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आगम सूत्र १४, उपांगसूत्र-३, 'जीवाजीवाभिगम'
प्रतिपत्ति/उद्देश-/सूत्र उन मणिपीठिकाओं के ऊपर अलग-अलग सिंहासन है। उन सिंहासनों के सिंह रजतमय हैं, स्वर्ण के उनके पाये हैं, तपनीय स्वर्ण के पायों के अधःप्रदेश हैं, नाना मणियों के पायों के ऊपरी भाग हैं, जंबूनद स्वर्ण के उनके गात्र हैं, वज्रमय उनकी संधियाँ हैं, नाना मणियों से उनका मध्यभाग बुना गया है । वे सिंहासन ईहामृग, यावत् पद्मलता से चित्रित हैं, प्रधान-प्रधान विविध मणिरत्नों से उनके पादपीठ उपचित हैं, उन सिंहासनो पर मृदु स्पर्श वाले आस्तरक युक्त गद्दे जिनमें नवीन छालवाले मुलायम-मुलायम दर्भाग्र और अतिकोमल केसर भरे हैं, उन गद्दों पर बेलबूटों से युक्त सूती वस्त्र की चादर बिछी हुई है, उनके ऊपर धूल न लगे इसलिए रजस्राण लगाया हुआ है, वे रमणीय लाल वस्त्र से आच्छादित है, सुरम्य है, आजिनक, रुई, बूर वनस्पति, मक्खन और अर्कतूल के समान मुलायम स्पर्शवाले हैं । वे सिंहासन प्रासादीय, दर्शनीय, अभिरूप और प्रतिरूप हैं।
य हैं । वे विजयष्य सफेद हैं, शंख, कुंद, जलबिन्दु, क्षीरोदधि के जल को मथित करने से उठनेवाले फेनपंज के समान हैं, सर्वरत्नमय हैं, स्वच्छ हैं यावत प्रतिरूप हैं। उन विजयदूष्यों के ठीक मध्यभाग में अलग अलग वज्रमय अंकुश हैं । उन में अलग अलग कुंभिका प्रमाण मोतियों की मालाएं लटक रही हैं । वे मुक्तामालाएं अन्य उनसे आधी ऊंचाई वाली अर्धकुंभिका प्रमाण चार चार मोतियों की मालाओं से सब ओरसे वेष्ठित हैं। उनमें तपनीयस्वर्ण के लंबूसक हैं, वे आसपास स्वर्ण प्रतरक से मंडित हैं यावत् श्री से अतीव अतीव सुशोभित हैं। उन प्रासादावतंसकों ऊपर आठ-आठ मंगल कहे हैं, यथा-स्वस्तिक यावत् छत्र सूत्र-१६९
उस विजयद्वार के दोनों ओर दोनों नैषेधिकाओं में दो दो तोरण कहे गये हैं । यावत् उन पर आठ-आठ मंगलद्रव्य और छत्रातिछत्र हैं। उन तोरणों के आगे दो दो शालभंजिकाएं हैं। उन तोरणों के आगे दो दो नागदंतक हैं । उन नागदंतकों में बहुत सी काले सूत में गूंथी हुई विस्तृत पुष्पमालाओं के समुदाय हैं यावत् वे अतीव शोभा से युक्त हैं । उन तोरणों के आगे दो दो घोड़ों के जोड़े हैं जो सर्वरत्नमय हैं, स्वच्छ हैं यावत् प्रतिरूप हैं । इसी प्रकार हयों की पंक्तियाँ, हयों की वीथियाँ और हयों के मिथुनक हैं । उन तोरणों के आगे दो-दो पद्मलताएं चित्रित हैं यावत् वे प्रतिरूप हैं । उन तोरणों के आगे अक्षत के स्वस्तिक चित्रित हैं जो सर्वरत्नमय हैं, स्वच्छ हैं यावत् प्रतिरूप हैं । उन तोरणों के आगे दो-दो चन्द्रकलश हैं । वे श्रेष्ठ कमलों पर प्रतिष्ठित हैं यावत् वे सर्वरत्नमय हैं यावत् प्रतिरूप हैं । उन तोरणों के आगे दो-दो भंगारक हैं । वे श्रेष्ठ कमलों पर प्रतिष्ठित हैं यावत् वे भंगारक बड़े-बड़े और मत्त हाथी के मुख की आकृति वाले हैं।
उन तोरणों के आगे दो-दो आदर्शक हैं । इन दर्पणों के प्रकण्ठक तपनीय स्वर्ण के बने हुए हैं, इनके स्तम्भ वैडूर्यरत्न के हैं, इनके वरांग वज्ररत्नमय हैं, इनके वलक्ष नाना मणियों के हैं, इनके मण्डल अंकरत्न के हैं । ये दर्पण अनवघर्षित और निर्मल छाया से युक्त हैं, चन्द्रमण्डल की तरह गोलाकार हैं । ये दर्पण बड़े-बड़े और दर्शक की आधी काया के प्रमाण वाले हैं। उन तोरणों के आगे दो-दो वज्रनाभ स्थाल हैं । वे स्वच्छ, तीन बार सूप आदि से साफ किये हुए और मूसलादि द्वारा खंडे हुए शुद्ध स्फटिक जैसे चावलों से भरे हुए हैं । वे सर्व स्वर्णमय हैं, स्वच्छ हैं यावत् वे स्थाल बड़े-बड़े रथ के चक्र के समान हैं । उन तोरणों के आगे दो-दो पात्रियाँ हैं । ये स्वच्छ जल से परिपूर्ण हैं | नानाविध पाँच रंग के हरे फलों से भरी हई हैं । वे पृथ्वीपरिणामरूप और शाश्वत हैं । वे स्थाल सर्वरत्नमय यावत् प्रतिरूप हैं और बड़े-बड़े गोकलिंजर चक्र के समान हैं।
उन तोरणों के आगे दो-दो सुप्रतिष्ठक हैं । वे नाना प्रकार के पाँच वर्गों की प्रसाधन-सामग्री और सर्व औषधियों से परिपूर्ण लगते हैं, वे सर्वरत्नमय, स्वच्छ यावत् प्रतिरूप हैं । उन तोरणों के आगे दो-दो मनोगुलिका हैं। उन मे बहुत-से सोने-चाँदी के फलक हैं । उन सोने-चाँदी के फलकों में बहुत से वज्रमय नागदंतक हैं । ये मुक्ताजाल के अन्दर लटकती हुई मालाओं से युक्त हैं यावत् हाथी के दाँत के समान हैं। उन में बहुत से चाँदी के सींके हैं । उन चाँदी के सींको में बहुत से वातकरक हैं । ये घड़े काले से यावत् सफेद सूत्र के बने हुए ढक्कन से आच्छादित हैं । ये सब वैडूर्यमय हैं, स्वच्छ हैं, यावत् प्रतिरूप हैं।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (जीवाजीवाभिगम) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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