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________________ आगम सूत्र १४, उपांगसूत्र-३, 'जीवाजीवाभिगम' प्रतिपत्ति/उद्देश-/सूत्र त्रसकाय की भी यही स्थिति है । बादर पृथ्वीकाय की २२००० वर्ष की, बादर अप्कायिकों की ७००० वर्ष की, बादर तेजस्काय की तीन अहोरात्र की, बादर वायुकाय की ३००० वर्ष की और बादर वनस्पति की १०००० वर्ष की उत्कृष्ट स्थिति है । इसी तरह प्रत्येकशरीर बादर की भी यही स्थिति है । निगोद की जघन्य से भी और उत्कृष्ट से भी अन्तर्मुहूर्त की ही स्थिति है । सब अपर्याप्त बादरों की स्थिति अन्तर्मुहूर्त है और सब पर्याप्तों की उत्कृष्ट स्थिति उनकी कुल स्थिति में से अन्तर्मुहूर्त कम करके कहना। सूत्र-३५७-३६० भगवन् ! बादर जीव, बादर के रूप में कितने काल तक रहता है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट से असंख्यातकाल-असंख्यात उत्सर्पिणी-अवसर्पिणियाँ हैं तथा क्षेत्र से अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण क्षेत्र के आकाशप्रदेशों का प्रतिसमय एक-एक के मान से अपहार करने पर जितने समय में वे निर्लेप हो जाएं, उतने काल के बराबर हैं | बादर पृथ्वीकायिक, बादर अप्कायिक, बादर तेजस्कायिक, बादर वायुकायिक, प्रत्येकशरीर बादर वनस्पतिकायिक और बादर निगोद की जघन्य कायस्थिति अन्तर्मुहर्त और उत्कृष्ट से सत्तर कोड़ाकोड़ी सागरोपम की है बादर वनस्पति की कायस्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट असंख्येयकाल है, जो कालमार्गणा से असंख्येय उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी तुल्य है और क्षेत्रमार्गणा से अंगुला-संख्येयभाग के आकाशप्रदेशों का प्रतिसमय एक-एक के मान से अपहार करने पर लगने वाले काल के बराबर हैं । सामान्य निगोद की कायस्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अनन्तकाल है । वह अनन्तकाल कालमार्गणा से अनन्त उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी प्रमाण है और क्षेत्रमार्गणा से ढाई पुद्गलपरावर्त तुल्य है । बाद त्रसकायसूत्र में जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट संख्येयवर्ष अधिक दो हजार सागरोपम की कायस्थिति कहनी चाहिए । बादर अपर्याप्तं की कायस्थिति के दसों सूत्रों में जघन्य और उत्कृष्ट से सर्वत्र अन्तर्मुहूर्त कहना चाहिये। बादर पर्याप्त के औघिकसूत्र में कायस्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट साधिक सागरोपम शतपृथक्त्व है । बादर पृथ्वीकायिक पर्याप्तसूत्र में जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट संख्यात हजार वर्ष कहना । इसी प्रकार अप्कायसूत्रों में भी कहना । तेजस्कायसूत्र में जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट संख्यात अहोरात्र कहना । वायुकायिक, सामान्य बादर वनस्पति, प्रत्येक बादर वनस्पतिकाय के सूत्र बादर पर्याप्त पृथ्वीकायवत् कहना । सामान्य निगोदपर्याप्तसूत्र में जघन्य, उत्कर्ष से अन्तर्मुहर्त्त, बादर त्रसकायपर्याप्तसूत्र में जघन्य अन्तर्मुहुर्त और उत्कृष्ट साधिक सागरोपम शतपृथक्त्व कहना चाहिए । (इतनी स्थिति चारों गतियों में भ्रमण करने से घटित होती है।) सूत्र-३६१ औधिक बादर, बादर वनस्पति, निगोद और बादर निगोद, इन चारों का अन्तर पृथ्वीकाल है, अर्थात् असंख्यातकाल-असंख्यातकाल असंख्येय उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी के बराबर है तथा क्षेत्रमार्गणा से असंख्येय लोकाकाश के प्रदेशों का प्रतिसमय एक-एक के मान से अपहार करने पर जितने समय में वे निर्लिप्त हो जायें, उतना कालप्रमाण जानना चाहिए । शेष बादर पृथ्वीकायिक, बादर अप्कायिक, बादर तेजस्कायिक, बादर वायुकायिक, प्रत्येक बादर वनस्पतिकायिक और बादर त्रसकायिक-इन छहों का अन्तर वनस्पतिकाल जानना । इसी तरह अपर्याप्तक और पर्याप्तक संबंधी दस-दस सूत्र भी ऊपर की तरह कहना चाहिए। सूत्र-३६२ प्रथम औधिक अल्पबहत्व-सबसे थोड़े बादर त्रसकाय, उनसे बादर तेजस्काय असंख्येयगुण, उनसे प्रत्येक शरीर बादर वनस्पतिकाय असंख्येयगुण, उनसे बादर निगोद असंख्येयगुण, उनसे बादर पृथ्वीकाय असंख्येयगुण, उनसे बादर अप्काय, बादर वायुकाय क्रमशः असंख्येयगुण, उनसे बादर वनस्पतिकायिक अनन्तगुण, उनसे बादर विशेषाधिक | अपर्याप्त बादरों का अल्पबहत्व औधिकसूत्र के अनुसार ही जानना चाहिए-जैसे सबसे थोड़े बादर त्रसकायिक अपर्याप्त, उनसे बादर तेजस्कायिक अपर्याप्त असंख्येयगुण इत्यादि औधिक क्रम । पर्याप्त बादरों का अल्पबहत्व-सबसे थोड़े बादर तेजस्कायिक पर्याप्त, उनसे बादर त्रसकायिक पर्याप्त मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (जीवाजीवाभिगम)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 118
SR No.034681
Book TitleAgam 14 Jivajivabhigam Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 14, & agam_jivajivabhigam
File Size4 MB
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