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________________ आगम सूत्र १६, उपांगसूत्र-५, 'सूर्यप्रज्ञप्ति' प्राभृत/प्राभृतप्राभृत/सूत्र प्राभृत-१०- प्राभृत-प्राभृत-१० सूत्र-५३ नक्षत्ररूप नेता किस प्रकार से कहे हैं ? वर्षा के प्रथम याने श्रावण मास को कितने नक्षत्र पूर्ण करते हैं ? चारउत्तराषाढ़ा, अभिजीत, श्रवण और घनिष्ठा । उत्तराषाढ़ा चौदह अहोरात्र से, अभिजीत सात अहोरात्र से, श्रवण आठ और घनिष्ठा एक अहोरात्र से स्वयं अस्त होकर श्रावण मास को पूर्ण करते हैं । श्रावण मास में चार अंगुल पौरुषी छाया से सूर्य वापस लौटता है, उसके अन्तिम दिनों में दो पाद और चार अंगुल पौरुषी होती है। इसी प्रकार भाद्रपद मास को घनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा तथा उत्तराभाद्रपद समाप्त करते हैं, इन नक्षत्र के क्रमशः अहोरात्र चौद, सात, आठ और एक हैं, भाद्रपद मास की पौरुषी छाया आठ अंगुल और चरिमदिन की दो पाद और आठ अंगुल । आसो मास को उत्तराभाद्रपद, रेवती और अश्विनी नक्षत्र क्रमशः चौदह, पन्द्रह और एक अहोरात्र से पूर्ण करते हैं, पौरुषी छाया प्रमाण बारह अंगुल और अन्तिमदिन का तीन पाद । कार्तिक मास को अश्विनी, भरणी और कृतिका क्रमशः चौद, पन्द्रह और एक अहोरात्र से पूर्ण करते हैं, पौरुषी छाया प्रमाण सोलह अंगुल और अन्तिम पाद चार अंगुल । हेमन्त के प्रथम याने मार्गशिर्ष मास को कृतिका, रोहिणी और संस्थान (मृगशीर्ष) नक्षत्र क्रमशः चौदह, पन्द्रह और एक अहोरात्र से स्वयं अस्त होकर पूर्ण करते हैं, मागशीर्ष मास की पौरुषी छाया प्रमाण त्रिपाद एवं आठ अंगुल हैं । पौष मास को मृगशिर्ष, आर्द्रा, पुनर्वसु और पुष्य क्रमशः, चौद, सात, आठ और एक अहोरात्र से पूर्ण करते हैं, पौरुषी छाया प्रमाण चौबीस अंगुल और अन्तिम दिन का चारपादा माघ मास को पुष्य, आश्लेषा और मघा नक्षत्र क्रमशः चौदह, पन्द्रह और एक अहोरात्र से पूर्ण करते हैं, पौरुषी छाया प्रमाण बीस अंगुल और अन्तिम दिन का त्रिपाद-आठ अंगुल । फाल्गुन मास को मघा, पूर्वा और उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र क्रमश: चौदह, पन्द्रह और एक अहोरात्र से पूर्ण करते हैं, पौरुषी छाया प्रमाण १६ अंगुल और अन्तिम दिन का त्रिपाद एवं ४ अंगुल | ग्रीष्म के प्रथम याने चैत्र मास को उत्तराफाल्गुनी, हस्त और चित्रा नक्षत्र क्रमशः चौदह, पन्द्रह और एक अहोरात्र से स्वयं अस्त होकर पूर्ण करते हैं, चैत्र मास की पौरुषी छाया का प्रमाण बारह अंगुल का है और उसके अन्तिम दिन में त्रिपाद प्रमाण पौरुषी होती है । वैशाख मास को चित्रा, स्वाति और विशाखा नक्षत्र चौदह, पन्द्रह और एक अहोरात्र से पूर्ण करते हैं, पौरुषी छाया प्रमाण आठ अंगुल और अन्तिम दिन का दो पाद एवं आठ अंगुल। ज्येष्ठ मास को विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा और मूल नक्षत्र क्रमश: चौदह, सात, आठ और एक अहोरात्र से पूर्ण करते हैं, पौरुषी छाया प्रमाण चार अंगुल और अन्तिम दिने द्विपाद चार अंगुल पौरुषी । अषाढ़ मास को मूल, पूर्वा और उत्तराषाढ़ा नक्षत्र चौदह, पन्द्रह और एक अहोरात्र से पूर्ण करते हैं, पौरुषी छाया प्रमाण वृत्ताकार, समचतुरस्र, न्यग्रोध परिमंडलाकार हैं और अन्तिम दिन को द्विपाद पौरुषी होती है। प्राभृत-१०- प्राभृत-प्राभृत-११ सूत्र- ५४ चन्द्र का गमन मार्ग किस प्रकार से है ? इन अट्ठाईस नक्षत्रों में चंद्र को दक्षिण आदि दिशा से योग करने-वाले भिन्नभिन्न नक्षत्र इस प्रकार हैं-जो सदा चन्द्र की दक्षिण दिशा से व्यवस्थित होकर योग करते हैं ऐसे छह नक्षत्र हैंमृगशिर्ष, आर्द्रा, पुष्य, अश्लेषा, हस्त और मूल | अभिजीत, श्रवण, घनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा-उत्तराभाद्रपदा, रेवती, अश्विनी, भरणी, पूर्वा-उत्तराफाल्गुनी और स्वाति यह बारह नक्षत्र सदा चंद्र की उत्तर दिशा से योग करते हैं । कृतिका, रोहिणी, पुनर्वसु, मघा, चित्रा, विशाखा और अनुराधा ये सात नक्षत्र चन्द्र के साथ दक्षिण और उत्तर दिशा से एवं प्रमर्दरूप योग करते हैं । पूर्वा और उत्तराषाढ़ा चंद्र को दक्षिण से एवं प्रमर्दरूप योग करते हैं । यह सब सर्वबाह्य मंडल में योग करते थे, करते हैं, करेंगे । चन्द्र के साथ सदा प्रमर्द योग करता हआ एक ही नक्षत्र है-ज्येष्ठा सूत्र - ५५ चन्द्रमंडल कितने हैं ? पन्द्रह । इन चन्द्रमंडलों में ऐसे आठ चन्द्रमंडल हैं जो सदा नक्षत्र से अविरहित होते हैंपहला, तीसरा, छठ्ठा, सातवां, आठवां, दसवां, ग्यारहवां और पन्द्रहवां । ऐसे सात चन्द्रमंडल हैं जो सदा नक्षत्र से मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (सूर्यप्रज्ञप्ति) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 27
SR No.034683
Book TitleAgam 16 Suryapragnati Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages51
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 16, & agam_suryapragnapti
File Size2 MB
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