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________________ आगम सूत्र १६, उपांगसूत्र-५, 'सूर्यप्रज्ञप्ति' प्राभृत/प्राभृतप्राभृत/सूत्र प्राभृत-९ सूत्र-४० कितने प्रमाणयुक्त पुरुषछाया से सूर्य परिभ्रमण करता है ? इस विषय में तीन प्रतिपत्तियाँ हैं । एक मत-वादी यह कहता है कि जो पुद्गल सूर्य की लेश्या का स्पर्श करता है वही पुदगल उससे संतापित होते हैं । संतप्य-मान पुद्गल तदनन्तर बाह्य पुद्गलों को संतापित करता है । यही वह समित तापक्षेत्र है । दूसरा कोई कहता है कि जो पदगल सर्य की लेश्या का स्पर्श करता है, वह पदगल संतापित नहीं होते, वह असंतप्यमान पदगल से अनन्तर पदगल भी संतापित नहीं होते, यहीं है वह समित तापक्षेत्र । तीसरा कोई यह कहता है कि जो पुद्गल सूर्य की लेश्या का स्पर्श करता है, उनमें से कितनेक पुदगल संतप्त होते हैं और कितनेक नहीं होते । जो संतप्त हए हैं वे पुद्गल अनन्तर बाह्य पुदगलों में से किसीको संतापित करते हैं और किसीको नहीं करते, यहीं है वो समित ताप-क्षेत्र । भगवंत फरमाते हैं कि-जो ये चन्द्र-सूर्य के विमानों से लेश्या नीकलती है वह बाहर के यथोचित आकाश-क्षेत्र को प्रकाशित करती है, उन लेश्या के पीछे अन्य छिन्न लेश्याएं होती है, वह छिन्नलेश्याए बाह्य पुद्गलों को संतापित करती है, यहीं है उसका समित अर्थात उत्पन्न हआ तापक्षेत्र । सूत्र-४१ कितने प्रमाणवाली पौरुषी छाया को सूर्य निवर्तित करता है ? इस विषय में पच्चीस प्रतिपत्तियाँ हैं-जो छठे प्राभृत के समान समझ लेना । जैसे की कोई कहता है कि अनुसमय में सूर्य पौरुषी छाया को उत्पन्न करता है, इत्यादि। भगवंत फरमाते हैं कि सूर्य से उत्पन्न लेश्या के सम्बन्ध में यथार्थतया जानकर मैं छायोद्देश कहता हूँ । इस विषय में दो प्रतिपत्तियाँ हैं । एक कहता है कि-ऐसा भी दिन होता है जिसमें सूर्य चार पुरुष प्रमाण छाया को उत्पन्न करता है और ऐसा भी दिन होता है जिसमें दो पुरुष प्रमाण छाया को उत्पन्न करता है । दूसरा कहता है कि दो प्रकार दिन होते हैं - एक जिसमें सूर्य दो पुरुष प्रमाण छाया उत्पन्न करता है, दूसरा-जिसमें पौरुषी छाया उत्पन्न ही नहीं होती जो यह कहते हैं कि र पुरुषछाया भी उत्पन्न करता है और दो पुरुषछाया भी - उस मतानुसार - सूर्य जब सर्वाभ्यन्तर मंडल को संक्रमण करके गमन करता है तब उत्कृष्ट अट्ठारह मुहूर्त प्रमाण दिन और जघन्या बारह मुहूर्त्त प्रमाण रात्रि होती है, उस दिन सूर्य चार पौरुषीछाया उत्पन्न करता है । उदय और अस्तकाल में लेश्या की वृद्धि करके वहीं सूर्य जब सर्वबाह्य मंडल में गमन करता है, उत्कृष्टा अट्ठारह मुहर्त्त की रात्रि और जघन्य बारह मुहूर्त का दिन होता है तब दो पौरुषीछाया को सूर्य उत्पन्न करता है । जो यह कहते हैं कि सूर्य चार पौरुषी छाया उत्पन्न करता है और किंचित् भी नहीं उत्पन्न करता - उस मतानुसार - सर्वाभ्यन्तर मंडल को संक्रमण करके सूर्य गमन करता है तब रात्रि-दिन पूर्ववत् ही होते हैं, लेकिन उदय और अस्तकाल में लेश्या की अभिवृद्धि करके दो पौरुषीछाया को उत्पन्न करते हैं, जब वह सर्वबाह्य मंडल में गमन करता है तब लेश्या की अभिवृद्धि किए बिना, उदय और अस्तकाल में किंचित भी पौरुषी छाया को उत्पन्न नहीं करता। हे भगवन् ! फिर सूर्य कितने प्रमाण की पौरुषी छाया को निवर्तित करता है ? इस विषय में ९६ प्रति-पत्तियाँ हैं । एक कहता है कि ऐसा देश है जहाँ सूर्य एक पौरुषी छाया को निवर्तित करता है । दूसरा कहता है कि सूर्य दो पौरुषी छाया को निवर्तित करता है । ...यावत्.. ९६ पौरुषी छाया को निवर्तित करता है । इनमें जो एक पौरुषी छाया के निवर्तन का कथन करते हैं, उस मतानुसार-सूर्य के सबसे नीचे के स्थान से सूर्य के प्रतिघात से बाहर नीकली हुई लेश्या से ताड़ित हुई लेश्या, इस रत्नप्रभापृथ्वी के समभूतल भूभाग से जितने प्रमाणवाले प्रदेश में सूर्य ऊर्ध्व व्यवस्थित होता है, इतने प्रमाण से सम मार्ग से एक संख्या प्रमाणवाले छायानुमान से एक पौरुषी छाया को निवर्तित करता है । इसी प्रकार से इसी अभिलाप से ९६ प्रतिपत्तियाँ समझ लेना। भगवान् फिर फरमाते हैं कि-वह सूर्य उनसठ पौरुषी छाया को उत्पन्न करता है। अर्ध पौरुषी छाया दिवस का कितना भाग व्यतीत होने के बाद उत्पन्न होती है ? दिन का तीसरा भाग व्यतीत होने के बाद उत्पन्न होती है । पुरुष प्रमाण छाया दिन के चतुर्थ भाग व्यतीत होनी के बाद उत्पन्न होती है, द्वयर्द्धपुरुष प्रमाण छाया दिन का पंचमांश भाग मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (सूर्यप्रज्ञप्ति) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 22
SR No.034683
Book TitleAgam 16 Suryapragnati Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages51
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 16, & agam_suryapragnapti
File Size2 MB
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