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आगम सूत्र १४, उपांगसूत्र-३, 'जीवाजीवाभिगम'
प्रतिपत्ति/उद्देश-/सूत्र असंख्येय बादर अपर्याप्त उत्पन्न होते हैं । उनसे सूक्ष्म अपर्याप्त असंख्येयगुण हैं, क्योंकि वे सर्वलोकव्यापी होने से उनका क्षेत्र असंख्येयगुण हैं । उनसे सूक्ष्म पर्याप्त संख्येयगुण हैं, क्योंकि चिरकाल-स्थायी होने से ये सदैव संख्येय गुण प्राप्त होते हैं । सब संख्या में यहाँ सात सूत्र हैं-१. सामान्य से सूक्ष्म-बादर पर्याप्त-अपर्याप्त विषयक, २. सूक्ष्मबादर पृथ्वीकायिक पर्याप्तापर्याप्तविषयक, ३. सूक्ष्म-बादर अप्कायिक पर्याप्तापर्याप्त विषयक, ४. सूक्ष्म-बादर तेजस्कायिक पर्याप्तापर्याप्त विषयक, ५. सूक्ष्म-बादर वायुकायिक पर्याप्तापर्याप्त विषयक, ६. सूक्ष्म-बादर वनस्पतिकायिक पर्याप्तापर्याप्त विषयक और ७. सूक्ष्म-बादर निगोद पर्याप्तापर्याप्त विषयक । सूक्ष्मों में अपर्याप्त थोड़े और पर्याप्त संख्येयगुण हैं और बादरों में पर्याप्त थोड़े और अपर्याप्त असंख्यातगुण हैं।
(५) पाँचवां अल्पबहुत्व इन सबका समुदित रूप में है । सबसे थोड़े बादर तेजस्कायिक पर्याप्त, उनसे बादर त्रसकायिक पर्याप्त असंख्येयगुण, उनसे बादर त्रसकायिक अपर्याप्त असंख्येयगुण, उनसे प्रत्येक शरीर बादर वनस्पतिकायिक पर्याप्त असंख्येयगुण, उनसे बादरनिगोद पर्याप्त असंख्येयगुण, उनसे बादर पृथ्वीकायिक पर्याप्त असंख्येयगुण, उनसे बादर अप्कायिक पर्याप्त असंख्येयगुण, उनसे बादर वायुकायिक पर्याप्त असंख्येयगुण, उनसे बादर तेजस्कायिक अपर्याप्त असंख्येयगुण, उनसे प्रत्येकशरीर बादर वनस्पतिकायिक अपर्याप्त असंख्येयगुण, उनसे बादरनिगोद अपर्याप्त असंख्येयगुण, उनसे बादर पृथ्वीकायिक अपर्याप्त असंख्येयगुण, उनसे बादर अप्कायिक अपर्याप्त असंख्येयगुण, उनसे बादर वायुकायिक अपर्याप्त असंख्येयगुण, उनसे सूक्ष्म तेजस्कायिक अपर्याप्त असंख्येयगुण, उनसे सूक्ष्म पृथ्वीकायिक अपर्याप्त विशेषाधिक, उनसे सूक्ष्म अप्कायिक अपर्याप्त विशेषाधिक, उनसे सूक्ष्म वायुकायिक अपर्याप्त विशेषाधिक, उनसे सूक्ष्म तेजस्कायिक अपर्याप्त संख्येयगुण, उनसे सूक्ष्म पृथ्वीकायिक अपर्याप्त विशेषाधिक, उनसे सूक्ष्म अप्कायिक अपर्याप्त विशेषाधिक, उनसे सूक्ष्म वायुकायिक पर्याप्त विशेषाधिक, उनसे सूक्ष्मनिगोद अपर्याप्त असंख्येयगुण, उनसे सूक्ष्मनिगोद पर्याप्त संख्येयगुण । उन पर्याप्त सूक्ष्म निगोदों से बादर वनस्पतिकायिक अपर्याप्त अनन्तगुण हैं । उनसे सामान्य बादर पर्याप्त विशेषाधिक हैं, उनसे बादर वनस्पतिकायिक अपर्याप्त असंख्येयगुण हैं, उनसे सामान्य बादर अपर्याप्त असंख्येयगुण हैं, उनसे सामान्य सूक्ष्म अपर्याप्त विशेषाधिक हैं, उनसे सूक्ष्म वनस्पतिकायिक पर्याप्त संख्येयगुण हैं, उनसे सामान्य सूक्ष्म पर्याप्तक विशेषाधिक हैं, उनसे सामान्य पर्याप्त-अपर्याप्त विशेषणरहित सूक्ष्म विशेषाधिक हैं। सूत्र-३६३
भगवन ! निगोद कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! दो प्रकार के निगोद और निगोदजीव । भगवन ! निगोद कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! दो प्रकार के सूक्ष्म और बादर | भगवन् ! सूक्ष्मनिगोद कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! दो प्रकार के पर्याप्तक और अपर्याप्तक । बादरनिगोद भी दो प्रकार के हैं-पर्याप्तक और अपर्याप्तक । भगवन् ! निगोदजीव कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! दो प्रकार के सूक्ष्म और बादर | सूक्ष्मनिगोदजीव दो प्रकार के हैंपर्याप्तक और अपर्याप्तक । बादरनिगोदजीव भी दो प्रकार के हैं-पर्याप्तक और अपर्याप्तक । सूत्र - ३६४
भगवन् ! निगोद द्रव्य की अपेक्षा क्या संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ? गौतम ! असंख्यात हैं। इसी प्रकार इनके पर्याप्त और अपर्याप्त सूत्र भी कहना । भगवन् ! सूक्ष्मनिगोद द्रव्य की अपेक्षा संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ? गौतम ! असंख्यात हैं । इसी प्रकार पर्याप्त तथा अपर्याप्त सूत्र भी कहना । इसी प्रकार बादरनिगोद के विषय में भी कहना । भगवन् ! निगोदजीव द्रव्य की अपेक्षा संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं? गौतम ! अनन्त हैं । इसी तरह इसके पर्याप्तसूत्र, सूक्ष्मनिगोदजीव तथा बादरनिगोदजीव और कहना । (ये द्रव्य की अपेक्षा से ९ निगोद के तथा ९ निगोदजीव के कुल अठारह सूत्र हुए।)
भगवन् ! प्रदेश की अपेक्षा निगोद संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ? गौतम ! अनन्त हैं । इसी प्रकार पर्याप्तसूत्र और अपर्याप्तसूत्र भी कहना । इसी प्रकार सूक्ष्मनिगोद और बादरनिगोद के सूत्र कहना । इसी प्रकार निगोदजीवों के प्रदेशों की अपेक्षा से नौ ही सूत्रों में अनन्त कहना ।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (जीवाजीवाभिगम) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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