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आगम सूत्र १४, उपांगसूत्र-३, 'जीवाजीवाभिगम'
प्रतिपत्ति/उद्देश-/सूत्र अणुत्व या तुल्यत्व होता है। सूत्र-३०९-३११
प्रत्येक चन्द्र और सूर्य के परिवार में ८८ ग्रह, २८ नक्षत्र और ताराओं की संख्या ६६९७५ कोड़ाकोड़ी होती है सूत्र-३१२
भगवन् ! जम्बूद्वीप में मेरुपर्वत के पूर्व चरमान्त से ज्योतिष्कदेव कितनी दूर रहकर उसकी प्रदक्षिणा करते हैं ? गौतम ! ११२१ योजन की दूरी से प्रदक्षिणा करते हैं । इसी तरह दक्षिण, पश्चिम और उत्तर चरमान्त से भी समझना । भगवन् ! लोकान्त से कितनी दूरी पर ज्योतिष्कचक्र हैं ? गौतम ! ११११ योजन पर ज्योतिष्कचक्र है । इस रत्नप्रभापृथ्वी के बहुसमरमणीय भूमिभाग से ७९० योजन दूरी पर सबसे नीचला तारा गति करता है । ८०० योजन दूरी पर सूर्यविमान चलता है । ८८० योजन पर चन्द्रविमान चलता है । ९०० योजन दूरी पर सबसे ऊपरवर्ती तारा गति करता है।
भगवन् ! सबसे नीचले तारा से कितनी दूरी पर सूर्य का विमान चलता है ? कितनी दूरी पर चन्द्र का विमान चलता है ? कितनी दूरी पर सबसे ऊपर का तारा चलता है ? गौतम ! सबसे नीचले तारा से दस योजन दरी पर सूर्यविमान चलता है, नब्बे योजन दूरी पर चन्द्रविमान चलता है । एक सौ दस योजन दूरी पर सबसे ऊपर का तारा चलता है । सूर्यविमान से अस्सी योजन की दूरी पर चन्द्रविमान चलता है और एक सौ योजन ऊपर सर्वोपरि तारा चलता है । चन्द्रविमान से बीस योजन दूरी पर सबसे ऊपर का तारा चलता है । इस प्रकार सब मिलाकर एक सौ दस योजन के बाहल्य में तिर्यगदिशा में असंख्यात योजन पर्यन्त ज्योतिष्कचक्र कहा गया है। सूत्र-३१३
भगवन् ! जम्बूद्वीप में कौन-सा नक्षत्र सब नक्षत्रों के भीतर, बाहर मण्डलगति से तथा ऊपर, नीचे विचरण करता है ? गौतम ! अभिजित नक्षत्र सबसे भीतर रहकर, मूल नक्षत्र सब नक्षत्रों से बाहर रहकर, स्वाति नक्षत्र सब नक्षत्रों से ऊपर रहकर और भरणी नक्षत्र सबसे नीचे मण्डलगति से विचरण करता है। सूत्र-३१४
भगवन् ! चन्द्रमा का विमान किस आकार का है ? गौतम ! चन्द्रविमान अर्धकबीठ के आकार का है । वह सर्वात्मना स्फटिकमय है, इसकी कान्ति सब दिशा-विदिशा में फैलती है, जिससे यह श्वेत, प्रभासित है इत्यादि । इसी प्रकार सूर्य, ग्रह और ताराविमान भी अर्धकबीठ आकार के हैं।
भगवन् ! चन्द्रविमान का आयाम-विष्कम्भ कितना है ? परिधि कितनी है ? और बाहल्य कितना है ? गौतम ! आयाम-विष्कम्भ एक योजन के ६१ भागों में से ५६ भाग प्रमाण है । इससे तीन गुणी से कुछ अधिक उसकी परिधि है । एक योजन के ६१ भागों में से २८ भाग प्रमाण उसकी मोटाई है। सूर्यविमान एक योजन के ६१ भागों में से ४८ भाग प्रमाण लम्बा-चौड़ा, इससे तीन गुणी से कुछ अधिक उसकी परिधि और एक योजन के ६१ भागों में से २४ भाग प्रमाण उसकी मोटाई है । ग्रहविमान आधा योजन लम्बा-चौड़ा, इससे तीन गुणी से कुछ अधिक परिधि वाला और एक कोस की मोटाई वाला है । नक्षत्रविमान एक कोस लम्बा-चौड़ा, इससे तीन गुणी से कुछ अधिक परिधि वाला और आधे कोस की मोटाई वाला है । ताराविमान आधे कोस की लम्बाई-चौड़ाई वाला, इससे तिगुनी से कुछ अधिक परिधि वाला और पाँच सौ धनष की मोटाई वाला है।
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सूत्र-३१५
भगवन ! चन्द्रविमान को कितने हजार देव वहन करते हैं? गौतम ! १६००० देव, उनमें से ४००० देव सिंह का रूप धारण कर पूर्वदिशा से उठाते हैं । वे सिंह श्वेत हैं, सुन्दर हैं, श्रेष्ठ कांति वाले हैं, शंख के तल के समान विमल
और निर्मल तथा जमे हुए दहीं, गाय का दूध, फेन चाँदी के नीकर के समान श्वेत प्रभावाले हैं, उनकी आँखें शहद की गोली के समान पीली है, मुख में स्थित सुन्दर प्रकोष्ठों से युक्त गोल, मोटी, परस्पर जुड़ी हुई विशिष्ट और तीखी
मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (जीवाजीवाभिगम) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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