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________________ आगम सूत्र १४, उपांगसूत्र-३, 'जीवाजीवाभिगम' प्रतिपत्ति/उद्देश-/सूत्र ७०० देवियाँ मध्य परिषद में ६०० और बाह्य परिषद में ५०० देवियाँ हैं । देवेन्द्र देवराज शक्र की आभ्यन्तर परिषद के देवों की स्थिति पाँच पल्योपम की है, मध्यम परिषद के देवों की स्थिति चार पल्योपम की है और बाह्य परिषद के देवों की स्थिति तीन पल्योपम की है । आभ्यन्तर परिषद की देवियों की स्थिति तीन पल्योपम, मध्यम परिषद की देवियों की स्थिति दो पल्योपम और बाह्य परिषद की देवियों की स्थिति एक पल्योपम है । शेष कथन चमरेन्द्र समान जानना। भगवन् ! ईशानकल्प के देवों के विमान आदि सब कथन सौधर्मकल्प की तरह जानना चाहिए । विशेषता यह है कि वहाँ ईशान नामक देवेन्द्र देवराज आधिपत्य करता हुआ विचरता है। उनकी तीन पर्षदाएं हैं-समिता, चंडा और जाया । शेष पूर्ववत् । विशेषता यह है कि आभ्यन्तर पर्षदा में १०००० देव, मध्यम १२००० देव और बाह्य पर्षदा में १४००० देव हैं । आभ्यन्तर पर्षदा में नौ सौ, मध्यमा परिषदा में आठ सौ और बाह्य पर्षदा में सात सौ देवियाँ हैं। आभ्यन्तर पर्षदा के देवों की स्थिति सात पल्योपम, मध्यम पर्षदा के देवों की स्थिति छह पल्योपम और बाह्य पर्षदा के देवों की स्थिति पाँच पल्योपम की है । आभ्यन्तर पर्षदा की देवियों की स्थिति कुछ अधिक पाँच पल्योपम, मध्यम पर्षदा की देवियों की स्थिति चार पल्योपम और बाह्य पर्षदा की देवियों की स्थिति तीन पल्योपम की है । सनत्कुमार देवों के विमानों के विषय में प्रज्ञापना के स्थानपद के अनुसार कथन करना यावत् वहाँ सनत्कुमार देवेन्द्र देवराज हैं । उसकी तीन पर्षदा हैं-समिता, चंडा और जाया । आभ्यन्तर परिषदा में ८०००, मध्यम परिषदा में १०००० और बाह्य परिषदा में १२००० देव हैं । आभ्यन्तर पर्षद के देवों की स्थिति साढ़े चार सागरोपम और पाँच पल्योपम है, मध्यम पर्षद के देवों की स्थिति साढ़े चार सागरोपम और चार पल्योपम है, बाह्य पर्षद के देवों की स्थिति साढ़े चार सागरोपम और तीन पल्योपम की है । पर्षदा का अर्थ चमरेन्द्र अनुसार जानना । इसी प्रकार माहेन्द्र देवेन्द्र का कथन जानना । विशेषता यह है कि आभ्यन्तर पर्षद में ६०००, मध्य पर्षद में ८००० और बाह्य पर्षद में १०००० देव हैं | आभ्यन्तर पर्षद के देवों की स्थिति साढ़े चार सागरोपम और सात पल्योपम की है । मध्य पर्षद के देवों की स्थिति साढ़े चार सागरोपम और छह पल्योपम की है और बाह्य पर्षद के देवों की स्थिति साढ़े चार सागरोपम और पाँच पल्योपम की है । इसी प्रकार स्थानपद के अनुसार पहले सब इन्द्रों के विमानों का कथन करने के पश्चात् प्रत्येक की पर्षदाओं का कथन करना । ब्रह्म इन्द्र की आभ्यन्तर परिषद् में ४००० देव, मध्यम परिषद् में ६००० देव और बाह्य परिषद् में ८००० देव हैं। आभ्यन्तर परिषद के देवों की स्थिति साढे आठ सागरोपम और पाँच पल्योपम है। मध्यम परिषद के देवों की स्थिति साढ़े आठ सागरोपम और चार पल्योपम की है । बाह्य परिषद् के देवों की स्थिति साढ़े आठ सागरोपम और तीन पल्योपम की है । लान्तक इन्द्र की आभ्यन्तर परिषद् में २००० देव, मध्यम परिषद् में ४००० देव और परिषद् में ६००० देव हैं । आभ्यन्तर परिषद् के देवों की स्थिति बारह सागरोपम और सात पल्योपम की है, मध्यम परिषद् के देवों की स्थिति बारह सागरोपम और छह पल्योपम की, बाह्य परिषद् के देवों की स्थिति बारह सागरोपम और पाँच पल्योपम की है। महाशुक्र इन्द्र की आभ्यन्तर परिषद् में १००० देव, मध्यम परिषद् में २००० देव और बाह्य परिषद् में ४००० देव हैं । आभ्यन्तर परिषद के देवों की स्थिति साढे पन्द्रह सागरोपम और पाँच पल्योपम की है। मध्यम परिषद के देवों की स्थिति साढ़े पन्द्रह सागरोपम और चार पल्योपम की और बाह्य परिषद् के देवों की स्थिति साढ़े पन्द्रह सागरोपम और तीन पल्योपम की है । सहस्रार इन्द्र की आभ्यन्तर पर्षद में ५०० देव, मध्यम पर्षद में १००० देव और बाह्य पर्षद में २००० देव हैं । आभ्यन्तर पर्षद के देवों की स्थिति साढ़े सत्रह सागरोपम और सात पल्योपम की है, मध्यम पर्षद के देवों की स्थिति साढ़े सत्रह सागरोपम और छह पल्योपम की है, बाह्य पर्षद के देवों की स्थिति साढ़े सत्रह सागरोपम और पाँच पल्योपम की है । आनत-प्राणत देव की । आभ्यन्तर पर्षद में अढ़ाई सौ देव हैं, मध्यम पर्षद में पाँच सौ देव और बाह्य पर्षद में एक हजार देव हैं, आभ्यन्तर पर्षद के देवों की स्थिति उन्नीस सागरोपम और पाँच पल्योपम है, मध्यम पर्षद के देवों की स्थिति उन्नीस सागरोपम और चार पल्योपम, बाह्य पर्षद के देवों की मुनि दीपरत्नसागर कृत्- (जीवाजीवाभिगम) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 108
SR No.034681
Book TitleAgam 14 Jivajivabhigam Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 14, & agam_jivajivabhigam
File Size4 MB
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