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________________ आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना' पद/उद्देश /सूत्र पद-३१-संज्ञी सूत्र-५७५ भगवन् ! जीव संज्ञी है, असंज्ञी है, अथवा नोसंज्ञी-नोअसंज्ञी है ? गौतम ! तीनों है । भगवन् ! नैरयिक संज्ञी है, असंज्ञी है अथवा नोसंज्ञी-नोअसंज्ञी है ? गौतम ! नैरयिक संज्ञी भी हैं, असंज्ञी भी हैं । इसी प्रकार असुर-कुमारों से लेकर स्तनितकुमारों तक कहना । पृथ्वीकायिक जीव संज्ञी है ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न । गौतम ! पृथ्वी-कायिक जीव असंज्ञी हैं । इसी प्रकार द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों को भी जानना । मनुष्यों को समुच्चय जीवों के समान जानना । पंचेन्द्रियतिर्यंचों और वाणव्यन्तरों, नारकों के समान है। ज्योतिष्क और वैमानिक सिर्फ संज्ञी होते हैं । सिद्ध सिर्फ नोसंज्ञी-नोअसंज्ञी हैं। सूत्र -५७६ नारक तिर्यंच, मनुष्य वाणव्यन्तर और असुरकुमारादि भवनवासी संज्ञी होते हैं, असंज्ञी भी होते हैं | विकलेन्द्रिय असंज्ञी होते हैं तथा ज्योतिष्क और वैमानिक देव संज्ञी ही होते हैं। पद-३१-का मुनि दीपरत्नसागरकृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण -----0-----0-----0-----0-----0-----0---- पद-३२-संयत सूत्र - ५७७ भगवन् ! जीव क्या संयत होते है, असंयत होते हैं, संयतासंयत होते हैं, अथवा नोसंयत-नोअसंयत-नोसंयतासंयत होते हैं ? गौतम ! चारों ही होते हैं । भगवन् ! नैरयिक संयत होते हैं, असंयत होते हैं, संयतासंयत होते हैं या नोसंयत-नोअसंयत-नोसंयतासंय होते हैं ? गौतम ! नैरयिक असंयत होते हैं । इसी प्रकार चतुरिन्द्रियों तक जानना । पंचेन्द्रियतिर्यग्योनिक क्या संयत होते हैं ? इत्यादि प्रश्न है । गौतम ! पंचेन्द्रियतिर्यंच असंयत या संयता-संयत होते हैं। मनुष्य संयत होते हैं ? इत्यादि प्रश्न । गौतम ! मनुष्य संयत भी होते हैं, असंयत भी होते हैं, संयता-संयत भी होते हैं। वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिकों का कथन नैरयिकों के समान समझना । सिद्धों के विषय में पूर्ववत् प्रश्न । गौतम ! सिद्ध नोसंयत-नोअसंयत-नोसंयतासंयत होते हैं। सूत्र-५७८ जीव और मनुष्य संयत, असंयत और संयतासंयत होते हैं । तिर्यंच संयत नहीं होते । शेष एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय और देव तथा नारक असंयत होते हैं। पद-३२-का मुनि दीपरत्नसागरकृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण -----0-----0-----0-----0-----0-----0-----0 मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 165
SR No.034682
Book TitleAgam 15 Pragnapana Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages181
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 15, & agam_pragyapana
File Size4 MB
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