से गीनते हुए तीस अहोरात्र एवं अर्ध अहोरात्र प्रमाण है, उनका मुहूर्त प्रमाण ९१६ है, इसको बारह गुना करके आदित्य संवत्सर प्राप्त होता है, जिनके दिन ३६६ और मुहूर्त १०९८० होते हैं। पाँचवां अभिवर्धित संवत्सर का अभिवर्धित मास तीस मुहूर्त्त अहोरात्र से गीनते हुए इकतीस रात्रिदिन एवं उनतीस मुहूर्त तथा एक मुहूर्त के सत्तरह बासठांश भाग प्रमाण कहा है, मुहूर्त प्रमाण ९५९ मुहूर्त एवं एक मुहूर्त के सत्तरह बासठांश भाग है, इनको बारह गुना करने से अभिवर्धित संवत्सर प्राप्त होता है, उनके रात्रिदिन ३८३ एवं इक्कीस मुहूर्त तथा एक मुहूर्त के अट्ठारह बासठांश भाग प्रमाण है, इसी तरह मुहूर्त भी कह लेना। सूत्र-१०० समस्त पंच संवत्सरों का एक युग १७९१ अहोरात्र एवं उन्नीस मुहूर्त तथा एक मुहूर्त के सत्तावन बासठांश भाग तथा बासठवें भाग को सडसठ से विभक्त करके पचपन चूर्णिका भाग अहोरात्र प्रमाण है । उसके मुहूर्त ५३७४९ एवं एक मुहूर्त के सत्तावन बासठांश भाग तथा बांसठवे भाग के पचपन सडसठांश भाग प्रमाण है । अहोरात्र युग प्रमाण अडतीस अहोरात्र एवं दश मुहूर्त तथा एक मुहूर्त के चार बासठांश भाग तथा बासठवें भाग के बारह सडसठांश भाग है । इसका मुहूर्त प्रमाण ११५० मुहूर्त एवं एक मुहूर्त के चार बासठांश भाग तथा बासठवें भाग को सडसठ से विभक्त करके बारह चूर्णिका भाग है । रात्रिदिन का प्रमाण १८३० है, तथा ५४९०० मुहूर्त प्रमाण। सूत्र-१०१ एक युग में साठ सौरमास और बासठ चांद्रमास होते हैं । इस समय को छह गुना करके बारह से विभक्त करने से तीस आदित्य संवत्सर और इकतीस चांद्र संवत्सर होते हैं । एक युग में साठ आदित्य मास, एकसठ ऋतु मास, बासठ चांद्रमास और सडसठ नक्षत्र मास होते हैं और इसी प्रकार से साठ आदित्य संवत्सर यावत् सडसठ नक्षत्र संवत्सर होते हैं । अभिवर्धित संवत्सर सत्तावन मास, सात अहोरात्र, ग्यारह मुहूर्त एवं एक मुहूर्त के तेईस बासठांश भाग प्रमाण है, आदित्य संवत्सर साठ मास प्रमाण है, ऋतु संवत्सर एकसठ मास प्रमाण है, चांद्र संवत्सर बासठ मास प्रमाण है और नक्षत्र संवत्सर सडसठ मास प्रमाण है । इस समय को १५६ से गुणित करके तथा बार से विभाजित करके अभिवर्धित आदि संवत्सर का प्रमाण प्राप्त होता है। मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (सूर्यप्रज्ञप्ति) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 35
SR No.034683
Book TitleAgam 16 Suryapragnati Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages51
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 16, & agam_suryapragnapti
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy