________________
आगम सूत्र १४, उपांगसूत्र-३, 'जीवाजीवाभिगम'
प्रतिपत्ति/उद्देश-/सूत्र कहलाती है । मध्यम परिषद् त्रुटिता है और बाह्य परिषद् दृढरथा कहलाती है । गौतम ! पिशाचकुमारेन्द्र पिशाचराज काल की आभ्यन्तर परिषद् में आठ हजार, मध्यम परिषद् में दस हजार और बाह्य परिषद् में बारह हजार देव हैं आभ्यन्तर परिषदा में एक सौ देवियाँ हैं, मध्यम परिषदा में एक सौ और बाह्य परिषदा में भी एक सौ देवियाँ हैं।
हे गौतम ! पिशाचकुमारेन्द्र पिशाचराज काल की आभ्यन्तर परिषद् के देवों की स्थिति आधे पल्योपम की है, मध्यम परिषद् के देवों की देशोन आधा पल्योपम और बाह्यपरिषद् के देवों की स्थिति कुछ अधिक पाव पल्योपम की है। आभ्यन्तर परिषद् की देवियों की स्थिति कुछ अधिक पावपल्योपम, मध्यम परिषद् की देवियों की स्थिति पाव पल्योपम और बाहा परिषद की देवियों की स्थिति देशोन पाव पल्योपम की है। परिषदों का अर्थ आदि कथन चमरेन्द्र की तरह कहना । इसी प्रकार उत्तर दिशा के वानव्यन्तरों के विषय में भी कहना । उक्त सब कथन गीतयश नामक गन्धर्वइन्द्र पर्यन्त कहना। सूत्र-१६०
हे भगवन् ! ज्योतिष्क देवों के विमान कहाँ हैं ? ज्योतिष्क देव कहाँ रहते हैं ? गौतम ! द्वीपसमुद्रों से ऊपर और इस रत्नप्रभापृथ्वी के बहुत समतल एवं रमणीय भूमिभाग से सात सौ नब्बे योजन ऊपर जान पर एक सौ दस योजन प्रमाण ऊंचाईरूप क्षेत्र में तिरछे ज्योतिष्क देवों के असंख्यात लाख विमानावास कहे गये हैं। वे विमान आधे कपीठ के आकार के हैं-इत्यादि वर्णन स्थानपद के समान कहना यावत् वहाँ ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिष्कराज चन्द्र और सूर्य दो इन्द्र रहते हैं जो महर्द्धिक यावत् दिव्यभोगों का उपभोग करते हुए विचरते हैं । हे भगवन् ! ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिष्कराज सूर्य की कितनी परिषदाएं हैं ? गौतम ! तीन-तुंबा, त्रुटिता और प्रेत्या । आभ्यन्तर परिषदा का नाम तुंबा है, मध्यम परिषदा का नाम त्रुटिता है और बाह्य परिषद् का नाम प्रेत्या है । शेष वर्णन काल इन्द्र की तरह जानना । उनका परिमाण और स्थिति भी वैसी ही जानना चाहिए । परिषद् का अर्थ चमरेन्द्र की तरह जानना । सूर्य की वक्तव्यता अनुसार चन्द्र की भी वक्तव्यता जानना।
प्रतिपत्ति-३-'देव उद्देशक' का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (जीवाजीवाभिगम)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
Page 55