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________________ आगम सूत्र १४, उपांगसूत्र-३, 'जीवाजीवाभिगम' प्रतिपत्ति/उद्देश-/सूत्र सूत्र - २०९ हे भगवन् ! जम्बूद्वीपगत दो चन्द्रमाओं के दो चन्द्रद्वीप कहाँ पर हैं ? गौतम ! जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत के पूर्व में लवणसमुद्र में १२००० योजन आगे जाने पर हैं । ये द्वीप जम्बूद्वीप की दिशा में ८८१ योजन और ४०/९५ योजन पानी से ऊपर उठे हुए हैं और लवणसमुद्र की दिशा में दो कोस पानी से ऊपर उठे हुए हैं । ये १२००० योजन लम्बे गौतमद्वीप की तरह जानना । ये उन द्वीपों में बहसमरमणीय भूमिभाग कहे गये हैं यावत् वहाँ बहुत से ज्योतिष्क देव उठते-बैठते हैं । उन बहुसमरमणीय भागों में प्रासादावतंसक हैं, जो ६२|| योजन ऊंचे हैं, मध्यभाग में दो योजन की लम्बी-चौडी, एक योजन मोटी मणिपीठिकाएं हैं, इत्यादि । हे भगवन ! ये चन्द्रद्वीप क्यों कहलाते हैं ? हे गौतम ! उन द्वीपों की बहुत-सी छोटी-छोटी बावड़ियों आदि में बहुत से उत्पलादि कमल हैं, जो चन्द्रमा के समान आकृति और आभा वाले हैं और वहाँ चन्द्र नामक महर्द्धिक देव, जो पल्योपम की स्थिति वाले हैं, रहते हैं । वे वहाँ अलग-अलग चार हजार सामानिक देवों यावत् चन्द्रद्वीपों और चन्द्रा राजधानीयों और अन्य बहुत से ज्योतिष्क देवों और देवियों का आधिपत्य करते हुए अपने पुण्यकर्मों का विपाकानुभव करते हुए विचरते हैं । इस कारण हे गौतम ! वे चन्द्रद्वीप द्रव्यापेक्षया नित्य हैं अत एव उनके नाम भी शाश्वत हैं । हे भगवन् ! जम्बूद्वीप के चन्द्रों की चन्द्रा नामक राजधानीयाँ कहाँ है ? गौतम ! चन्द्रद्वीपों के पूर्व में तिर्यक् असंख्य द्वीप-समुद्रों को पार करने पर अन्य जम्बूद्वीप में १२००० योजन आगे जाने पर है । यावत् वहाँ चन्द्र नामक महर्द्धिक देव हैं। हे भगवन ! जम्बदीप के दो सर्यों के दो सर्यदीप कहाँ हैं? गौतम ! जम्बदीप के मेरुपर्वत के पश्चिम में मुद्र में १२००० योजन जाने पर हैं । शेष वर्णन चन्द्रद्वीप समान है । हे भगवन् ! सूर्यद्वीप, सूर्यद्वीप क्यों कहलाते हैं ? हे गौतम ! उन द्वीपों की बावड़ियों आदि में सूर्य के समान वर्ण और आकृति वाले बहुत सारे उत्पल आदि कमल हैं, इसलिए वे सूर्यद्वीप कहलाते हैं । ये सूर्यद्वीप द्रव्यापेक्षया नित्य है । इनमें सूर्यदेव, सामानिक देव आदि का यावत् ज्योतिष्क देव-देवियों का आधिपत्य करते हुए विचरते हैं यावत् इनकी राजधानीयाँ अपने-अपने द्वीपों से पश्चिम में असंख्यात द्वीप-समुद्रों को पार करने के बाद अन्य जम्बूद्वीप में १२००० योजन आगे जाने पर स्थित हैं । उनका प्रमाण आदि पूर्वोक्त चन्द्रादि राजधानीयों की तरह जानना यावत् वहाँ सूर्य नामक महर्द्धिक देव हैं सूत्र-२१० हे भगवन् ! लवणसमुद्र में रहकर जम्बूद्वीप की दिशा में शिखा से पहले विचरने वाले चन्द्रों के चन्द्रद्वीप नामक द्वीप कहाँ हैं ? गौतम ! जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत के पूर्व में लवणसमुद्र में १२००० योजन जाने पर जम्बूद्वीप के चन्द्रद्वीपों समान इनको जानना । विशेषता यह है कि इनकी राजधानीयाँ अन्य लवणसमुद्र में हैं । इसी तरह आभ्यन्तर लावणिक सूर्यों के सूर्यद्वीप लवणसमुद्र में १२००० योजन जाने पर वहाँ स्थित हैं, आदि चन्द्रद्वीप समान जानना । हे भगवन् ! लवणसमुद्र में रह कर शिखा से बाहर विचरण करने वाले बाह्य लावणिक चन्द्रों के चन्द्रद्वीप कहाँ हैं ? गौतम ! लवणसमुद्र की पूर्वीय वेदिकान्त से लवणसमुद्र के पश्चिम में १२००० योजन जाने पर हैं, जो धातकीखण्डद्वीपान्त की तरफ ८८११ योजन और ४०/९४ योजन जलांत से ऊपर हैं और लवणसमुद्रान्त की तरफ जलांत से दो कोस ऊंचे हैं । शेष कथन पूर्ववत् जानना। हे भगवन् ! बाह्य लावणिक सूर्यों के सूर्यद्वीप कहाँ हैं ? गौतम ! लवणसमुद्र की पश्चिमी वेदिकान्त से लवणसमुद्र के पूर्व में १२००० योजन जाने पर हैं, शेष सब वक्तव्यता राजधानी पर्यन्त पूर्ववत् कहना। सूत्र - २११ __ हे भगवन् ! धातकीखण्डद्वीप के चन्द्रों के चन्द्रद्वीप कहाँ हैं ? गौतम ! धातकीखण्डद्वीप की पूर्वी वेदि-कान्त से कालोदधिसमुद्र में बारह हजार योजन आगे जाने पर धातकीखण्ड के चन्द्रों के चन्द्रद्वीप हैं । (धातकी-खण्ड में १२ चन्द्र हैं ।) वे सब ओर से जलांत से दो कोस ऊंचे हैं । ये बारह हजार योजन के लम्बे-चौड़े हैं । इनकी परिधि, भूमिभाग, प्रासादावतंसक, मणिपीठिका, सपरिवार सिंहासन, नाम-प्रयोजन, राजधानीयाँ आदि पूर्ववत् जानना चाहिए । वे राजधानीयाँ अपने-अपने द्वीपों से पूर्वदिशा में अन्य धातकीखण्डद्वीप में हैं । शेष सब पूर्ववत् । मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (जीवाजीवाभिगम) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 87
SR No.034681
Book TitleAgam 14 Jivajivabhigam Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 14, & agam_jivajivabhigam
File Size4 MB
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