SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 29
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम सूत्र १४, उपांगसूत्र-३, 'जीवाजीवाभिगम' प्रतिपत्ति/उद्देश-/सूत्र के बाद लोकान्त है । इसी प्रकार चारों दिशाओं को कहना । वालुकाप्रभा पृथ्वी के पूर्वदिशा के चरमांत से त्रिभाग सहित तेरह योजन के अपान्तराल बाद लोकान्त है । इस प्रकार चारों दिशाओं को कहना | पंकप्रभा में चौदह योजन, धूमप्रभा में त्रिभाग कम पन्द्रह योजन, तमप्रभा में त्रिभाग सहित पन्द्रह योजन और सातवी पृथ्वी में सोलह योजन के अपान्तराल के बाद लोकान्त कहा गया है । इसी प्रकार उत्तरदिशा के चरमान्त तक जानना । हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के पूर्वदिशा का चरमान्त कितने प्रकार का है ? गौतम ! तीन प्रकार का, घनोदधिवलय, घनवातवलय और तनुवातवलय । इसी प्रकार उत्तरदिशा के चरमान्त तक कहना चाहिए । इसी प्रकार सातवी पृथ्वी तक की सब पृथ्वीयों के उत्तरी चरमान्त तक सब दिशाओं के चरमान्तों के प्रकार कहना । सूत्र-९० भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी का घनोदधिवलय कितना मोटा है ? गौतम ! छह योजन, शर्कराप्रभापृथ्वी का घनोदधिवलय त्रिभागसहित छह योजन मोटा है । वालुकाप्रभा त्रिभागशून्य सात योजन का है | पंकप्रभा का घनोदधिवलय सात योजन का, धूमप्रभा का त्रिभागसहित सात योजन का, तमःप्रभा का त्रिभागन्यून आठ योजन का और तमस्तमःप्रभा का आठ योजन का है । हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी का घनवातवलय कितनी मोटाई वाला है ? गौतम ! साढ़े चार योजन का मोटा है । शर्कराप्रभा का एक कोस कम पाँच योजन, वालुकाप्रभा का पाँच योजन का, पंकप्रभा का एक कोस अधिक पाँच योजन का, धूमप्रभा का साढ़े पाँच योजन का और तमस्तमःप्रभा पृथ्वी का एक कोस कम छह योजन का बाहल्य है । हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी का तनुवातवलय कितनी मोटाई वाला कहा गया है ? गौतम ! छह कोस, शर्कराप्रभा का त्रिभागसहित छह कोस, वालुकाप्रभा का त्रिभाग-न्यून सात कोस, पंकप्रभा का सात कोस, धूमप्रभा का त्रिभागसहित सात कोस का, तमःप्रभा का त्रिभागन्यून आठ कोस और अधःसप्तमपृथ्वी का तनुवातवलय आठ कोस बाहल्य वाला है । हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के छह योजन बाहल्य वाले और प्रतरादि विभाग वाले घनोदधिवलय में वर्ण से काले आदि द्रव्य हैं क्या ? हाँ, गौतम ! हैं । इस प्रकार सप्तमपृथ्वी के घनोदधिवलय तक कहना । हे भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के साढ़े चार योजन बाहल्य वाले और प्रतरादि रूप में विभक्त घनवातवलय में वर्णादि परिणत द्रव्य हैं क्या ? हाँ, गौतम ! हैं । इसी प्रकार सातवी पृथ्वी तक कहना । इसी प्रकार तनुवातवलय के सम्बन्ध में भी अपने-अपने बाहल्य का विशेषण लगाकर सप्तम पृथ्वी तक कहना चाहिए । हे भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के घनोदधिवलय का आकार कैसा कहा गया है ? गौतम ! वर्तुल और वलयाकार कहा गया है, क्योंकि वह इस रत्नप्रभा पृथ्वी को चारों और से घेरकर रहा हुआ है । इसी प्रकार सातों पृथ्वीयों के घनोदधिवलय का आकार समझना । विशेषता यह है कि वे सब अपनी-अपनी पृथ्वी को घेरकर रहे हुए हैं । हे भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के घनवातवलय का आकार कैसा कहा गया है ? गौतम ! वर्तुल और वलयाकार कहा गया है, क्योंकि वह इस रत्नप्रभा पृथ्वी के घनोदधिवलय को चारों ओर से घेरकर रहा हुआ है । इसी तरह सातों पृथ्वीयों के घनवातवलय का आकार जानना । रत्नप्रभापृथ्वी के तनुवातवलय, वर्तुल और वलयाकार कहा गया है, क्योंकि वह घनवातवलय को चारों ओर से घेरकर रहा हुआ है । इसी प्रकार सप्तमपृथ्वी तक के तनुवातवलय का आकार जानना । हे भगवन् ! यह रत्नप्रभा पृथ्वी कितनी लम्बी-चौड़ी है ? गौतम ! असंख्यात हजार योजन लम्बी और चौड़ी तथा असंख्यात हजार योजन की परिधि वाली है । इसी प्रकार सप्तमपृथ्वी तक कहना । यह रत्नप्रभापृथ्वी अन्त में और मध्य में सर्वत्र समान बाहल्य वाली है। इसी प्रकार सातवीं पृथ्वी तक कहना। सूत्र-९१ हे भगवन् ! क्या इस रत्नप्रभापृथ्वी में सब जीव पहले काल-क्रम से उत्पन्न हुए हैं तथा युगपत् उत्पन्न हुए हैं ? गौतम ! कालक्रम से सब जीव पहले उत्पन्न हुए हैं किन्तु सब जीव एक साथ रत्नप्रभा में उत्पन्न नहीं हुए । इसी प्रकार सप्तम पृथ्वी तक कहना । हे भगवन् ! यह रत्नप्रभापृथ्वी कालक्रम से सब जीवों के द्वारा पूर्व में परित्यक्त है क्या ? तथा सब जीवों के द्वारा पूर्व में एक साथ छोड़ी गई है क्या ? गौतम ! कालक्रम से सब जीवों के द्वारा पूर्व में मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (जीवाजीवाभिगम) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 29
SR No.034681
Book TitleAgam 14 Jivajivabhigam Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 14, & agam_jivajivabhigam
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy