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________________ आगम सूत्र १४, उपांगसूत्र-३, 'जीवाजीवाभिगम' प्रतिपत्ति/उद्देश-/सूत्र सूत्र - २२२ हे भगवन् ! लवणसमुद्र का संस्थान कैसा है ? गौतम ! लवणसमुद्र गोतीर्थ के आकार का, नाव के आकार का, सीप के पुट के आकार का, घोड़े के स्कंध के आकार का, वलभीगृह के आकार का, वर्तुल और वलयाकार संस्थान वाला है। हे भगवन् ! लवणसमुद्र का चक्रवाल-विष्कम्भ कितना है, उसकी परिधि कितनी है ? उसकी गहराई कितनी है, उसकी ऊंचाई कितनी है ? उसका समग्र प्रमाण कितना है ? गौतम ! लवणसमुद्र चक्रवाल-विष्कम्भ से दो लाख योजन का है, उसकी परिधि १५८११३९ योजन से कुछ कम है, उसकी गहराई १००० योजन है, उसका उत्सेध १६००० योजन का है। उद्वेध और उत्सेध दोनों मिलाकर समग्र रूप से उसका प्रमाण १७००० योजन है। सूत्र - २२३ भगवन् ! यदि लवणसमुद्र चक्रवाल-विष्कम्भ से दो लाख योजन का है, इत्यादि पूर्ववत्, तो वह जम्बूद्वीप को जल से आप्लावित, प्रबलता के साथ उत्पीडित और जलमग्न क्यों नहीं कर देता ? गौतम ! जम्बूद्वीप में भरतऐरवत क्षेत्रों में अरिहंत, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, जंघाचारण आदि विद्याधर मुनि, श्रमण, श्रमणियाँ, श्रावक और श्राविकाएं हैं, वहाँ के मनुष्य प्रकृति से भद्र, प्रकृति से विनीत, उपशान्त, प्रकृति से मन्द क्रोध-मान-माया-लोभ वाले, मृदु, आलीन, भद्र और विनीत हैं, उनके प्रभाव से लवणसमुद्र जम्बूद्वीप को यावत् जलमग्न नहीं करता है। ____ गंगा-सिन्धु-रक्ता और रक्तवती नदियों में महर्द्धिक यावत् पल्योपम की स्थितिवाली देवियाँ हैं । क्षुल्लकहिमवंत और शिखरी वर्षधर पर्वतों में महर्द्धिक देव हैं, हेमवत-ऐरण्यवत वर्षों में मनुष्य प्रकृति से भद्र यावत् विनीत हैं, रोहीतांश, सुवर्णकूला और रूप्यकूला नदियों में जो महर्द्धिक देवियाँ हैं, शब्दापाति विकटापाति वृत्तवैताढ्य पर्वतों क देव हैं, महाहिमवंत और रुक्मि वर्षधरपर्वतों में महर्द्धिक देव हैं, हरिवर्ष और रम्यकवर्ष क्षेत्रों में मनुष्य प्रकृति से भद्र यावत् विनीत हैं, गंधापति और मालवंत नाम के वृत्तवैताढ्य पर्वतों में महर्द्धिक देव हैं, निषध और नीलवंत वर्षधरपर्वतों में महर्द्धिक देव हैं, इसी तरह सब द्रहों की देवियों का कथन करना, पद्मद्रह तिगिंछद्रह केसरिद्रह आदि द्रहों से महर्द्धिक देव रहते हैं, पूर्वविदेहों और पश्चिमविदेहों में अरिहंत, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, जंघाचारण विद्याधर मुनि, श्रमण, श्रमणियाँ, श्रावक, श्राविकाएं एवं मनुष्य प्रकृति से भद्र यावत् विनीत हैं, मेरुपर्वत के महर्द्धिक देवों, जम्बू सुदर्शना में अनाहत इन सब के प्रभाव से लवणसमुद्र जम्बूद्वीप को जल से आप्लावित, उत्पीड़ित और जलमग्न नहीं करता है। गौतम ! दूसरी बात यह है कि लोकस्थिति और लोकस्वभाव ही ऐसा है कि लवणसमुद्र जम्बूद्वीप को जल से यावत् जलमग्न नहीं करता। सूत्र-२२४ धातकीखण्ड नाम का द्वीप, जो गोल वलयाकार संस्थान से संस्थित है, लवणसमुद्र को सब ओर से घेरे हुए है । भगवन् ! धातकीखण्डद्वीप समचक्रवाल संस्थित है या विषमचक्रवाल ? गौतम ! वह समचक्रवाल संस्थानसंस्थित है । भगवन् ! धातकीखण्डद्वीप का चक्रवाल-विष्कम्भ और परिधि कितनी है ? गौतम ! वह चार लाख योजन चक्रवाल-विष्कम्भ वाला और ४१,१०,९६१ योजन से कुछ कम परिधिवाला है । वह धातकीखण्ड एक पद्मवरवेदिका और वनखण्ड से सब ओर से घिरा हुआ है । धातकीखण्डद्वीप के समान ही उनकी परिधि है। भगवन् ! धातकीखण्ड के कितने द्वार हैं ? गौतम ! चार-विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित । हे भगवन् ! धातकीखण्डद्वीप का विजयद्वार कहाँ पर स्थित है ? गौतम ! धातकीखण्ड के पूर्वी दिशा के अन्त में और कालोदसमुद्र के पूर्वार्ध के पश्चिमदिशा में शीता महानदी के ऊपर है । जम्बूद्वीप के विजयद्वार की तरह ही इसका प्रमाण आदि जानना । इसकी राजधानी अन्य धातकीखण्डद्वीप में है, इत्यादि । इसी प्रकार विजयद्वार सहित चारों द्वारों का वर्णन समझना । हे भगवन् ! धातकीखण्ड के एक द्वार से दूसरे द्वार का अपान्तराल अन्तर कितना है ? गौतम ! १०२७७३५ योजन और तीन कोस का अपान्तराल अन्तर है। मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (जीवाजीवाभिगम)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 90
SR No.034681
Book TitleAgam 14 Jivajivabhigam Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 14, & agam_jivajivabhigam
File Size4 MB
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