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________________ आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना' पद/उद्देश /सूत्र अद्धामिश्रिता और अद्धद्धामिश्रिता । भगवन् ! असत्यामृषा-अपर्याप्तिका भाषा कितने प्रकार की है ? गौतम ! बारह प्रकार की । यथासूत्र-३८७-३८८ आमंत्रणी, आज्ञापनी, याचनी, पृच्छनी, प्रज्ञापनी, प्रत्याख्यानी, इच्छानुलोमा, अनभिगृहीता, अभिगृहीता, संशयकरणी, व्याकृता और अव्याकृता भाषा। सूत्र-३८९ भगवन् ! जीव भाषक हैं या अभाषक ? गौतम ! दोनों । भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहते हैं ? गौतम! जीव दो प्रकार के हैं । संसारसमापन्नक और असंसारसमापन्नक । जो असंसारसमापन्नक जीव हैं, वे सिद्ध हैं और सिद्ध अभाषक होते हैं, जो संसारसमापन्नक जीव हैं, वे दो प्रकार के हैं-शैलेशीप्रतिपन्नक और अशैलेशीप्रतिपन्नक। जो शैलेषीप्रतिपन्नक हैं, वे अभाषक हैं । जो अशैलेशीप्रतिपन्नक हैं, वे दो प्रकार के हैं । एकेन्द्रिय और अनेकेन्द्रिय। जो एकेन्द्रिय हैं, वे अभाषक हैं । जो अनेकेन्द्रिय हैं, वे दो प्रकार के हैं । पर्याप्तक और अपर्याप्तक । जो अपर्याप्तक हैं, वे अभाषक हैं । जो पर्याप्तक हैं, वे भाषक हैं। भगवन् ! नैरयिक भाषक हैं या अभाषक । गौतम ! दोनों । भगवन् ! किस हेतु से ऐसा कहते हैं ? गौतम ! नैरयिक दो प्रकार के हैं । पर्याप्तक और अपर्याप्तक । जो अपर्याप्तक हैं, वे अभाषक हैं और जो पर्याप्तक हैं, वे भाषक हैं । इसी प्रकार एकेन्द्रियों को छोड़कर वैमानिक पर्यन्त सभी में समझना । सूत्र-३९० भगवन् ! भाषाजात कितने हैं ? गौतम ! चार । सत्यभाषाजात, मृषाभाषाजात, सत्यामृषाभाषाजात और असत्यामृषाभाषाजात । भगवन् ! जीव क्या सत्यभाषा बोलते हैं, मृषाभाषा बोलते हैं, सत्यामृषाभाषा बोलते हैं अथवा असत्यामृषाभाषा बोलते हैं ? गौतम ! चारों भाषा बोलते हैं । भगवन् ! क्या नैरयिक सत्यभाषा बोलते हैं, यावत् असत्यामृषाभाषा बोलते हैं ? गौतम ! चारों भाषा बोलते हैं । इसी प्रकार असुरकुमारों से स्तनितकुमारों तक यहीं समझना। विकलेन्द्रिय जीव केवल असत्यामषा भाषा बोलते हैं। भगवन् ! पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक जीव क्या सत्यभाषा बोलते हैं ? यावत् क्या असत्यामृषा भाषा बोलते हैं? गौतम ! पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक जीव सिर्फ एक असत्यामृषा भाषा बोलते हैं; सिवाय शिक्षापूर्वक अथवा उत्तरगुणलब्धि से वे चारों भाषा बोलते हैं । मनुष्यों से वैमानिकों तक की भाषा के विषय में औधिक जीवों के समान कहना सूत्र-३९१ भगवन ! जीव जिन द्रव्यों को भाषा के रूप में ग्रहण करता है, सो स्थित द्रव्यों को ग्रहण करता है या अस्थित द्रव्यों को ? गौतम ! (वह) स्थित द्रव्यों को ही ग्रहण करता है । भगवन् ! (जीव) जिन स्थित द्रव्यों को ग्रहण करता है, उन्हें क्या द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से अथवा भाव से ग्रहण करता है ? गौतम ! वह द्रव्य से भी यावत् भाव से भी ग्रहण करता है। भगवन् ! जिन द्रव्यों को द्रव्यतः ग्रहण करता है, क्या वह उन एकप्रदेशी (द्रव्यों) को ग्रहण करता है, यावत् अनन्तप्रदेशी द्रव्यों को? गौतम ! (जीव) सिर्फ अनन्तप्रदेशी द्रव्यों को ग्रहण करता है । जिन द्रव्यों को क्षेत्रतः ग्रहण करता है, क्या वह एकप्रदेशावगाढ़ द्रव्यों को ग्रहण करता है, यावत् असंख्येयप्रदेशावगाढ़ द्रव्यों को ? गौतम! (वह) असंख्यातप्रदेशावगाढ़ द्रव्यों को ग्रहण करता है । (जीव) जिन द्रव्यों को कालतः ग्रहण करता है, क्या (वह) एक समय की स्थिति वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है, यावत् असंख्यात समय की स्थिति वाले द्रव्यों को? गौतम ! (वह) एक समय की स्थिति वाले द्रव्यों को भी ग्रहण करता है, यावत् असंख्यात समय की स्थिति वाले द्रव्यों को भी । (जीव) जिन द्रव्यों को भावतः ग्रहण करता है, क्या वह वर्णवाले, गन्धवाले, रसवाले अथवा स्पर्श वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है ? गौतम ! वह चारों को ग्रहण करता है। मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 84
SR No.034682
Book TitleAgam 15 Pragnapana Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages181
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 15, & agam_pragyapana
File Size4 MB
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