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आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना'
पद/उद्देश /सूत्र
पद-१६-प्रयोग सूत्र -४३८
भगवन् ! प्रयोग कितने प्रकार का है ? गौतम ! पन्द्रह प्रकार का-सत्यमनःप्रयोग, असत्य मनःप्रयोग, सत्य - मषा मनःप्रयोग, असत्या-मषा मनःप्रयोग इसी प्रकार वचनप्रयोग भी चार प्रकार का है-औदारिक शरीरकाय-प्रयोग, औदारिकमिश्रशरीरकाय-प्रयोग, वैक्रियशरीरकाय-प्रयोग, वैक्रियमिश्रशरीरकाय-प्रयोग, आहारकशरीरकाय-प्रयोग, आहारकमिश्रशरीरकाय-प्रयोग और कार्मण शरीरकाय-प्रयोग । सूत्र - ४३९
___भगवन् ! जीवों के कितने प्रकार के प्रयोग हैं ? गौतम ! पन्द्रह प्रकार के, सत्यमनःप्रयोग से (लेकर) कार्मणशरीरकाय-प्रयोग तक । भगवन् ! नैरयिकों के कितने प्रकार के प्रयोग हैं ? गौतम ! ग्यारह प्रकार के, सत्यमनःप्रयोग से लेकर असत्यामृषावचन-प्रयोग, वैक्रियशरीरकाय-प्रयोग, वैक्रियमिश्रशरीरकाय-प्रयोग और कार्मणशरीरकायप्रयोग । इसी प्रकार असुरकुमारों से स्तनितकुमारों तक समझना । भगवन् ! पृथ्वीकायिकों के कितने प्रयोग हैं ? गौतम ! तीन, औदारिकशरीरकाय-प्रयोग, औदारिकमिश्रशरीरकाय-प्रयोग और कार्मणशरीरकाय-प्रयोग। इसी प्रकार वनस्पतिकायिकों तक समझना । विशेष यह कि वायुकायिकों के पाँच प्रकार के प्रयोग हैं, औदारिकशरीरकायप्रयोग, औदारिकमिश्रशरीरकाय-प्रयोग, वैक्रियशरीरकाय-प्रयोग और वैक्रियमिश्रशरीरकाय-प्रयोग तथा कार्मणशरीरकाय-प्रयोग।
भगवन् ! द्वीन्द्रियजीवों के कितने प्रकार के प्रयोग हैं ? गौतम ! चार, असत्यामृषावचन-प्रयोग, औदारिकशरीरकाय-प्रयोग, औदारिकमिश्रशरीरकाय-प्रयोग और कार्मणशरीरकाय-प्रयोग | इसी प्रकार चतुरिन्द्रिय तक समझना । भगवन् ! पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों के कितने प्रकार के प्रयोग हैं ? गौतम ! तेरह, सत्यमनःप्रयोग यावत् असत्यामृषामनःप्रयोग इसी प्रकार वचनप्रयोग, औदारिकशरीरकाय-प्रयोग, औदारिकमिश्रशरीरकाय-प्रयोग, वैक्रियशरीरकाय-प्रयोग, वैक्रियमिश्रशरीरकाय-प्रयोग और कार्मणशरीरकाय-प्रयोग । भगवन् ! मनुष्यों के कितने प्रकार के प्रयोग हैं ? गौतम ! पन्द्रह, सत्यमनःप्रयोग से लेकर कार्मणशरीरकाय-प्रयोग तक । वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों के प्रयोग के विषय में नैरयिकों के समान समझना। सूत्र-४४०
भगवन् ! जीव सत्यमनःप्रयोग होते हैं अथवा यावत् कार्मणशरीरकायप्रयोगी होते हैं ? गौतम ! जीव सभी सत्यमनःप्रयोगी भी होते हैं, यावत् मृषामनःप्रयोगी, सत्यामृषामनःप्रयोगी, आदि तथा वैक्रियमिश्रशरीरकायप्रयोगी भी एवं कार्मणशरीरकायप्रयोगी भी होते हैं, अथवा एक आहारकशरीरकायप्रयोगी होता है, अथवा बहुत-से आहारकशरीरकायप्रयोगी होते हैं, अथवा एक आहारकमिश्रकायप्रयोगी होता है, अथवा बहुत-से जीव आहारकमिश्रशरीरकायप्रयोगी होते हैं । ये चार भंग हुए।
(द्विकसंयोगी चार भंग)-अथवा एक आहारकशरीरकायप्रयोगी और एक आहारकमिश्रशरीरकाय प्रयोगी, अथवा एक आहारकशरीरकायप्रयोगी और बहुत-से आहारकमिश्रशरीरकाय-प्रयोगी, अथवा बहुत-से आहारकशरीरकायप्रयोगी और एक आहारकमिश्रशरीरकायप्रयोगी, अथवा बहुत-से आहारकशरीरकायप्रयोगी और बहुत-से आहारकमिश्रशरीरकाय-प्रयोगी । वे समुच्चय जीवों के प्रयोग की अपेक्षा से आठ भंग हए । भगवन् ! नैरयिक ? गौतम ! नैरयिक सभी सत्यमनःप्रयोगी भी होते हैं, यावत् वैक्रियमिश्रशरीर कायप्रयोगी भी होते हैं, अथवा कोई एक (नैरयिक) कार्मणशरीरकायप्रयोगी होता है, अथवा कोई अनेक नैरयिक कार्मणशरीरकायप्रयोगी होते हैं । इसी प्रकार असुरकुमारों यावत् स्तनितकुमारों में कहना।
भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव क्या औदारिकशरीरकाय-प्रयोगी हैं, औदारिकमिश्रशरीरकाय-प्रयोगी हैं अथवा कार्मणशरीरकाय-प्रयोगी हैं? गौतम ! तीनों हैं । इसी प्रकार अप्कायिक जीवों से लेकर वनस्पतिकायिकों तक कहना विशेष यह है कि वायुकायिक वैक्रियशरीरकाय-प्रयोगी भी हैं और वैक्रियमिश्रशरीरकाय-प्रयोगी भी हैं। भगवन् !
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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