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आगम सूत्र १३, उपांगसूत्र-२, 'राजप्रश्चिय' तंसक पाँच सौ योजन ऊंचा और अढ़ाई सौ योजन चौड़ा है तथा अपनी फैल रही प्रभा से हँसता हुआ प्रतीत होता है, उस प्रासाद के भीतर के भूमिभाग, उल्लोक, भद्रासनों, आठ मंगल, ध्वजाओं और छत्रातिछत्रों का यहाँ कथन करना । वह प्रधान प्रासादावतंसक सभी चारों दिशाओं में ऊंचाई में अपने से आधे ऊंचे अन्य चार प्रासादावतंसकों से परिवेष्टित है । ये चारों प्रासादावतंसक ढ़ाई सौ योजन ऊंचे और चौड़ाई में सवा सौ योजन चौड़े हैं, इत्यादि वर्णन पूर्ववत् । ये चारों प्रासादावतंसक भी पुनः चारों दिशाओं में अपनी ऊंचाई वाले अन्य चार प्रासादावतंसकों से घिरे हैं। ये प्रासादावतंसक एक सौ पच्चीस योजन ऊंचे और साढ़े बासठ योजन चौड़े हैं तथा ये चारों ओर फैल रही प्रभा से हँसते हुए-से दिखते हैं, यहाँ से लेकर भूमिभाग, चंदेवा, सपरिवार सिंहासन, आठ-आठ मंगल, ध्वजाओं, छात्रा-तिछत्रों से सुशोभित हैं, पर्यन्त इनका वर्णन करना । ये प्रासादावतंसक भी चारों दिशाओं में अपनी ऊंचाई से आधी ऊंचाई वाले अन्य चार प्रासादावतंसकों से परिवेष्टित हैं । ये प्रासादावतंसक साढे बासठ योजन ऊंचे और इकतीस योजन एक कौस चौड़े हैं । इन प्रासादों के भूमिभाग, चंदेवा, सपरिवार सिंहासन, ऊपर आठ मंगल, ध्वजाओं छत्रातिछत्रों आदि का वर्णन भी पूर्ववत् । सूत्र - ३६
उस प्रधान प्रासाद के ईशान कोण में सौ योजन लम्बी, पचास योजन चौड़ी और बहत्तर योजन ऊंची सुधर्मा नामक सभा है । यह सभा अनेक सैकड़ों खम्भों पर सन्निविष्ट यावत् अप्सराओं से व्याप्त अतीव मनोहर हैं। इस सुधर्मा सभा की तीन दिशाओं में तीन द्वार हैं । पूर्व दिशा में, दक्षिण दिशा में और उत्तर दिशा में । ये द्वार ऊंचाई में सोलह योजन ऊंचे, आठ योजन चौड़े और उतने ही प्रवेश मार्ग वाले हैं । वे द्वार श्वेत वर्ण के हैं । श्रेष्ठ स्वर्ण से निर्मित शिखरों एवं वनमालाओं से अलंकृत हैं, आदि वर्णन पूर्ववत् ।
दारों के आगे सामने एक-एक मखमंडप है। ये मंडप नौ योजन लम्बे, पचास योजन चौडे और ऊंचाई में कुछ अधिक सोलह योजन ऊंचे हैं | सुधर्मा सभा के समान इनका शेष वर्णन करना । इन मंडपों की तीन दिशाओं में तीन द्वार हैं, यथा-एक पूर्व में, एक दक्षिण में और एक उत्तर में । ये द्वार ऊंचाई में सोलह योजन ऊंचे हैं, आठ योजन चौड़े और उतने ही प्रवेशमार्ग वाले हैं । ये द्वार श्वेत धवलवर्ण और श्रेष्ठ स्वर्ण से बनी शिखरों, वनमालाओं से अलंकृत हैं, पर्यन्त का वर्णन पूर्ववत् । उन मुखमंडपों में से प्रत्येक के आगे प्रेक्षागृहमंडप बने हैं। इन मंडपों के द्वार, भूमिभाग, चाँदनी आदि का वर्णन मुखमंडपों की वक्तव्यता के समान जानना ।
उन प्रेक्षागृह मंडपों के अतीव रमणीय समचौरस भूमिभाग के मध्यातिमध्य देश में एक-एक वज्ररत्नमय अक्षपाटक-मंच कहा गया है। उन वज्ररत्नमय अक्षपाटकों के भी बीचों-बीच आठ योजन लम्बी-चौड़ी, चार योजन मोटी और विविध प्रकार के मणिरत्नों से निर्मित निर्मल यावत् प्रतिरूप एक-एक मणिपीठिकाएं बनी हुई हैं। उन मणिपीठिकाओं के ऊपर एक-एक सिंहासन रखा है । भद्रासनों आदि आसनों रूपि परिवार सहित उन सिंहासनों का वर्णन करना । उन प्रेक्षागृह मंडपों ऊपर आठ-आठ मंगल, ध्वजाएं, छत्रातिछत्र सुशोभित हो रहे हैं
उन प्रेक्षागृह मंडपों के आगे एक-एक मणिपीठिका है । ये मणिपिठीकाएं सोलह-सोलह योजन लम्बीचौड़ी आठ योजन मोटी है। ये सभी सर्वात्मना मणिरत्नमय, स्फटिक मणि के समान निर्मल और प्रतिरूप हैं । उन प्रत्येक मणिपीठों के ऊपर सोलह-सोलह योजन लम्बे-चौड़े समचौरस और ऊंचाई में कुछ अधिक सोलह योजन ऊंचे, शंख, अंकरत्न, यावत् सर्वात्मना रत्नों से बने हुए स्वच्छ यावत् असाधारण रमणीय स्तूप बने हैं । उन स्तूपों के ऊपर आठ-आठ मंगल, ध्वजाएं छत्रातिछत्र यावत् सहस्रपत्र कमलों के झूमके सुशोभित हो रहे हैं । उन स्तूपों की चारों दिशाओं में एक-एक मणिपीठिका है। ये आठ योजन लम्बी-चौडी, चार योजन मोटी और अनेक प्रकारके मणिरत्नों से निर्मित, निर्मल यावत् प्रतिरूप हैं । प्रत्येक मणिपीठिका ऊपर, जिनका मुख स्तूपों के सामने है ऐसी जिनोत्सेध प्रमाण चार जिन-प्रतिमाएं पर्यंकासनसे बिराजमान हैं- ऋषभ, वर्धमान, चन्द्रानन, वारिषेण की
उन प्रत्येक स्तूपों के आगे-सामने मणिमयी पीठिकायें बनी हुई हैं । ये मणिपीठिकाएं सोलह योजन लम्बीचौड़ी, आठ योजन मोटी और सर्वात्मना मणिरत्नों से निर्मित, निर्मल यावत् अतीव मनोहर हैं । उन मणिपीठिकाओं
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (राजप्रश्चिय)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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