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आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना'
पद/उद्देश /सूत्र पद-७-उच्छ्वास सूत्र - ३५३
भगवन् ! नैरयिक कितने काल से उच्छ्वास लेते और निःश्वास छोड़ते हैं ? गौतम ! सतत सदैव उच्छ्वासनिःश्वास लेते रहते हैं। भगवन ! असुरकुमार ? गौतम ! वे जघन्यतः सात स्तोक में और उत्कृष्टतः एक पक्ष में श्वास लेते और छोड़ते हैं । भगवन् ! नागकुमार ? गौतम ! वे जघन्य सात स्तोक और उत्कृष्टतः मुहर्तपृथक्त्व में श्वास लेते और छोड़ते हैं । इसी प्रकार स्तनितकुमार तक समझना।
भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव कितने काल से श्वासोच्छवास लेते हैं ? गौतम ! विमात्रा से । इसी प्रकार मनुष्यों तक जानना । वाणव्यन्तर देवों में नागकुमारों के समान कहना । भगवन् ! ज्योतिष्क ? गौतम ! (वे) जघन्यतः और उत्कृष्ट भी मुहूर्तपृथक्त्व से उच्छ्वास और निःश्वास लेते हैं।
भगवन् ! वैमानिक देव कितने काल से उच्छ्वास और निःश्वास लेते हैं ? गौतम ! जघन्य मुहर्तपृथक्त्व में और उत्कृष्ट तेंतीस पक्ष में | सौधर्मकल्प के देव जघन्य मुहर्तपृथक्त्व में, उत्कृष्ट दो पक्षों में उच्छवास निःश्वास लेते हैं । ईशानकल्प के देव के विषय में सौधर्मदेव से सातिरेक समझना । सनत्कुमार देव जघन्य दो पक्ष में और उत्कृष्टतः सात पक्षों में उच्छ्वास निःश्वास लेते हैं । माहेन्द्रकल्प में सनत्कुमार से सातिरेक जानना । ब्रह्मलोककल्प देव जघन्य सात पक्षों में और उत्कृष्ट दस पक्षों में उच्छ्वास निःश्वास लेते हैं । लान्तककल्पदेव जघन्य दस और उत्कृष्ट चौदह पक्षों में उच्छ्वास निःश्वास लेते हैं । महाशुक्रकल्पदेव जघन्यतः चौदह और उत्कृष्टतः सत्रह पक्षों में उच्छ्वास निःश्वास लेते हैं । सहस्रारकल्पदेव जघन्य सत्रह और उत्कृष्ट अठारह पक्षों में उच्छ्वास निःश्वास लेते हैं । आनतकल्पदेव जघन्य अठारह और उत्कृष्ट उन्नीस पक्षों में उच्छ्वास निःश्वास लेते हैं । प्राणतकल्पदेव जघन्यतः उन्नीस और उत्कृष्टतः बीस पक्षों में उच्छ्वास निःश्वास लेते हैं । आरणकल्पदेव जघन्यतः बीस और उत्कृष्टतः ईक्कीस पक्षों में उच्छ्वास निःश्वास लेते हैं। अच्युतकल्पदेव जघन्यतः ईक्कीस और उत्कृष्टतः बाईस पक्षों में उच्छ्वास निःश्वास लेते हैं।
भगवन् ! अधस्तन-अधस्तनौवेयक देव कितने काल से उच्छ्वास निःश्वास लेते हैं ? गौतम ! जघन्यतः बाईस पक्षों में और उत्कृष्टतः तेईस पक्षों में | अधस्तन-मध्यमग्रैवेयक देव जघन्यतः तेईस और उत्कृष्टतः चौबीस पक्षों में उच्छवास निःश्वास लेते हैं। अधस्तन-उपरितन ग्रैवेयकदेव जघन्यतः चौबीस और उत्कृष्टतः पच्चीस पक्षों में उच्छ्वास निःश्वास लेते हैं । मध्यम-अधस्तनौवेयक देव जघन्यतः पच्चीस और उत्कृष्टतः छब्बीस पक्षों में उच्छ्वास यावत् निःश्वास लेते हैं । मध्यम-मध्यमग्रैवेयकदेव जघन्यतः छब्बीस और उत्कृष्टतः सत्ताईस पक्षों में उच्छ्वास निःश्वास लेते हैं। मध्यमउपरितनग्रैवेयक देव जघन्यतः सत्ताईस और उत्कृष्टतः अट्ठाईस पक्षों में उच्छ्वास निःश्वास लेते हैं । उपरितन-अधस्तनप्रैवेयकदेव जघन्यतः अट्ठाईस और उत्कृष्टतः उनतीस पक्षों में उच्छ्वास निःश्वास लेते हैं। उपरितनमध्यमग्रैवेयकदेव जघन्यतः उनतीस और उत्कृष्टतः तीस पक्षों में उच्छ्वास निःश्वास लेते हैं । उपरितनउपरितनग्रैवेयकदेव जघन्यतः तीस और उत्कृष्टतः इकतीस पक्षों में उच्छ्वास निःश्वास लेते हैं । अनुत्तरौपपातिक देव जघन्यतः इकतीस और उत्कृष्टतः तेंतीस पक्षों में उच्छ्वास निःश्वास लेते हैं । विशेष यह कि सर्वार्थ सिद्ध देवों का काल अजघन्योत्कृष्ट तेंतीस पक्ष का है।
पद-७-का मुनि दीपरत्नसागरकृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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