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________________ आगम सूत्र १४, उपांगसूत्र-३, 'जीवाजीवाभिगम' प्रतिपत्ति/उद्देश-/सूत्र प्रतिपत्ति-२-त्रिविध सूत्र - ५२ (पूर्वोक्त नौ प्रतिपत्तियों में से) जो कहते हैं कि संसारसमापन्नक जीव तीन प्रकार के हैं, वे ऐसा कहते हैं कि जीव तीन प्रकार के हैं-स्त्री, पुरुष और नपुंसक। सूत्र-५३ स्त्रियाँ कितने प्रकार की हैं ? तीन प्रकार की-तिर्यंचयोनिक स्त्रियाँ, मनुष्य स्त्रियाँ और देव स्त्रियाँ । तिर्यंचयोनिक स्त्रियाँ कितने प्रकार की हैं ? तीन प्रकार की-जलचरी, स्थलचरी और खेचरी । जलचरी स्त्रियाँ कितने प्रकार की हैं ? पाँच प्रकार की-मत्स्यी यावत् सुसुमारी । स्थलचरी स्त्रियाँ कितने प्रकार की हैं ? दो प्रकार की-चतुष्पदी और परिसपी । चतुष्पदी स्त्रियाँ कितने प्रकार की हैं ? चार प्रकार की-एकखुर वाली यावत् सनखपदी । परिसी स्त्रियाँ कितने प्रकार की हैं ? दो प्रकार की-उरपरिसपी और भुजपरिसपी । उरपरिसपी स्त्रियाँ कितने प्रकार की हैं? तीन प्रकार की-अहि, अजकरी और महोरगी । भुजपरिसी स्त्रियाँ कितने प्रकार की हैं ? अनेक प्रकार की, यथागोधिका, नकुली, सेधा, सेला, सरटी, शशकी, खारा, पंचलौकिक, चतुष्पदिका, मूषिका, मुंगुसिका, घरोलिया गोल्हिका, योधिका, वीरचिरालिका आदि । खेचरी स्त्रियाँ कितने प्रकार की हैं ? चार प्रकार की-चर्मपक्षिणी यावत् विततपक्षिणी। मनुष्य स्त्रियाँ कितने प्रकार की हैं ? तीन प्रकार की-कर्मभूमिजा, अकर्मभूमिजा और अन्तर्वीपजा । अन्तर्वीपजा स्त्रियाँ कितने प्रकार की हैं ? अट्ठावीस प्रकार की, यथा-एकोरुकद्वीपजा, यावत् शुद्धदंतद्वीपजा । अकर्मभूमिजा स्त्रियाँ कितने प्रकार की हैं ? तीस प्रकार की, यथा-पाँच हैमवत, पाँच एरण्यवत, पाँच हरिवर्ष, पाँच रम्यक वर्ष, पाँच देवकुरु और पाँच उत्तरकुरु में उत्पन्न । कर्मभूमिजा स्त्रियाँ कितने प्रकार की हैं ? पन्द्रह प्रकार की हैं । यथा-पाँच भरत, पाँच एरवेत और पाँच महाविदेहों में उत्पन्न। देवस्त्रियाँ कितने प्रकार की हैं ? चार प्रकार की । यथा-भवनपति देवस्त्रियाँ, वानव्यन्तर देवस्त्रियाँ, ज्योतिष्क देवस्त्रियाँ और वैमानिक देवस्त्रियाँ । भवनपति देवस्त्रियाँ कितने प्रकार की हैं ? दस प्रकार की । यथाअसुरकुमार यावत् स्तनितकुमार-भवनवासी-देवस्त्रियाँ । वानव्यन्तर देवस्त्रियाँ कितने प्रकार की हैं ? आठ प्रकार की हैं । यथा-पिशाच यावत् गन्धर्व वानव्यन्तर देवस्त्रियाँ । ज्योतिष्क देवस्त्रियाँ कितने प्रकार की हैं ? पाँच प्रकार की । यथा-चन्द्रविमान, सूर्यविमान, ग्रहविमान, नक्षत्रविमान और ताराविमान-ज्योतिष्क देवस्त्रियाँ । वैमानिक देव-स्त्रियाँ कितने प्रकार की हैं ? दो प्रकार की हैं । यथा-सौधर्मकल्प और ईशानकल्प वैमानिक देवस्त्रियाँ । सूत्र-५४ हे भगवन् ! स्त्रियों की कितने काल की स्थिति है ? गौतम ! एक अपेक्षा से जघन्य अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट पचपन पल्योपम की, दूसरी अपेक्षा से जघन्य अन्तमुहर्त और उत्कृष्ट नौ पल्योपम की, तीसरी अपेक्षा से जघन्य अन्तमुहर्त और उत्कृष्ट सात पल्योपम की और चोथी अपेक्षा से जघन्य अन्तमुहर्त और उत्कृष्ट पचास पल्योपम की स्थिति है। सूत्र -५५ हे भगवन् ! तिर्यक्योनि स्त्रियों की स्थिति कितने समय की है ? गौतम ! जघन्य से अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट से तीन पल्योपम की। भगवन् ! जलचर तिर्यक् योनि स्त्रियों की स्थिति ? गौतम ! जघन्य अन्तमुहर्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटी की है । भगवन् ! चतुष्पद स्थलचरतिर्यस्त्रियों की स्थिति क्या है ? गौतम ! जैसे तिर्यंचयोनिक स्त्रियों की स्थिति कही है वैसी जानना । भन्ते ! उरपरिसर्प स्थलचर तिर्यस्त्रियों की स्थिति कितने समय की है ? गौतम! जघन्य अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटी । इसी तरह भुजपरिसर्प स्त्रियों की स्थिति भी समझना । इसी तरह खेचरतिर्यस्त्रियों की स्थिति जघन्य अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग है। मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (जीवाजीवाभिगम) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 17
SR No.034681
Book TitleAgam 14 Jivajivabhigam Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 14, & agam_jivajivabhigam
File Size4 MB
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