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आगम सूत्र १४, उपांगसूत्र-३, 'जीवाजीवाभिगम'
प्रतिपत्ति/उद्देश-/सूत्र सूत्र-३४२
भगवन् ! नैरयिकों की स्थिति कितनी है ? गौतम ! जघन्य दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट तेंतीस सागरोपम । तिर्यंचयोनिक की जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की है । मनुष्यों की भी यहीं है । देवों की स्थिति नैरयिकों के समान जानना । देव और नारक की जो स्थिति है, वही उनकी संचिट्ठणा है । तिर्यंक की कायस्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल है । मनुष्य, मनुष्य के रूप में जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटी पृथक्त्व अधिक तीन पल्योपम तक हैं । नैरयिक, मनुष्य और देवों का अन्तर जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल है । तिर्यंचयोनियों का अन्तर जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट कुछ अधिक दो सौ से नौ सौ सागरोपम का होता है। सूत्र-३४३
भगवन् ! इन नैरयिकों यावत् देवों में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सबसे थोड़े मनुष्य हैं, उनसे नैरयिक असंख्यगुण हैं, उनसे देव असंख्यगुण हैं और उनसे तिर्यंच अनन्तगुण हैं ।
प्रतिपत्ति-३-' वैमानिक उद्देशक' का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
प्रतिपत्ति-३-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (जीवाजीवाभिगम)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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