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आगम सूत्र ११, अंगसूत्र-१, 'विपाकश्रुत'
श्रुतस्कन्ध/अध्ययन/ सूत्रांक ग्रहण करती है । ग्रहण कर लोहे के उस डंडे को तपाती है, तपाकर अग्नि के समान देदीप्यमान या खिले हए किंशुक के फूल के समान लाल हुए उस लोहे के दण्ड को संडासी से पकड़कर जहाँ श्रीदेवी थी वहाँ आकर श्रीदेवी के गुदास्थान में घुसेड़ देती है । लोहदंड के घुसेड़ने से बड़े जोर के शब्दों से चिल्लाती हुई श्रीदेवी कालधर्म से संयुक्त हो गई-मृत्यु को प्राप्त हो गई।
तदनन्तर उस श्रीदेवी की दासियाँ भयानक चीत्कार शब्दों को सूनकर अवधारण कर जहाँ श्रीदेवी थी वहाँ आती हैं और वहाँ से देवदत्ता देवी को नीकलती हुई देखती हैं । जिधर श्रीदेवी सोई हुई थी वहाँ आकर श्रीदेवी को प्राणरहित, चेष्टारहित देखती हैं । देखकर-'हा ! हा ! बड़ा अनर्थ हुआ' इन प्रकार कहकर रुदन, आक्रन्दन तथा विलाप करती हई, महाराजा पुष्पनन्दी से इस प्रकार निवेदन करती हैं- निश्चय ही हे स्वामिन् ! श्रीदेवी को देवदत्ता देवी ने अकाल में ही जीवन से पृथक् कर दिया-तदनन्तर पुष्पनन्दी राजा उन दासियों से इस वृत्तान्त को सून समझ कर महान् मातृशोक से आक्रान्त होकर परशु से काटे हुए चम्पक वृक्ष की भाँति धड़ाम से पृथ्वी-तल पर सर्व अङ्गों से गिर पड़ा।
तदनन्तर एक मुहर्त के बाद वह पुष्पनन्दी राजा होश में आया । अनेक राजा-नरेश, ईश्वर, यावत् सार्थवाह के नायकों तथा मित्रों यावत् परिजनों के साथ रुदन, आक्रन्दन व विलाप करता हुआ श्रीदेवी का महान ऋद्धि तथा सत्कार के साथ निष्कासन कृत्य करता है । तत्पश्चात् क्रोध के आवेश में रुष्ट, कुपित, अतीव क्रोधाविष्ट तथा लालपीला होता हुआ देवदत्ता देवी को राजपुरुषों से पकड़वाता है । पकड़वाकर इस पूर्वोक्त विधान से 'यह वया है। ऐसी राजपुरुषों को आज्ञा देता है । इस प्रकार निश्चय ही, हे गौतम ! देवदत्ता देवी अपने पूर्वकृत् अशुभ पापकर्मों का फल पा रही हैं । अहो भगवन् ! देवदत्ता देवी यहाँ से काल मास में काल करके कहाँ जाएगी ? कहाँ उत्पन्न होगी ? हे गौतम ! देवदत्ता देवी ८० वर्ष की परम आयु भोग कर काल मास में काल करके इस रत्नप्रभा नामक नरक में नारक पर्याय में उत्पन्न होगी। शेष संसारभ्रमण पूर्ववत् करती हुई यावत् वनस्पति अन्तर्गत निम्ब आदि कटु-वृक्षों तथा कटुदुग्ध वाले अकादि पौधों में लाखों बार उत्पन्न होगी । तदनन्तर वहाँ से नीकलकर गङ्गपुर नगर में हंस रूप से उत्पन्न होगी । वहाँ शाकुनिकों द्वारा वध किए जान पर वह गङ्गपुर में ही श्रेष्ठिकुल में पुत्ररूपमें जन्म लेगी । वहाँ उसका जीव सम्यक्त्व को प्राप्त कर सौधर्म नामक प्रथम देवलोकमें उत्पन्न होगा । वहाँ से च्युत होकर महाविदेह क्षेत्रमें उत्पन्न होगा । वहाँ चारित्र ग्रहण कर यथावत् पालन कर सिद्धि प्राप्त करेगा । निक्षेप पूर्ववत् ।
अध्ययन-९-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (विपाकश्रुत) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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