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आगम सूत्र १४, उपांगसूत्र-३, 'जीवाजीवाभिगम'
प्रतिपत्ति/उद्देश-/सूत्र प्रतिपत्ति-१०- 'सर्वजीव'
प्रतिपत्ति-१०-सर्वजीव-१ सूत्र-३६९
भगवन् ! सर्वजीवाभिगम क्या है ? गौतम ! सर्वजीवाभिगम मे नौ प्रतिपत्तियाँ कही हैं । उनमें कोई ऐसा कहते हैं कि सब जीव दो प्रकार के हैं यावत् दस प्रकार के हैं । जो दो प्रकार के सब जीव कहते हैं, वे ऐसा कहते हैं, यथा-सिद्ध और असिद्ध ।
भगवन् ! सिद्ध, सिद्ध के रूप में कितने समय तक रह सकता है ? गौतम ! सादिअपर्यवसित | भगवन् ! असिद्ध, असिद्ध के रूप में कितने समय तक रहता है ? गौतम ! असिद्ध दो प्रकार के हैं-अनादि-अपर्यवसित असिद्ध सदाकाल असिद्ध रहता है और अनादि-सपर्यवसित मुक्ति-प्राप्ति के पहले तक अप्रसिद्धरूप में रहता है।
भगवन् ! सिद्ध का अन्तर कितना है ? गौतम ! सादि-अपर्यवसित का अन्तर नहीं होता है। भगवन् ! असिद्ध का अंतर कितना होता है ? गौतम ! अनादि-अपर्यवसित और अनादि-सपर्यवसित असिद्ध का अंतर नहीं होता । इन सिद्धों और असिद्धों में ? सबसे थोड़े सिद्ध, उनसे असिद्ध अनन्तगुण हैं। सूत्र - ३७०
अथवा सब जीव दो प्रकार के हैं, यथा-सेन्द्रिय और अनिन्द्रिय । भगवन् ! सेन्द्रिय, सेन्द्रिय के रूप में काल से कितने समय तक रहता है ? गौतम ! सेन्द्रिय जीव दो प्रकार के हैं-अनादि-अपर्यवसित और अनादि-सपर्य-वसित । अनिन्द्रिय में सादि-अपर्यवसित हैं । दोनों में अन्तर नहीं है । सेन्द्रिय की वक्तव्यता असिद्ध की तरह और अनिन्द्रिय की वक्तव्यता सिद्ध की तरह कहनी चाहिए। अल्पबहुत्वमें सबसे थोड़े अनिन्द्रिय हैं, सेन्द्रिय अनन्तगुण हैं ।
___ अथवा दो प्रकार के सर्व जीव हैं-सकायिक और अकायिक । इसी तरह सयोगी और अयोगी इनकी संचिट्ठणा, अन्तर और अल्पबहुत्व सेन्द्रिय की तरह जानना चाहिए । अथवा सब जीव दो प्रकार के हैं-सवेदक और
क । सवेदक तीन प्रकार के हैं, यथा-अनादि-अपर्यवसित, अनादि-सपर्यवसित और सादि-सपर्यवसित । इनमें जो सादि-सपर्यवसित हैं, वह जघन्य से अन्तर्महर्त्त और उत्कष्ट से अनन्तकाल तक रहता है यावत वह अन क्षेत्र से देशोन अपार्द्धपुद्गलपरावर्त है । अवेदक दो प्रकार के हैं-सादि-अपर्यवसित और सादि-सपर्यवसित । इनमें जो सादि-सपर्यवसित हैं, वह जघन्य से एक समय और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त तक रहता है।
भगवन् ! सवेदक का अन्तर कितने काल का है ? गौतम ! अनादि-अपर्यवसित और अनादि-सपर्यवसित का अन्तर नहीं होता । सादि-सपर्यवसित का अन्तर जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अन्तर्मुहर्त है । भगवन् ! अवेदक का अन्तर कितना है ? गौतम ! सादि-अपर्यवसित का अन्तर नहीं होता, सादि-सपर्यवसित का अन्तर जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अनन्तकाल है यावत् देशोन अपार्धपुद्गलपरावर्त । ___अल्पबहुत्व-सबसे थोड़े अवेदक हैं, उनसे सवेदक अनन्तगुण हैं । इसी प्रकार सकषायिक का भी कथन वैसा करना चाहिए जैसा सवेदक का किया है । अथवा दो प्रकार के सब जीव हैं-सलेश्य और अलेश्य । जैसा असिद्धों और सिद्धों का कथन किया, वैसा इनका भी कथन करना चाहिए यावत् सबसे थोड़े अलेश्य हैं, उनसे सलेश्य अनन्तगुण हैं। सूत्र-३७१
अथवा सब जीव दो प्रकार के हैं-ज्ञानी और अज्ञानी । भगवन् ! ज्ञानी, ज्ञानीरूप में कितने काल तक रहता है ? गौतम ! ज्ञानी दो प्रकार के हैं-सादि-अपर्यवसित और सादि-सपर्यवसित । इनमें जो सादि-सपर्यवसित हैं वे जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट साधिक ६६ सागरोपम तक रह सकते हैं । अज्ञानी का कथन सवेदक समान है । ज्ञानी का अन्तर जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अनन्तकाल, जो देशोन अपार्धपुद्गलपरावर्त रूप है । आदि के दो अज्ञानी-अनादि-अपर्यवसित और अनादि-सपर्यवसित का अन्तर नहीं है । सादि-सपर्यवसित अज्ञानी का अन्तर
मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (जीवाजीवाभिगम)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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