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आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना'
पद/उद्देश/सूत्र घात आगामी हैं ? गौतम ! असंख्यात हैं । इसी प्रकार वैमानिकों तक समझना । विशेष यह कि वनस्पतिकायिकों और मनुष्यों में भिन्नता है, वनस्पतिकायिकों के केवलिसमुद्घात अतीत में नहीं हैं ? इनके भावी केवलिसमुद्घात अनन्त हैं। मनुष्यों के केवलिसमुद्घात अतीत में कथंचित हैं और कथंचित् नहीं हैं । यदि हैं तो जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट शतपृथक्त्व हैं । उनके भावी केवलिसमुद्घात कथंचित् संख्यात हैं और कथंचित् असंख्यात हैं। सूत्र-६०३
एक-एक नैरयिक के नारकत्व में कितने वेदनासमुद्घात अतीत हुए हैं ? गौतम ! अनन्त । कितने भावी होते हैं ? गौतम ! वे किसी के होते हैं, किसी के नहीं होते । जिसके होते हैं, उसके जघन्य एक, दो या तीन होते हैं और उत्कृष्ट संख्यात, असंख्यात अथवा अनन्त होते हैं । इसी प्रकार एक-एक नारक के असुरकुमारत्व यावत् वैमानिकत्व में समझना । एक-एक असुरकुमार के नारकत्व में कितने वेदनासमुद्घात अतीत हुए हैं ? गौतम ! अनन्त । भावी कितने होते हैं ? गौतम ! किसी के होते हैं और किसी के नहीं होते हैं, जिसके होते हैं, उसके कदाचित् संख्यात, कदाचित् असंख्यात और कदाचित् अनन्त होते हैं ।
एक-एक असुरकुमार के असुरकुमारपर्याय में कितने वेदनासमुद्घात अतीत हुए हैं ? गौतम ! अनन्त । भावी कितने होते हैं ? गौतम ! किसी के होते हैं और किसी के नहीं होते हैं, जिसके होते हैं, उसके जघन्य एक, दो या तीन होते हैं और उत्कृष्ट संख्यात, असंख्यात अथवा अनन्त होते हैं । इसी प्रकार नागकुमार यावत् वैमानिकपर्याय में रहते हुए अतीत और अनागत वेदना-समुद्घात समझना । असुरकुमार के वेदनासमुद्घात के समान नागकुमार आदि से लेकर शेष सब स्वस्थानों और परस्थानों में वेदनासमुद्घात यावत् वैमानिक के वैमानिकपर्याय पर्यन्त कहना । इसी प्रकार चौबीस दण्डकों में से प्रत्येक के चौबीस दण्डक होते हैं। सूत्र-६०४
भगवन् ! एक-एक नारक के नारकपर्याय में कितने कषायसमुद्घात अतीत हुए हैं ? गौतम ! अनन्त । भावी कितने होते हैं ? गौतम ! किसी के होते हैं और किसी के नहीं होते । जिसके होते हैं, उसके एक से लेकर यावत्
अनन्त हैं । एक-एक नारक के असुरकुमारपर्याय में कितने कषायसमुद्घात अतीत होते हैं ? गौतम ! अनन्त। भावी कितने होते हैं ? गौतम ! वे किसी के होते हैं, किसी के नहीं । जिसके होते हैं, उसके कदाचित् संख्यात, कदाचित् असंख्यात और कदाचित् अनन्त होते हैं । इसी प्रकार नारक का यावत् स्तनितकुमारपर्याय में समझना । नारक का पृथ्वीकायिकपर्याय में एक से लेकर जानना । इसी प्रकार यावत् मनुष्यपर्याप में समझना । वाणव्यन्तरपर्याय में नारक के असुरकुमारत्व के समान जानना । ज्योतिष्कदेवपर्याय में अतीव कषायसमुदघात अनन्त हैं तथा भावी कषायसमुद घात किसी का होता है, किसी का नहीं होता । जिसका होता है, उसका कदाचित असंख्यात और कदाचित अनन्त होता है। इसी प्रकार वैमानिकपर्याय में भी जानना ।
असुरकुमार के नैरयिकपर्याय में अतीत कषायसमुद्घात अनन्त होते हैं । भावी कषायसमुद्घात किसी के होते हैं और किसी के नहीं होते । जिसके होते हैं, उसके कदाचित् संख्यात, असंख्यात और अनन्त होते हैं । असुरकुमार के असुरकुमारपर्याय में अतीत (कषायसमुद्घात) अनन्त हैं और भावी एक से लेकर कहना । इसी प्रकार नागकुमारत्व से वैमानिकत्व तक नैरयिक के समान कहना । इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमार तक भी यावत् वैमानिकत्व में पूर्ववत् कथन समझना । विशेष यह कि इन सबके स्वस्थान में भावी कषायसमुद्घात एक से लगा कर हैं
और परस्थान में असुरकुमार के समान हैं । पृथ्वीकायिक जीव के नारक यावत् स्तनितकुमारपर्याय में अनन्त (कषायसमुद्घात) अतीत हुए हैं, उसके भावी पर्याय किसी को होते हैं किसी को नहीं जिसके होते हैं, उसके कदाचित् संख्यात कदाचित् असंख्यात और कदाचित् अनन्त होते हैं । पृथ्वीकायिक के पृथ्वीकायिक यावत् मनुष्य - अवस्था में (कषायसमुद्घात) अतीत अनन्त हैं । भावी किसी के होते हैं, किसी के नहीं होते । जिसके होते हैं, उसके एक से अनन्त होते हैं । वाणव्यन्तर-अवस्था में नारक-अवस्था के समान जानना । ज्योतिष्क और वैमानिक-अवस्था में अनन्त अतीत हुए हैं। भावी किसी के होते हैं, किसी के नहीं होते । जिसके होते हैं, उसके कदाचित् असंख्यात
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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