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________________ आगम सूत्र १०, अंगसूत्र-१०, 'प्रश्नव्याकरण' द्वार/अध्ययन/ सूत्रांक बिना कारण कोप न करने वाले, परिमित और मंजु भाषण करने वाले, मुस्कान के साथ गंभीर और मधुर वाणी का प्रयोग करने वाले, अभ्युगत के प्रति वत्सलता रखने वाले तथा शरणागत की रक्षा करने वाले होते हैं । उनका समस्त शरीर लक्षणों से, व्यंजनों से तथा गुणों से सम्पन्न होता है । मान और उन्मान से प्रमाणोपेत तथा इन्द्रियों एवं अवयवों से प्रतिपूर्ण होने के कारण उनके शरीर के सभी अंगोपांग सुडौल-सुन्दर होते हैं | चन्द्रमा के समान सौम्य होता है और वे देखने में अत्यन्त प्रिय और मनोहर होते हैं । वे अपराध को सहन नहीं करते । प्रचण्ड एवं देखने में गंभीर मुद्रा वाले होते हैं । बलदेव की ऊंची ध्वजा ताड़ वृक्ष के चिह्न से और वासुदेव की ध्वजा गरुड़ के चिह्न से अंकित होती है । गर्जते हुए अभिमानियों में भी अभिमानी मौष्टिक और चाणूर नामक पहलवानों के दर्प को (उन्होंने) चूर-चूर कर दिया था । रिष्ट नामक सांड का घात करने वाले, केसरी सिंह के मुख को फाड़ने वाले, अभिमानी नाग के अभिमान का मथन करने वाले, यमल अर्जुन को नष्ट करने वाले, महाशकुनि और पूतना नामक विद्याधारियों के शत्रु, कंस के मुकुट को मोड़ देने वाले और जरासंघ का मान-मर्दन करने वाले थे। वे सघन, एकसरीखी एवं ऊंची शलाकाओं से निर्मित तथा चन्द्रमण्डल के समान प्रभा वाले, सूर्य की किरणों के समान, अनेक प्रतिदण्डों से युक्त छत्रों को धारण करने से अतीव शोभायमान थे। उनके दोनों पार्श्वभागों में ढोले जाते हए चामरों से सुखद एवं शीतल पवन किया जाता है । उन चामरों की विशेषता इस प्रकार है-पार्वत्य प्रदेशों में विचरण करने वाली चमरी गायों से प्राप्त किये जाने वाले, नीरोग चमरी गायों के पूछ में उत्पन्न हुए, अम्लान, उज्ज्वल-स्वच्छ रजतगिरि के शिखर एवं निर्मल चन्द्रमा की किरणों के सदृश वर्ण वाले तथा चाँदी के समान निर्मल होते हैं । पवन से प्रताडित, चपलता से चलने वाले, लीलापूर्वक नाचते हुए एवं लहरों के प्रसार तथा सुन्दर क्षीर-सागर के सलिलप्रवाह के समान चंचल होते हैं । साथ ही वे मानसरोवर के विस्तार में परिचित आवास वाली, श्वेत वर्ण वाली, स्वर्णगिरि पर स्थित तथा ऊपर-नीचे गमन करने में अन्य चंचल वस्तुओं को मात कर देने वाले वेग से युक्त हंसनियों के समान होते हैं । विविध प्रकार की मणियों के तथा तपनीय स्वर्ण के बने विचित्र दंडों वाले होते हैं । वे लालित्य से युक्त और नरपतियों की लक्ष्मी के अभ्युदय को प्रकाशित करते हैं । वे बड़े-बड़े पत्तनों में निर्मित होते हैं और समृद्धिशाली राजकुलों में उनका उपयोग किया जाता है । वे चामर, काले अगर, उत्तम कुंदरुक्क एवं तुरुष्क की धूप के कारण उत्पन्न होने वाली सुगंध के समूह से सुगंधित होते हैं। (वे बलदेव और वासुदेव) अपराजेय होते हैं । उनके रथ अपराजित होते हैं । बलदेव हाथों में हल, मूसल और बाण धारण करते हैं और वासुदेव पाञ्चजन्य शंख, सुदर्शन चक्र, कौमुदी गदा, शक्ति और नन्दक नामक खड्ग धारण करते हैं । अतीव उज्ज्वल एवं सुनिर्मित कौस्तुभ मणि और मुकुट को धारण करते हैं । कुंडलों से उनका मुखमण्डल प्रकाशित होता रहता है । उनके नेत्र पुण्डरीक समान विकसित होता है । उनके कण्ठ और वक्षःस्थल पर एकावली हार शोभित रहता है । उनके वक्षःस्थल में श्रीवत्स का सुन्दर चिह्न बना होता है । वे उत्तम यशस्वी होते हैं । सर्व ऋतुओं के सौरभमय सुमनों से ग्रथित लम्बी शोभायुक्त एवं विकसित वनमाला से उनका वक्षःस्थल शोभायमान रहता है । उनके अंग उपांग एक सौ आठ मांगलिक तथा सुन्दर लक्षणों से सुशोभित होते हैं। उनकी गति मदोन्मत्त उत्तम गजराज की गति के समान ललित और विलासमय होती है। उनकी कमर कटिसूत्र से शोभित होती है और वे नीले तथा पीले वस्त्रों को धारण करते हैं । वे देदीप्यमान तेज से विराजमान होते हैं। उनका घोष शरत्काल के नवीन मेघ की गर्जना के समान मधुर, गंभीर और स्निग्ध होता है । वे नरों में सिंह के समान होते हैं । उनकी गति सिंह के समान पराक्रमपूर्ण होती है । वे बड़े-बड़े राज-सिंहों के समाप्त कर देने वाले हैं । फिर (भी प्रकृति से) सौम्य होते हैं । वे द्वारवती के पूर्ण चन्द्रमा थे । वे पूर्वजन्म में किये तपश्चरण के प्रभाव वाले होते हैं । वे पूर्वसंचित इन्द्रियसुखों के उपभोक्ता और अनेक सौ वर्षों की आयु वाले होते हैं । ऐसे बलदेव और वासुदेव अनुपम शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गन्धरूप इन्द्रियविषयों का अनुभव करते हैं । परन्तु वे भी कामभोगों से तृप्त हुए बिना ही कालधर्म को प्राप्त होते हैं। मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (प्रश्नव्याकरण) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 26
SR No.034677
Book TitleAgam 10 Prashnavyakaran Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages54
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 10, & agam_prashnavyakaran
File Size3 MB
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