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आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना'
पद/उद्देश /सूत्र की अवगाहना कितनी है ? गौतम ! जघन्य देशोन एक हाथ, उत्कृष्ट पूर्ण एक हाथ की है। सूत्र-५२०
भगवन ! तैजसशरीर कितने प्रकार का है ? गौतम ! पाँच प्रकार का, एकेन्द्रिय यावत पंचेन्द्रियतैजस-शरीर। एकेन्द्रियतैजसशरीर कितने प्रकार का है ? गौतम ! पाँच प्रकार का, पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक-तैजसशरीर इस प्रकार औदारिकशरीर के भेद के समान तैजसशरीर को भी चतुरिन्द्रिय तक कहना । पंचेन्द्रिय-तैजसशरीर कितने प्रकार का है ? गौतम ! चार प्रकार का, नैरयिक यावत् देवतैजसशरीर । नारकों के वैक्रियशरीर के दो भेद के समान तैजसशरीर के भी भेद कहना । पंचेन्द्रियतिर्यंचों और मनुष्यों के औदारिकशरीर के समान इनके तैजसशरीर को भी कहना । देवों के वैक्रियशरीर के भेद के समान यावत् सर्वार्थसिद्ध देवों (तक) के तैजस-शरीर के भेदों का कथन करना
भगवन् ! तैजसशरीर का संस्थान किस प्रकार का है ? गौतम ! विविध प्रकार का । एकेन्द्रियतैजसशरीर का संस्थान ऐसा ही जानना । पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रियतैजसशरीर का संस्थान, गौतम ! मसूरचन्द्र आकार का है । इसी प्रकार यावत् चतुरिन्द्रियों को इनके औदारिकशरीर-संस्थानों के अनुसार कहना | नैरयिकों का तैजसशरीर का संस्थान, इनके वैक्रियशरीर समान है । पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों और मनुष्यों को इनके औदारिकशरीर संस्थानों समान जानना । देवों के तैजसशरीर का संस्थान यावत् अनुत्तरौपपातिक देवों के वैक्रियशरीर समान कहना। सूत्र-५२१
भगवन् ! मारणान्तिकसमुद्घात से समवहत जीव के तैजसशरीर की अवगाहना कितनी होती है ? गौतम! विष्कम्भ और बाहल्य, अनुसार शरीरप्रमाणमात्र ही होती है । लम्बाई की अपेक्षा जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग, उत्कृष्ट लोकान्त से लोकान्त तक हैं । मारणान्तिकसमुद्घात से समवहत एकेन्द्रिय के तैजसशरीर की अवगाहना ? गौतम ! इसी प्रकार पृथ्वी से वनस्पतिकायिक तक पूर्ववत् समझना । मारणान्तिकसमुद्घात से समवहत द्वीन्द्रिय के तैजसशरीर की ? गौतम ! विष्कम्भ एवं बाहल्य से शरीरप्रमाणमात्र होती है । तथा लम्बाई से जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट तिर्यक् लोक से लोकान्त तक अवगाहना समझना । इसी प्रकार चतुरिन्द्रिय तक समझ लेना । मारणान्तिकसमुद्घात से समवहत नारक के तैजसशरीर की अवगाहना ? गौतम ! विष्कम्भ और बाहल्य से शरीरप्रमाणमात्र तथा आयाम से जघन्य सातिरेक एक हजार योजन, उत्कृष्ट नीचे की ओर अधःसप्तमनरकपृथ्वी तक, तिरछी यावत् स्वयम्भूरमणसमुद्र तक और ऊपर पण्डकवन में स्थित पुष्करिणी तक है । मारणान्तिकसमुद्घात से समवहत पंचेन्द्रियतिर्यंच के तैजसशरीर की अवगाहना ? गौतम ! द्वीन्द्रिय के समान समझना । मारणान्तिकसमुद्घात से समवहत मनुष्य के तैजसशरीर की अवगाहना ? गौतम ! समयक्षेत्र से लोकान्त तक होती है।
भगवन् ! मारणान्तिकसमुद्घात से समवहत असुरकुमार के तैजसशरीर की अवगाहना कितनी है ? गौतम! विष्कम्भ और बाहल्य से शरीरप्रमाणमात्र तथा आयाम से जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग की और उत्कृष्ट नीचे की
ओर तीसरी पृथ्वी के अधस्तनचरमान्त तक, तिरछी स्वयम्भूरमणसमुद्र की बाहरी वेदिका तक एवं ऊपर ईषत् प्राग्भारपृथ्वी तक । इसी प्रकार स्तनितकुमार तक समझना । वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क एवं सौधर्म ईशान तक भी इसी प्रकार समझना । मारणान्तिकसमुद्घात से समवहत सनत्कुमार-देव तैजसशरीर की अवगाहना ? गौतम ! विष्कम्भ एवं बाहल्य से शरीर-प्रमाणमात्र और आयाम से जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग तथा उत्कृष्ट नीचे महापाताल (कलश) के द्वितीय त्रिभाग तक, तिरछी स्वयम्भूरमणसमुद्र तक और ऊपर अच्युतकल्प तक होती है । इसी प्रकार सहस्रारकल्प के देवों तक समझना । मारणान्तिकसमुद्घात से समवहत आनतदेव के तैजस-शरीर की अवगाहना ? गौतम ! विष्कम्भ और बाहल्य से शरीर प्रमाण और आयाम से जघन्य अंगुल के असंख्या-तवें भाग, उत्कृष्ट-नीचे की ओर अधोलौकिकग्राम तक, तिरछी मनुष्यक्षेत्र तक और ऊपर अच्युतकल्प तक होती है।
इसी प्रकार प्राणत और आरण तक समझना । अच्युतदेव की भी इन्हीं के समान हैं । विशेष इतना है कि ऊपर अपने-अपने विमानों तक होती है । भगवन् ! मारणान्तिक समुद्घात से समवहत ग्रैवेयकदेव के तैजसशरीर की अवगाहना ? गौतम ! विष्कम्भ और बाहल्य की अपेक्षा से शरीरप्रमाणमात्र तथा आयाम से जघन्य विद्याधरश्रेणियों
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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