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________________ आगम सूत्र १६, उपांगसूत्र-५, 'सूर्यप्रज्ञप्ति' प्राभृत/प्राभृतप्राभृत/सूत्र प्राभृत-८ सूत्र-३९ सूर्य की उदय संस्थिति कैसी है ? इस विषय में तीन प्रतिपत्तियाँ हैं । एक परमतवादी कहता है कि जब जंबूद्वीप के दक्षिणार्द्ध में अट्ठारह मुहूर्त का दिन होता है तब उत्तरार्द्ध में भी अट्ठारह मुहूर्त्त प्रमाण दिन होता है । जब उत्तरार्द्ध में अट्ठारह मुहूर्त का दिन होता है तब दक्षिणार्द्ध में भी अट्रारह महर्त्त का दिन होता है । जब जंबद्वीप के दक्षिणार्द्ध में सत्तरह मुहूर्त प्रमाण दिन होता है तब उत्तरार्द्ध में भी सत्तरह मुहूर्त का दिन होता है । इसी तरह उत्तरार्द्ध में सत्तरह मुहर्त का दिन होता है तब दक्षिणार्द्ध में भी समझना । इसी प्रकार से एक-एक मुहर्त की हानि करते-करते सोलह-पन्द्रह यावत् बारह मुहूर्त प्रमाण जानना । जब जंबूद्वीप के दक्षिणार्द्ध में बारह मुहूर्त का दिन होता है तब उत्तरार्द्ध में भी बारह मुहूर्त का दिन होता है और उत्तरार्द्ध में बारह मुहूर्त का दिन होता है तब दक्षिणार्द्ध में भी बारह मुहूर्त का दिन होता है । उस समय जंबूद्वीप के मेरु पर्वत के पूर्व और पश्चिम में हमेशा पन्द्रह मुहूर्त का दिन और पन्द्रह मुहूर्त की रात्रि अवस्थित रहती है। कोई दूसरा कहता है कि जंबूद्वीप के दक्षिणार्द्ध में जब अट्ठारह मुहूर्तान्तर दिन होता है तब उत्तरार्द्ध में भी अट्ठारहमुहूर्त्तान्तर दिन होता है और उत्तरार्द्ध में मुहर्त्तान्तर दिन होता है तब दक्षिणार्द्ध में भी अट्ठारह मुहूर्त्तान्तर का दिन होता है । इसी क्रम से इसी अभिलाप से सत्तरह-सोलह यावत् बारह मुहूर्त्तान्तर प्रमाण को पूर्ववत् समझ लेना। इन सब मुहूर्त प्रमाण काल में जंबूद्वीप के मेरु पर्वत के पूर्व और पश्चिम में सदा पन्द्रह मुहूर्त का दिन नहीं होता और सदा पन्द्रह मुहूर्त की रात्रि भी नहीं होती, लेकिन वहाँ रात्रिदिन का प्रमाण अनवस्थित रहता है। कोई मतवादी यह भी कहता है कि जब जंबूद्वीप के दक्षिणार्द्ध में अट्ठारह मुहूर्त का दिन होता है तब उत्तरार्द्ध में बारह मुहूर्त की रात्रि होती है और उत्तरार्द्ध अट्ठारह मुहूर्त का दिन होता है तब दक्षिणार्द्ध में बारह मुहूर्त की रात्रि होती है । जब दक्षिणार्द्ध में अट्ठारह मुहूर्त्तान्तर का दिन होता है तब उत्तरार्द्ध में बारह मुहूर्त प्रमाण रात्रि होती है, उत्तरार्द्ध में अट्ठारह मुहूर्तान्तर दिन होता है तब दक्षिणार्द्ध में बारह मुहूर्त प्रमाण रात्रि होती है । इसी प्रकार इसी अभिलाप से बारह मुहूर्त तक का कथन कर लेना यावत् जब दक्षिणार्द्ध में बारह मुहूर्तान्तर प्रमाण दिन होता है तब उत्तरार्द्ध में बार मुहूर्त प्रमाण की रात्रि होती है एवं मेरुपर्वत के पूर्व-पश्चिम में पन्द्रह मुहूर्त की रात्रि या दिन कभी नहीं होता, वहाँ रात्रिदिन अवस्थित हैं। ____ भगवंत फरमाते हैं कि जंबूद्वीप में इशान कोने में सूर्य उदित होता है वहाँ से अग्निकोने में जाता है, अग्नि कोने में उदित होकर नैऋत्य कोने में जाता है, नैऋत्य कोने में उदित होकर वायव्य कोने में जाता है और वायव्य कोने में उदित होकर इशान कोने में जाता है । जब जंबूद्वीप के दक्षिणार्द्ध में दिन होता है तब उत्तरार्द्ध में भी दिन होता है और जब उत्तरार्द्ध में दिन होता है तब मेरुपर्वत के पूर्व-पश्चिम में रात्रि होती है । जब दक्षिणार्द्ध में अट्ठारह मुहूर्त का दिन होता है तब उत्तरार्द्ध में भी अट्ठारह मुहूर्त का दिन होता है और उत्तरार्द्ध में अट्ठारह मुहूर्त का दिन होता है तब मेरु पर्वत के पूर्व-पश्चिम में जघन्या बारह मुहूर्त की रात्रि होती है । इसी तरह जब मेरु पर्वत के पूर्व-पश्चिम में जघन्या बारह मुहूर्त की रात्रि होती है । इसी तरह जब मेरु पर्वत के पूर्व-पश्चिम में उत्कृष्ट अट्ठारह मुहूर्त का दिन होता है, तब मेरुपर्वत के उत्तर-दक्षिण में जघन्या बारह मुहूर्त की रात्रि होती है । इसी क्रम से इसी प्रकार आलापक से समझ लेना चाहिए की जब अट्ठारह मुहूर्त्तान्तर दिवस होता है तब सातिरेक बारह मुहूर्त की रात्रि होती है, सत्तरह मुहूर्त का दिवस होता है तब तेरह मुहूर्त की रात्रि होती है...यावत्.. जघन्य बारह मुहूर्त का दिन होता है तब उत्कृष्ट अट्ठारह मुहूर्त की रात्रि होती है। जब इस जंबूद्वीप के दक्षिणार्द्ध में वर्षाकाल का प्रथम समय होता है तब उत्तरार्द्ध में भी वर्षाकाल का प्रथम समय होता है, जब उत्तरार्द्ध में वर्षाकाल का प्रथम समय होता है तब मेरुपर्वत के पूर्व-पश्चिम में अनन्तर पुरस्कृतकाल में वर्षाकाल का आरम्भ होता है; जब मेरुपर्वत के पूर्व-पश्चिम में वर्षाकाल का प्रथम समय होता है तब मेरुपर्वत के दक्षिण-उत्तर में अनन्तर पश्चातकृत् काल में वर्षाकाल का प्रथम समय समाप्त होता है । समय के कथनानुसार मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (सूर्यप्रज्ञप्ति) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 20
SR No.034683
Book TitleAgam 16 Suryapragnati Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages51
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 16, & agam_suryapragnapti
File Size2 MB
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