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आगम सूत्र १४, उपांगसूत्र-३, 'जीवाजीवाभिगम'
प्रतिपत्ति/उद्देश-/सूत्र सूत्र-३३२
भगवन् ! सौधर्म-ईशान के देवों के शरीर का वर्ण कैसा है ? गौतम ! तपे हुए स्वर्ण के समान लाल आभायुक्त । सनत्कुमार और माहेन्द्र कल्प के देवों का वर्ण पद्म, कमल के पराग के समान गौर है । ब्रह्मलोक के देव गीले महए के वर्ण वाले (सफेद) हैं । इसी प्रकार ग्रैवेयक देवों तक सफेद वर्ण कहना । अनुत्तरोपपातिक देवों के शरीर का वर्ण परमशुक्ल है । भगवन् ! सौधर्म-ईशान कल्पों के देवों के शरीर की गंध कैसी है ? गौतम ! कोष्ठपुट आदि सुगंधित द्रव्यों की सुगंध भी अधिक इष्ट, कान्त यावत् मनाम उनके शरीर की गंध होती है । अनुत्तरोपपातिक देवों पर्यन्त ऐसा ही कहना।
सौधर्म-ईशान कल्पों के देवों के शरीर का स्पर्श मृदु, स्निग्ध और मुलायम छविवाला है । इसी प्रकार अनुत्तरोपपातिक देवों पर्यन्त कहना । सौधर्म-ईशान देवों के श्वास के रूप में इष्ट, कान्त, प्रिय, मनोज्ञ, पुद्गल परिणत होते हैं । यही कथन अनुत्तरोपपातिक देवों तक कहना तथा यही बात उनके आहार रूप में परिणत होने वाले पुद्गलों में जानना । यही कथन अनुत्तरोपपातिक देवों पर्यन्त समझना । सौधर्म-ईशान देवलोक के देवों के मात्र एक तेजोलेश्या होती है । सनत्कुमार, माहेन्द्र और ब्रह्मलोक में पद्मलेश्या होती है । शेष सब में केवल शुक्ललेश्या होती है अनुत्तरोपपातिक देवों में परमशुक्ललेश्या होती है ।
भगवन् ! सौधर्म-ईशान कल्प के देव सम्यग्दृष्टि हैं, मिथ्यादृष्टि हैं या सम्यमिथ्यादष्टि हैं ? गौतम ! तीनों
के हैं । वेयक विमानों तक के देव तीनों दष्टिवाले हैं । अनत्तर विमानों के देव सम्यग्दष्टि ही होते हैं। भगवन्! सौधर्म-ईशान कल्प के देव ज्ञानी हैं या अज्ञानी ? गौतम ! दोनों प्रकार के हैं । जो ज्ञानी हैं वे नियम से तीन ज्ञानवाले हैं और जो अज्ञानी हैं वे नियम से तीन अज्ञानवाले हैं । यह कथन ग्रैवेयकविमान तक करना । अनुत्तरोपपातिक देव ज्ञानी ही हैं। उनमें तीन ज्ञान नियमतः होती ही हैं । इसी प्रकार उन देवों में तीन योग और दो उपयोग भी कहना । सौधर्म-ईशान से अनुत्तरोपपातिक पर्यन्त सब देवों में तीन योग और दो उपयोग पाये जाते हैं। सूत्र - ३३३
भगवन् ! सौधर्म-ईशान कल्प के देव अवधिज्ञान के द्वारा कितने क्षेत्र को जानते हैं-देखते हैं ? गौतम ! जघन्यतः अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण क्षेत्र को और उत्कृष्ट से नीची दिशा में रत्नप्रभापृथ्वी तक, ऊर्ध्वदिशा में अपने-अपने विमानों के ऊपरी भाग ध्वजा-पताका तक और तिरछीदिशा में असंख्यात द्वीप-समुद्रों को जानतेदेखते हैं। सूत्र-३३४
शक्र और ईशान प्रथम नरकपृथ्वी के चरमान्त तक, सनत्कुमार और माहेन्द्र दूसरी पृथ्वी के चरमान्त तक, ब्रह्म और लांतक तीसरी पृथ्वी तक, शुक्र और सहस्रार चौथी पृथ्वी तक । सूत्र-३३५
आणत-प्राणत-आरण-अच्युत कल्प के देव पाँचवीं पृथ्वी तक अवधिज्ञान के द्वारा जानते-देखते हैं । सूत्र-३३६
अधस्तनौवेयक, मध्यमग्रैवेयक देव छठी नरक पृथ्वी के चरमान्त तक, उपरितनग्रैवेयक देव सातवीं नरकपृथ्वी तक और अनुत्तरविमानवासी देव सम्पूर्ण चौदह रज्जू प्रमाण लोकनाली को जानते-देखते हैं। सूत्र-३३७
भगवन् ! सौधर्म-ईशानकल्पों में देवों में कितने समुद्घात हैं ? गौतम ! पाँच-वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात, मारणान्तिकसमुद्घात, वैक्रियसमुद्घात और तेजससमुद्घात । इसी प्रकार अच्युतदेवलोक तक कहना। ग्रैवेयकदेवों के आदि के तीन समुद्घात कहे गये हैं-भगवन् ! सौधर्म-ईशान देवलोक के देव कैसी भूख-प्यास का अनुभव करते हैं ? गौतम ! उन देवों को भूख-प्यास की वेदना होती ही नहीं है । अनुत्तरोपपातिक देवों पर्यन्त ऐसा
मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (जीवाजीवाभिगम) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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