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________________ आगम सूत्र १४, उपांगसूत्र-३, 'जीवाजीवाभिगम' प्रतिपत्ति/उद्देश-/सूत्र सूत्र- २३५, २३६ गोल और वलयाकार संस्थान से संस्थित पुष्करवर नाम का द्वीप कालोदसमुद्र को सब ओर घेर कर रहा हुआ है । यावत् यह समचक्रवाल संस्थान वाला है । भगवन् ! पुष्करवरद्वीप का चक्रवालविष्कम्भ कितना है और उसकी परिधि कितनी है ? गौतम ! वह सोलह लाख योजन चक्रवालविष्कम्भ वाला है और- उसकी परिधि १९२८९८९४ योजन है। सूत्र- २३७,२३८ वह एक पद्मवरवेदिका और एक वनखण्ड से परिवेष्ठित है । पुष्करवरद्वीप के चार द्वार हैं-विजय, वैजयंत, जयंत और अपराजित । गौतम ! पुष्करवरद्वीप के पूर्वी पर्यन्त में और पुष्करोदसमुद्र के पूर्वार्ध के पश्चिम में पुष्करवरद्वीप का विजयद्वार है, आदि वर्णन जम्बूद्वीप के विजयद्वार के समान है । इसी प्रकार चारों द्वारों का वर्णन जानना । लेकिन शीता शीतोदा नदियों का सद्भाव नहीं कहना चाहिए । भगवन् ! पुष्करवरद्वीप के एक द्वार से दूसरे द्वार का अन्तर कितना है ? गौतम ! ४८२२४६९ योजन का अन्तर है। सूत्र-२३९ पुष्करवरद्वीप के प्रदेश पुष्करवरसमुद्र से स्पृष्ट हैं यावत् पुष्करवरद्वीप और पुष्करवरसमुद्र के जीव मरकर कोई कोई उनमें उत्पन्न होते हैं और कोई कोई नहीं होते । भगवन् ! पुष्करवरद्वीप, पुष्करवरद्वीप क्यों कहलाता है? गौतम ! पुष्करवरद्वीप में स्थान-स्थान पर यहाँ-वहाँ बहुत से पद्मवृक्ष, पद्मवन और पद्मवनखण्ड नित्य कुसुमित रहते हैं तथा पद्म और महापद्म वृक्षों पर पद्म और पुंडरीक नाम के पल्योपम स्थिति वाले दो महर्द्धिक देव रहते हैं, इसलिए यावत् नित्य है। सूत्र- २४०-२४२ गौतम ! १४४ चन्द्र और १४४ सूर्य पुष्करवरद्वीप में प्रभासित हुए विचरते हैं । ४०३२ नक्षत्र और १२६७२ महाग्रह हैं । ९६४४४०० कोड़ाकोड़ी तारागण पुष्करवरद्वीप में (शोभित हुए, शोभित होते हैं और शोभित होंगे।) सूत्र - २४३, २४४ पुष्करवरद्वीप के बहुमध्यभाग में मानुषोत्तर पर्वत है, जो गोल है और वलयाकार संस्थान से संस्थित है । वह पर्वत पुष्करवरद्वीप को दो भागों में विभाजित करता है-आभ्यन्तर पुष्करार्ध और बाह्य पुष्करार्ध | आभ्यन्तर पुष्करार्ध का चक्रवालविष्कम्भ आठ लाख योजन है और उसकी परिधि १,४२,३०,२४९ योजन की है। मनुष्यक्षेत्र की परिधि भी यही हैं। सूत्र - २४५-२४९ भगवन् ! आभ्यन्तर पुष्करार्ध, आभ्यन्तर पुष्करार्ध क्यों कहलाता है ? गौतम ! आभ्यन्तर पुष्करार्ध सब ओर से मानुषोत्तरपर्वत से घिरा हुआ है । इसलिए यावत् वह नित्य है । गौतम ! ७२ चन्द्र और ७२ सूर्य प्रभासित होते हए पुष्करवरद्वीपार्ध में विचरण करते हैं। ६३३६ महाग्रह गति करते हैं और २०१६ नक्षत्र चन्द्रादि से योग करते हैं। ४८२२२०० ताराओंकी कोड़ाकोड़ी वहाँ शोभित होती थी, शोभित होती है और शोभित होंगी। सूत्र- २५०-२५४ हे भगवन ! समयक्षेत्र का आयाम-विष्कम्भ और परिधि कितनी है ? गौतम ! आयाम-विष्कम्भ से ४५ लाख योजन है और उसकी परिधि आभ्यन्तर पुष्करवरद्वीप समान है। हे भगवन् ! मनुष्यक्षेत्र, मनुष्यक्षेत्र क्यों कहलाता है ? गौतम ! मनुष्यक्षेत्र में तीन प्रकार के मनुष्य रहते हैं-कर्मभूमक, अकर्मभूमक और अन्तर्दीपक । इसलिए । हे भगवन् ! मनुष्यक्षेत्र में कितने चन्द्र प्रभासित होते थे, होते हैं और होंगे? आदि प्रश्न । गौतम ! १३२ चन्द्र और १३२ सूर्य प्रभासित होत हुए सकल मनुष्यक्षेत्र में विचरण करते हैं । ११६१६ महाग्रह यहाँ अपनी चाल चलते हैं और ३६९६ नक्षत्र चन्द्रादिक के साथ योग करते हैं । ८८४०७०० कोड़ाकोड़ी तारागण मनुष्यलोकमें-शोभित होते थे, मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (जीवाजीवाभिगम)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 92
SR No.034681
Book TitleAgam 14 Jivajivabhigam Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 14, & agam_jivajivabhigam
File Size4 MB
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