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________________ आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना' पद/उद्देश /सूत्र एक समय तथा उत्कृष्ट संख्यातवर्ष है । अच्युतदेव का उपपातविरह काल जघन्य एक समय, उत्कृष्ट संख्यात वर्ष है । भगवन् ! अधस्तन ग्रैवेयक देव कितने काल तक उपपात से विरहित कहे हैं ? गौतम ! जघन्य एक समय तथा उत्कृष्ट संख्यात सौ वर्ष तक । मध्यम ग्रैवेयकदेव जघन्य एक समय तथा उत्कृष्ट संख्यात हजार वर्ष उपपात-विरहित कहे हैं । ऊपरी ग्रैवेयक देवों का उपपातविरह जघन्य एक समय तथा उत्कृष्ट संख्यात लाख वर्ष है । विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित देवों का उपपातविरह जघन्य एक समय तथा उत्कृष्ट असंख्यातकाल है। सर्वार्थसिद्ध देवों का उपपातविरह जघन्य एक समय उत्कृष्ट पल्योपम का संख्यातवा भाग है। भगवन् ! सिद्ध जीवों का उपपात-विरह कितने काल है ? जघन्य एक समय तथा उत्कृष्ट छह मास । सूत्र - ३२९ भगवन् ! रत्नप्रभा के नैरयिक कितने काल तक उद्वर्त्तना विरहित कहे हैं ? गौतम ! जघन्य एक समय, उत्कृष्ट चौबीस मुहूर्त्त । उपपात-विरह समान सिद्धों को छोड़कर अनुत्तरौपपातिक देवों तक कहना । विशेष यह कि ज्योतिष्क और वैमानिक देवों के निरूपण में च्यवन' शब्द कहना । सूत्र-३३० भगवन् ! नैरयिक सान्तर उत्पन्न होते हैं या निरन्तर ? गौतम ! दोनों । इसी तरह तिर्यंचयोनिक, मनुष्य, देव, , असुरकुमारादिभवनपति, ये सब सान्तर और निरन्तर उत्पन्न होते हैं । पृथ्वीकायिक से लेकर वनस्पति-कायिक तक सब निरन्तर ही उत्पन्न होते हैं । द्वीन्द्रिय यावत् सर्वार्थसिद्ध देव तक सब सान्तर और निरन्तर भी उत्पन्न होते हैं । सूत्र-३३१ भगवन् ! नैरयिक सान्तर उद्वर्त्तन करते हैं अथवा निरन्तर उद्वर्त्तन करते हैं ? गौतम ! वे सान्तर भी उद्वर्त्तन करते हैं और निरन्तर भी, उपपात के कथन अनुसार सिद्धों को छोड़कर उद्वर्त्तना में भी वैमानिकों तक कहना। सूत्र-३३२ भगवन् ! एक समय में कितने नैरयिक उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात अथवा असंख्यात । इसी प्रकार सातवीं नरकपृथ्वी तक समझ लेना । असुरकुमार से स्तनितकुमार तक यहीं कहना। भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव एक समयमें कितने उत्पन्न होते हैं? गौतम ! प्रतिसमय बिना विरह के असंख्यात उत्पन्न होते हैं । इसी प्रकार वायुकायिक तक कहना । वनस्पतिकायिक जीव स्वस्थान में उपपात की अपेक्षा प्रतिसमय बिना विरह के अनन्त उत्पन्न होते हैं तथा परस्थान में प्रतिसमय बिना विरह के असंख्यात उत्पन्न होते हैं। भगवन् ! द्वीन्द्रिय जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! जघन्य एक, दो अथवा तीन तथा उत्कृष्ट संख्यात या असंख्यात । इसी प्रकार त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय, तिर्यग्योनिक, सम्मूर्छिम मनुष्य, वाण-व्यन्तर, ज्योतिष्क, सौधर्म यावत् सहस्रार कल्प के देव, इन सब को नैरयिकों के समान जानना । गर्भज मनुष्य, आनत यावत् अनुत्तरौपपातिक देव; ये सब जघन्यतः एक, दो अथवा तीन तथा उत्कृष्टतः संख्यात उत्पन्न होते हैं । सिद्ध भगवान एक समय में जघन्यतः एक, दो अथवा तीन और उत्कृष्टतः एक सौ आठ होते हैं। सूत्र-३३३ भगवन् ! नैरयिक एक समय में कितने उद्वर्तित होते हैं ? गौतम ! जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात अथवा असंख्यात । उपपात के समान सिद्धों को छोड़कर अनुत्तरौपपातिक देवों तक उद्वर्त्तना में भी कहना। विशेष यह कि ज्योतिष्क और वैमानिक के लिए 'च्यवन' शब्द कहना । सूत्र-३३४ भगवन् ! नैरयिक कहाँ से उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! नैरयिक, तिर्यंचयोनिकों तथा मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं। भगवन् ! यदि तिर्यंचयोनिकों से उत्पन्न होते हैं तो कौन से तिर्यंचयोनिकों से उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! (वे) सिर्फ पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों से उत्पन्न होते हैं । भगवन् ! यदि पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों से उत्पन्न होते हैं तो कौन से पंचन्द्रियतिर्यंचयोनिकों से उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! (वे) जलचर, स्थलचर और खेचर तीनों से उत्पन्न होते हैं । वे मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 67
SR No.034682
Book TitleAgam 15 Pragnapana Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages181
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 15, & agam_pragyapana
File Size4 MB
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