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________________ आगम सूत्र १४, उपांगसूत्र-३, 'जीवाजीवाभिगम' प्रतिपत्ति/उद्देश-/सूत्र [१४] जीवाजीवाभिगम उपांगसूत्र-३- हिन्दी अनुवाद प्रतिपत्ति-१-दुविह सूत्र-१ अरिहंतों को नमस्कार हो । सिद्धों को नमस्कार हो । आचार्यों को नमस्कार हो । उपाध्याय को नमस्कार हो। सर्व साधुओं को नमस्कार हो । ऋषभ आदि चौबीस तीर्थंकरों को नमस्कार हो । इस जैन प्रवचन में द्वादशांग गणिपिटक अन्य सब तीर्थंकरों द्वारा अनुमत है, जिनानुकूल है, जिनप्रणीत है, जिनप्ररूपित है, जिनाख्यात है, जिनानुचीर्ण है, जिनप्रज्ञप्त है, जिनदेशित है, जिन प्रशस्त है, पर्यालोचन कर उस पर श्रद्धा करते हुए, प्रतीति करते हुए, रुचि रखते हुए स्थविर भगवंतोंने जीवाजीवाभिगम अध्ययन प्ररूपित किया। सूत्र - २ जीवाजीवाभिगम क्या है ? जीवाजीवाभिगम दो प्रकार का है, १. जीवाभिगम और २. अजीवाभिगम । सूत्र-३ अजीवाभिगम क्या है? अजीवाभिगम दो प्रकार का है-१.रूपी-अजीवाभिगम, २.अरूपी-अजीवाभिगम । सूत्र-४ अरूपी-अजीवाभिगम क्या है ? दस प्रकार का है-१. धर्मास्तिकाय से लेकर १०. अद्धासमय पर्यन्त जैसा कि प्रज्ञापनासूत्र में कहा गया है। सूत्र - ५ रूपी-अजीवाभिगम क्या है ? रूपी-अजीवाभिगम चार प्रकार का है-स्कंध, स्कंध का देश, स्कंध का प्रदेश और परमाणुपुदगल | वे संक्षेप से पाँच प्रकार के हैं-१. वर्णपरिणत, २. गंधपरिणत, ३. रसपरिणत, ४. स्पर्शपरिणत और ५. संस्थानपरिणत । जैसा प्रज्ञापना में कहा गया है वैसा कथन यहाँ भी समझना। सूत्र-६ जीवाभिगम क्या है? जीवाभिगम दो भेद - संसारसमापन्नक जीवाभिगम,असंसारसमापन्नक जीवाभिगम । सूत्र -७ असंसार-प्राप्त जीवाभिगम क्या है ? असंसारप्राप्त जीवाभिगम दो प्रकार का है, अनन्तरसिद्ध असंसारप्राप्त जीवाभिगम और परंपरसिद्ध असंसारप्राप्त जीवाभिगम | अनन्तरसिद्ध असंसारप्राप्त जीवाभिगम कितने प्रकार का कहा गया है ? पन्द्रह प्रकार का है, यथा तीर्थसिद्ध यावत् अनेकसिद्ध । परम्परसिद्ध असंसारप्राप्त जीवाभिगम क्या है ? अनेक प्रकार का है। यथा-प्रथमसमयसिद्ध, द्वितीयसमयसिद्ध यावत् अनन्तसमयसिद्ध । यह असंसारप्राप्त जीवाभिगम का कथन पूर्ण हुआ । सूत्र-८ संसारप्राप्त जीवाभिगम क्या है ? संसारप्राप्त जीवों के सम्बन्ध में ये नौ प्रतिपत्तियाँ हैं-कोई कहते हैं कि संसारप्राप्त जीव दो प्रकार के हैं । कोई कहते हैं कि संसारवर्ती जीव तीन प्रकार के हैं । कोई कहते हैं कि संसारप्राप्त जीव चार प्रकार के हैं। कोई कहते हैं कि पाँच प्रकार के हैं । यावत कोई कहते हैं कि संसारप्राप्त जीव दस प्रकार के हैं। मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (जीवाजीवाभिगम)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 5
SR No.034681
Book TitleAgam 14 Jivajivabhigam Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 14, & agam_jivajivabhigam
File Size4 MB
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