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________________ आगम सूत्र १०, अंगसूत्र-१०, 'प्रश्नव्याकरण' द्वार/अध्ययन/ सूत्रांक वर्जन करना चाहिए। ऐसे स्त्री के संसर्ग के कारण संक्लिष्ट जो भी स्थान हों, उनसे भी अलग रहना चाहिए, जैसेजहाँ रहने से मन में विभ्रम हो, ब्रह्मचर्य भग्न होता हो या उसका आंशिकरूप से खण्डन होता हो, जहाँ रहने से आर्त्तध्यान-रौद्रध्यान होता हो, उन-उन अनायतनों का पापभीरु-परित्याग करे । साधु तो ऐसे स्थान पर ठहरता है जो अन्त-प्रान्त हों । इस प्रकार असंसक्तवास-वसति-समिति के स्थान का त्याग रूप समिति के योग से युक्त अन्तःकरण वाला, ब्रह्मचर्य की मर्यादा में मन वाला तथा इन्द्रियों के विषय ग्रहण से निवृत्त, जितेन्द्रिय और ब्रह्मचर्य से गुप्त होता है। दूसरी भावना है स्त्रीकथावर्जन । नारीजनों के मध्य में अनेक प्रकार की कथा नहीं करनी चाहिए, जो बातें स्त्रियों की कामुक चेष्टाओं से और विलास आदि के वर्णन से युक्त हों, जो हास्यरस और शृंगाररस की प्रधानता वाली साधारण लोगों की कथा की तरह हों, जो मोह उत्पन्न करने वाली हों । इसी प्रकार विवाह सम्बन्धी बातें, स्त्रियों के सौभाग्य-दुर्भाग्य की भी चर्चा, महिलाओं के चौंसठ गुणों, स्त्रियों के रंग-रूप, देश, जाति, कुल-सौन्दर्य, भेद-प्रभेद-पद्मिनी, चित्रणी, हस्तिनी, शंखिनी आदि प्रकार, पोशाक तथा परिजनों सम्बन्धी कथाएं तथा इसी प्रकार की जो भी अन्य कथाएं शृंगाररस से करुणता उत्पन्न करने वाली हों और जो तप, संयम तथा ब्रह्मचर्य का घात-उपघात करने वाली हों, ऐसी कथाएं ब्रह्मचर्य का पालन करने वाले साधुजनों को नहीं कहनी चाहिए । ऐसी कथाएं -बातें उन्हें सूननी भी नहीं चाहिए और उनका मन में चिन्तन भी नहीं करना चाहिए । इस प्रकार स्त्रीकथाविरति-समिति योग से भावित अन्तःकरण वाला, ब्रह्मचर्य में अनुरक्त चित्तवाला तथा इन्द्रिय विकार से विरत रहने वाला, जितेन्द्रिय साधु ब्रह्मचर्य से गुप्त रहता है। ब्रह्मचर्यव्रत की तीसरी भावना स्त्री के रूप को देखने के निषेध-स्वरूप है । नारियों के हास्य को, विकारमय भाषण को, हाथ आदि की चेष्टाओं को, विप्रेक्षण को, गति को, विलास और क्रीड़ा को, इष्ट वस्तु की प्राप्ति होने पर अभिमानपूर्वक किया गया तिरस्कार, नाट्य, नृत्य, गीत, वादित आदि वाद्यों के वादन, शरीर की आकृति, गौर श्याम आदि वर्ण, हाथों, पैरों एवं नेत्रों का लावण्य, रूप, यौवन, स्तन, अधर, वस्त्र, अलंकार और भूषणललाट की बिन्दी आदि को तथा उसके गोपनीय अंगों को, एवं स्त्रीसम्बन्धी अन्य अंगोपांगों या चेष्टाओं को जिनसे ब्रह्मचर्य, तप तथा संयम का घात-उपघात होता है, उन्हें ब्रह्मचर्य का अनुपालन करने वाला मुनि न नेत्रों से देखे, न मन से सोचे और न वचन से उनके सम्बन्ध में कुछ बोले और न पापमय कार्यों की अभिलाषा करे । इस प्रकार स्त्री रूपविरति के योग से भावित अन्तःकरण वाला मुनि ब्रह्मचर्य में अनुरक्त चित्त वाला, इन्द्रियविकार से विरत, जितेन्द्रिय और ब्रह्मचर्य से गुप्त-सुरक्षित होता है। पूर्व-रमण, पूर्वकाल में की गई क्रीड़ाएं, पूर्वकाल के सग्रन्थ, ग्रन्थ तथा संश्रुत, इन सब का स्मरण नहीं करना चाहिए । इसके अतिरिक्त द्विरागमन, विवाह, चूडाकर्म, पर्वतिथियों में, यज्ञों आदि के अवसरों पर, शृंगार के आगार जैसी सजी हुई, हाव, भाव, प्रललित, विक्षेप, पत्रलेखा, आँखों में अंजन आदि शृंगार, विलास-इन सब से सुशोभित, अनुकूल प्रेमवाली स्त्रियों के साथ अनुभव किए हुए शयन आदि विविध प्रकार के कामशास्त्रोक्त प्रयोग, ऋतु के उत्तम वासद्रव्य, धूप, सुखद स्पर्श वाले वस्त्र, आभूषण, रमणीय आतोद्य, गायन, प्रचुर नट, नर्तक, जल्ल, मल्ल-कुश्तीबाज, मौष्टिक, विदूषक, कथा-कहानी सुनाने वाले, प्लवक रासलीला करने वाले, शुभाशुभ बतलाने वाले, लंख, मंख, तुण नामक वाद्य बजाने वाले, वीणा बजाने वाले, तालाचर-इस सब की क्रीडाएं, गायकों के नाना प्रकार के मधुर ध्वनि वाले गीत एवं मनोहर स्वर और इस प्रकार के अन्य विषय, जो तप, संयम और ब्रह्मचर्य का घात-उपघात करने वाले हैं, उन्हें ब्रह्मचर्यपालक श्रमण को देखना नहीं चाहिए, इन से सम्बद्ध वार्तालाप नहीं करना चाहिए और पूर्वकाल में जो देखे-सूने हों, उनका स्मरण भी नहीं करना चाहिए । इस प्रकार पूर्ववत्-पूर्वक्रीडितविरति-समिति के योग से भावित अन्तःकरण वाला, ब्रह्मचर्य में अनुरक्त चित्त वाला, मैथुनविरत, जितेन्द्रिय साधु ब्रह्मचर्य से गुप्त-सुरक्षित होता है। ___ पाँचवीं भावना-सरस आहार एवं स्निग्ध भोजन का त्यागी संयम शील सुसाधु दूध, दही, घी, मक्खन, तेल, मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (प्रश्नव्याकरण) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 46
SR No.034677
Book TitleAgam 10 Prashnavyakaran Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages54
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 10, & agam_prashnavyakaran
File Size3 MB
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