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________________ आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना' पद/उद्देश /सूत्र सूत्र-६१७ समुद्घात किये बिना ही अनन्त केवलज्ञानी जिनेन्द्र जरा और मरण से सर्वथा रहित हुए हैं तथा श्रेष्ठ सिद्धिगति को प्राप्त हुए हैं। सूत्र - ६१८ भगवन् ! आवर्जीकरण कितने समय का है ? गौतम ! असंख्यात समय के अन्तर्मुहूर्त का है। सूत्र - ६१९ भगवन् ! केवलिसमुद्घात कितने समय का है ? गौतम ! आठ समय का, -प्रथम समय में दण्ड करता है, द्वितीय समय में कपाट, तृतीय समय में मन्थान, चौथे समय में लोक को व्याप्त करता है, पंचम समय में लोक-पूरण को सिकोड़ता है, छठे समय में मन्थान को, सातवें समय में कपाट को और आठवें समय में दण्ड को सिकोड़ता है और दण्ड का संकोच करते ही शरीरस्थ हो जाता है । भगवन् ! तथारूप से समुद्घात प्राप्त केवली क्या मनोयोग का, वचनयोग का अथवा काययोग का प्रयोग करता है ? गौतम ! वह केवल काययोग का प्रयोग करता है । भगवन् ! काययोग का प्रयोग करता हआ केवली क्या औदारिकशरीरकाययोग का प्रयोग करता है, औदारिकमिश्र०, वैक्रिय०, वैक्रियमिश्र०, आहारकशरीर०, आहारकमिश्र० अथवा कार्मणशरीरकाययोग का प्रयोग करता है ? गौतम ! वह औदारिकशरीरकाययोग का, औदारिकमिश्रशरीरकाययोग का और कार्मणशरीरकाययोग का प्रयोग करता है। प्रथम और अष्टम समय में औदारिकशरीरकाययोग का, दूसरे, छठे और सातवें समय में औदारिकमिश्रशरीरकाययोग का तथा तीसरे, चौथे और पाँचवें समय में कार्मणशरीरकाययोग का प्रयोग करता है। सूत्र-६२० भगवन् ! तथारूप समुद्घात को प्राप्त केवली क्या सिद्ध, मुक्त और परिनिर्वाण को प्राप्त हो जाते हैं, क्या वह सभी दुःखों का अन्त कर देते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । पहले वे उससे प्रतिनिवृत्त होते हैं । तत्प-श्वात् वे मनोयोग, वचनयोग और काययोग का भी उपयोग करते हैं । भगवन् ! मनोयोग का उपयोग करता हुआ केवलिसमुद् घात करनेवाला केवली क्या सत्यमनोयोग का, मृषामनोयोग का, सत्यामृषामनोयोग अथवा असत्या-मृषामनोयोग का उपयोग करता है ? गौतम ! वह सत्यमनोयोग और असत्यामृषामनोयोग का उपयोग करता है, मृषामनोयोग और सत्यामृषामनोयोग का नहीं । वचनयोग का उपयोग करता हआ केवली ? गौतम ! वह सत्य-वचनयोग और असत्यामृषावचनयोग का उपयोग करता है, मृषावचनयोग और सत्यमृषावचनयोग का नहीं । काययोग का उपयोग करता हुआ आता है, जाता है, ठहरता है, बैठता है, करवट बदलता है, लांघता है, या वापस लौटाये जाने वाले पीठ, पट्टा, शय्या आदि वापस लौटाता है। सूत्र-६२१ भगवन् ! वह तथारूप सयोगी सिद्ध होते हैं, बुद्ध होते हैं, यावत् सर्वदुःखों का अन्त कर देते हैं ? गौतम ! वह वैसा करने में समर्थ नहीं होते । वह सर्वप्रथम संज्ञीपंचेन्द्रियपर्याप्तक जघन्ययोग वाले से असंख्यातगुणहीन मनोयोग का पहले निरोध करते हैं, तदनन्तर द्वीन्द्रियपर्याप्तक जघन्ययोग वाले से असंख्यातगुणहीन वचनयोग का निरोध करते हैं । तत्पश्चात् अपर्याप्तक सूक्ष्मपनकजीव, जो जघन्ययोग वाला हो, उस से असंख्यातगुणहीन काय-योग का निरोध करते हैं । काययोगनिरोध करके वे योगनिरोध करते हैं । अयोगत्व प्राप्त करते हैं । धीरे-से पाँच ह्रस्व अक्षरों के उच्चारण जितने काल में असंख्यातसामयिक अन्तर्मुहूर्त तक होने वाले शैलेशीकरण को अंगीकार करते हैं । असंख्यात कर्मस्कन्धों का क्षय कर डालते हैं । वेदनीय, आयुष्य, नाम और गोत्र कर्मों का एक साथ क्षय करते हैं । औदारिक, तैजस और कार्मण शरीर का पूर्णतया सदा के लिए त्याग करते हैं । ऋजुश्रेणी को प्राप्त होकर अस्पृशत् गति से एक समय में अविग्रह से ऊर्ध्वगमन कर साकारोपयोग से उपयुक्त होकर वे सिद्ध, बुद्ध, मुक्त और परिनिवृत्त हो जाते हैं तथा सर्वदुःखों का अन्त कर देते हैं। वे सिद्ध वहाँ अशरीरी सघनआत्मप्रदेशों वाले दर्शन और ज्ञान में उपयुक्त, कृतार्थ, नीरज, निष्कम्प, अज्ञान मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 179
SR No.034682
Book TitleAgam 15 Pragnapana Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages181
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 15, & agam_pragyapana
File Size4 MB
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