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आगम सूत्र ९, अंगसूत्र-९, 'अनुत्तरोपपातिकदशा'
वर्ग/अध्ययन/ सूत्रांक उस काल और उस समय राजगृह नगर में श्रेणिक राजा था । गुणशैलक चैत्य में श्रमण भगवान महावीर बिराजमान थे। परिषद् धर्म-कथा सुनने को आई और राजा भी आया । धर्म-कथा सूनकर परिषद् और राजा चले गए । तदनु मध्यरात्रि के समय धर्म-जागरण करते हुए सुनक्षत्र अनगार को स्कन्दक के समान भाव उत्पन्न हए । वह बहुत वर्ष की दीक्षा पालन कर सर्वार्थसिद्ध विमान में देव-रूप से उत्पन्न हुए । उसकी वहाँ पर तैंतीस सागरोपम की आयु है । वहाँ से च्युत होकर वह महाविदेह क्षेत्र में सिद्धि प्राप्त करेंगे । इसी प्रकार शेष आठ अध्ययनों के विषय में भी जानना चाहिए । विशेषता इतनी कि अनुक्रम से दो राजगृह नगर में, दो साकेतपुर में, दो वाणिज-ग्राम में, नौवाँ हस्तिनापुर में और दशवाँ राजगृह नगर में उत्पन्न हुए । इनमें नौ की माता भद्रा थीं और नौ को बत्तीस बत्तीस दहेज मिले । नौ का निष्क्रमण थावच्चापुत्र समान हुआ । केवल वेहल्लकुमार का निष्क्रमण उसके पिता के द्वारा हुआ । छ: मास का दीक्षा-पर्याय वेहल्ल अनगार ने पालन किया, नौ मास का धन्य ने । शेष आठों ने बहुत वर्ष तक दीक्षा-पर्याय पालन किया । दशों ने एक एक मास की संलेखना धारण की । सब के सब सर्वार्थसिद्ध विमान में उत्पन्न हुए और वहाँ से च्युत होकर सब महाविदेह क्षेत्र में सिद्ध-गति प्राप्त करेंगे।
हे जम्बू ! इस प्रकार धर्म-प्रवर्तक, चार तीर्थ स्थापन करने वाले, स्वयं बुद्ध, लोकनाथ, लोकों को प्रकाशित और प्रदीप्त करने वाले, अभय प्रदान करने वाले, शरण देने वाले, ज्ञान-चक्षु प्रदान करने वाले, मुक्ति का मार्ग दिखाने वाले, धर्म देने वाले, धर्मोपदेशक, धर्मवर-चतुरन्त-चक्रवर्ती, अनभिभूत श्रेष्ठ ज्ञान और दर्शन वाले, राग-द्वेष को जीतने वाले, ज्ञापक, बुद्ध, बोधक, मुक्त, मोचक, स्वयं संसार-सागर से तैरने वाले और दूसरों को तराने वाले, कल्याणरूप, नित्य स्थिर, अन्त-रहित, विनाश-रहित, शारीरिक और मानसिक आधि-व्याधि-रहित, पुनः पुनः सांसारिक जन्म-मरण से रहित सिद्ध-गति नामक स्थान को प्राप्त हुए श्री श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने अनुत्तरोपपातिकदशा के तृतीय वर्ग का यह अर्थ प्रतिपादन किया है।
वर्ग-३-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण ९ - अनुत्तरोपपातिकदशा-आगमसूत्र-९ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत्' (अनुत्तरोपपातिकदशा)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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