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आगम सूत्र १४, उपांगसूत्र-३, 'जीवाजीवाभिगम'
प्रतिपत्ति/उद्देश-/सूत्र यावत् पांच वर्ण वाले पुद्गलों का आहार करते हैं । भेदमार्गणा की अपेक्षा काले पुद्गलों का यावत् सफेद पुद्गलों का भी आहार करते हैं । भन्ते ! वर्ण से जिन काले पुद्गलों का आहार करते हैं वे क्या एकगुण काले हैं यावत् अनन्तगुण काले हैं ? गौतम ! एकगुण काले पुद्गलों का यावत् अनन्तगुण काले पुद्गलों का भी आहार करते हैं । इस प्रकार यावत् शुक्लवर्ण तक जान लेना । भन्ते ! भाव से जिन गंधवाले पुद्गलों का आहार करते हैं वे एक गंधवाले या दो गंधवाले हैं ? गौतम ! स्थानमार्गणा की अपेक्षा एक गन्धवाले पुद्गलों का भी आहार करते हैं और दो गन्धवालों का भी । भेदमार्गणा की अपेक्षा से सुरभिगन्ध और दुरभिगन्ध वाले दोनों का आहार करते हैं।
भन्ते ! जिन सुरभिगन्ध वाले पुद्गलों का आहार करते हैं वे क्या एकगुण सुरभिगन्ध वाले हैं यावत् अनन्तगुण सुरभिगन्ध वाले होते हैं ? गौतम ! एकगुण यावत् अनन्तगुण सुरभिगन्ध वाले पुद्गलों का आहार करते हैं
प्रकार दरभिगन्ध में भी कहना । रसों का वर्णन भी वर्ण की तरह जान लेना। भन्ते ! भाव की अपेक्षा से वे जीव जिन स्पर्शवाले पुद्गलों का आहार करते हैं वे एक स्पर्श वालों का आहार करते हैं यावत् आठ स्पर्श वाले का? गौतम ! स्थानमार्गणा की अपेक्षा एक, दो या तीन स्पर्शवालों का आहार नहीं करते किन्तु चार, पाँच यावत् आठ स्पर्शवाले पुद्गलों का आहार करते हैं। भेदमार्गणा की अपेक्षा कर्कश यावत् रूक्ष स्पर्शवाले पुद्गलों का भी आहार करते हैं । भन्ते ! स्पर्श की अपेक्षा जिन कर्कश पदगलों का आहार करते हैं वे क्या एकगुण कर्कश हैं या अनन्तगुण कर्कश हैं ? गौतम ! एकगुण का यावत् अनन्तगुण कर्कश का भी आहार करते हैं । इस प्रकार यावत् रूक्षस्पर्श तक जान लेना।
भन्ते ! वे आत्म-प्रदेशों से स्पृष्ट का आहार करते हैं या अस्पृष्ट का ? गौतम ! स्पृष्ट का आहार करते हैं, अस्पृष्ट का नहीं । भन्ते ! वे आत्म-प्रदेशों में अवगाढ़ पुद्गलों का आहार करते हैं या अनवगाढ़ का ? गौतम ! आत्म-प्रदेशों में अवगाढ़ पुद्गलों का आहार करते हैं । भन्ते ! वे अनन्तर-अवगाढ़ पुद्गलों का आहार करते हैं या परम्परा से अवगाढ़ का ? गौतम ! अनन्तर-अवगाढ़ पुद्गलों का आहार करते हैं । भन्ते ! वे थोड़े प्रमाणवाले पुद्गलों का आहार करते हैं या अधिक प्रमाणवाले पुद्गलों का ? गौतम ! वे थोड़े प्रमाणवाले पुद्गलों का भी आहार करते हैं और अधिक प्रमाणवाले का भी । भन्ते ! क्या वे ऊपर, नीचे या तिर्यक् स्थित पुद्गलों का आहार करते हैं ? गौतम ! वे ऊपर स्थित पुद्गलों का, नीचे स्थित पुद्गलों का और तिरछे स्थित पुद्गलों का भी आहार करते हैं । भन्ते ! क्या वे आदि, मध्य और अन्त में स्थित पुद्गलों का आहार करते हैं ? गौतम ! तीनों का।
! क्या वे अपने योग्य पदगलों का आहार करते हैं या अपने अयोग्य पदगलों का? गौतम ! वे अपने योग्य पदगलों का ही आहार करते हैं । भन्ते ! क्या वे समीपस्थ पदगलों का आहार करते हैं या दरस्थ पदगलों का? गौतम ! वे समीपस्थ पुद्गलों का ही आहार करते हैं । भन्ते ! क्या वे तीन दिशाओं, चार दिशाओं, पाँच दिशाओं और छह दिशाओं में स्थित पुद्गलों का आहार करते हैं ? गौतम ! व्याघात न हो तो छहों दिशाओं के पुद्गलों का आहार करते हैं । व्याघात हो तो तीन, चार और कभी पाँच दिशाओं में स्थित पुद्गलों का आहार करते हैं । प्रायः विशेष करके वे जीव कृष्ण, नील यावत् शुक्ल वर्ण वाले पुद्गलों का आहार करते हैं । गन्ध से सुरभिगंध दुरभिगंध वाले, रस से तिक्त यावत् मधुररस वाले, स्पर्श से कर्कश-मृदु यावत् स्निग्ध-रूक्ष पुद्गलों का आहार करते हैं । वे उन आहार्यमाण पुद्गलों के पुराने वर्णगुणों को यावत् स्पर्शगुणों को बदलकर, हटाकर, झटककर, विध्वंसकर उनमें दूसरे अपूर्व वर्णगुण, गन्धगुण, रसगुण और स्पर्शगुणों को उत्पन्न करके आत्मशरीरावगाढ़ पुद्गलों को सब आत्मप्रदेशों से ग्रहण करते हैं।
भगवन् ! वे जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नरक से, तिर्यंच से, मनुष्य से या देव से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! तिर्यंच से अथवा मनुष्य से आकर उत्पन्न होते हैं । तिर्यंच से उत्पन्न होते हैं तो असंख्यातवर्षायु वाले भोगमूमि के तिर्यंचों को छोड़कर शेष पर्याप्त-अपर्याप्त तिर्यंचों से आकर उत्पन्न होते हैं । मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं तो अकर्मभूमि वाले और असंख्यात वर्षों की आयुवालों को छोड़कर शेष मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं । इस प्रकार व्युत्क्रान्ति-उपपात कहना ।
मुनि दीपरत्नसागर कृत्- (जीवाजीवाभिगम) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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