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आगम सूत्र ११, अंगसूत्र-१, 'विपाकश्रुत'
श्रुतस्कन्ध/अध्ययन/ सूत्रांक रखकर आर्तध्यान में मग्न हो रही हो ? स्वामिन् ! लगभग तीन मास पूर्ण होने पर मुझे यह दोहद उत्पन्न हुआ कि वे माताएं धन्य हैं, कि जो चतुष्पाद पशुओं के ऊधस, स्तन आदि के लवण-संस्कत माँस का अनेक प्रकार की मदिराओं के साथ आस्वादन करती हुई अपने दोहद को पूर्ण करती है । उस दोहद के पूर्ण न होने से निस्तेज व हतोत्साह होकर मैं आर्तध्यान में मग्न हूँ । तदनन्तर भीम कूटग्राह ने उत्पला से कहा-देवानुप्रिये ! तुम चिन्ताग्रस्त व आर्तध्यान युक्त न होओ, मैं वह सब कुछ करूँगा जिससे तुम्हारे इस दोहद की परिपूर्ति हो जाएगी। इस प्रकार के इष्ट, प्रिय, कान्त, मनोहर, मनोज्ञ वचनों से उसने उसे समाश्वासन दिया । तत्पश्चात् भीम कूटग्राह आधी रात्रि के समय अकेला ही दृढ़ कवच पहनकर, धनुष-बाण से सज्जि होकर, ग्रैवेयक धारण कर एवं आयुध प्रहरणों को लेकर अपने घर से नीकला और हस्तिनापुर नगर के मध्य से होता हआ जहाँ पर गोमण्डप था वहाँ आकर वह नागरिक पशुओं यावत् वृषभों में से कईं एक के ऊधस्, कईं एक के सास्ना-कम्बल आदि व कईं एक के अन्यान्य अङ्गोंपाङ्गों को काटता है और काटकर अपने घर आता है । आकर अपनी भार्या उत्पला को दे देता है । तदनन्तर वह उत्पला उन अनेक प्रकार के शूल आदि पर पकाये गए गोमांसों के साथ अनेक प्रकार की मदिरा आदि का आस्वादन, विस्वादन करती हुई अपने दोहद परिपूर्ण करती है । इस तरह वह परिपूर्ण दोहदवाली, सन्मानित दोहद वाली, विनीत दोहदवाली, व्युच्छिन्न दोहदवाली व सम्पन्न दोहदवाली होकर गर्भ को सुखपूर्वक धारण करती है । सूत्र-१४
तदनन्तर उस उत्पला नामक कूटग्राहिणी ने किसी समय नव-मास परिपूर्ण हो जाने पर पुत्र को जन्म दिया। जन्म के साथ ही उस बालक ने अत्यन्त कर्णकटु तथा चीत्कारपूर्ण भयंकर आवाज की । उस बालक के
त्कारपूर्ण शब्दों को सूनकर तथा अवधारण कर हस्तिनापुर नगर के बहुत से नागरिक पशु यावत् वृषभ आदि भयभीत व उदेग को प्राप्त होकर चारों दिशाओं में भागने लगे । इससे उसके माता-पिता ने इस नाम-संस्करण किया कि जन्म के साथ ही उस बालक ने चीत्कार के द्वारा कर्णकटु स्वर युक्त आक्रन्दन किया, इस प्रकार के उस कर्णकट, चीत्कारपूर्ण आक्रन्दन को सुनकर तथा अवधारण कर हस्तिनापुर के गौ आदि नागरिक पशु भयभीत व उद्विग्न होकर चारों तरफ भागने लगे, अतः इस बालक का नाम गोत्रास रखा जाता है । तदनन्तर यथासमय उस गोत्रास नामक बालक ने बाल्यावस्था को त्याग कर युवावस्था में प्रवेश किया।
तत्पश्चात् भीम कूटग्राह किसी समय कालधर्म को प्राप्त हुआ । तब गोत्रास बालक ने अपने मित्र, ज्ञाति, निजक, स्वजन, सम्बन्धी और परिजनों से परिवृत्त होकर रुदन, विलपन तथा आक्रन्दन करते हुए अपने पिता भीम कूटग्राह का दाहसंस्कार किया । अनेक लौकिक मृतक-क्रियाएं की। तदनन्तर सुनन्द नामक राजा ने किसी समय स्वयमेव गोत्रास बालक को कूटग्राह के पद पर नियुक्त किया । गोत्रास भी महान् अधर्मी व दुष्प्रत्यानन्द था। उसके बाद वह गोत्रास कूटग्राह प्रतिदिन आधी रात्रि के समय सैनिक की तरह तैयार होकर कवच पहनकर और शास्त्रास्त्रों को धारण कर अपने घर से नीकलता । गोमण्डप में जाता । अनेक गौ आदि नागरिक पशुओं के अङ्गोंपाङ्गों को काटकर आ जाता । उन गौ आदि पशुओं के शूलपक्व तले, भुने, सूखे और नमकीन माँसों के साथ मदिरा आदि का आस्वादन, विस्वादन करता हुआ जीवनयापन करता । तदनन्तर वह गोत्रास कूटग्राह इस प्रकार के कर्मोंवाला, इस प्रकार के कार्यों में प्रधानता रखने वाला, इस प्रकार की पाप-विद्या को जानने वाला तथा ऐसे क्रूर आचरणों वाला नाना प्रकार के पापकर्मों का उपार्जन कर पाँच सौ वर्ष का पूरा आयुष्य भोगकर चिन्ता और दुःख से पीड़ित होकर मरणावसर में काल करके उत्कृष्ट तीन सागर की उत्कृष्ट स्थिति वाले दूसरे नरक में नारक रूप से उत्पन्न हुआ। सूत्र - १५
विजयमित्र की सुभद्रा नाम की भार्या जातनिन्दुका थी । अत एव जन्म लेते ही उसके बालक विनाश को प्राप्त हो जाते थे । तत्पश्चात् वह गोत्रास कूटग्राह का जीव भी दूसरे नरक से नीकलकर सीधा इसी वाणिजग्राम नगर के विजयमित्र सार्थवाह की सुभद्रा नाम की भार्या के उदर में पुत्ररूप से उत्पन्न हुआ-नव मास परिपूर्ण होने
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (विपाकश्रुत) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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